Shailendra Death Anniversary: जब सचिन दा के डांटने पर शैलेन्द्र को समुन्द्र किनारे मिला खोया खोया चाँद By Siddharth Arora 'Sahar' 14 Dec 2023 | एडिट 14 Dec 2023 01:30 IST in बीते लम्हें New Update Follow Us शेयर नवकेतन बैनर की नौवीं फिल्म में देव आनंद और उनके भाई विजय आनंद ने सोचा क्यों न अगली फिल्म के म्यूजिक के लिए सचिन देव बर्मन और शैलेन्द्र की जोड़ी को चुना जाए। इस फिल्म का नाम तय हुआ - काला बाज़ार (1960) अच्छा सचिन दा कितने गुस्से वाले आदमी हैं ये आप सब भी जानते ही हैं। ऊपर से आनंद बंधुओं के साथ पहली फिल्म करने को लेकर उनके ऊपर प्रेशर बहुत था। फिर शैलेन्द्र थे कि गाने के बोल लिख कर नहीं दे रहे थे। इसपर देवआनंद और विजय आनंद भी परेशान हाल हो गये थे कि गाने कब रिकॉर्ड होंगे, कब शूट करेंगे। धुन तो सचिन दा बना ही चुके थे पर शैलेन्द्र थे कि आज-कल आज-कल करते बहाने बना रोज़ टाल रहे थे। सचिन दा एक रोज़ बुरी तरह गुस्सा हो गये। अपने बेटे पंचम (राहुल देव बर्मन) को बुलाया और कहा “जा अभी शैलेन्द्र के घर और जब तक वो गाना लिख के न दे दे, तब तक वापस घर मत आना” अब पंचम दा तो छोड़िए, अशोक कुमार, किशोर कुमार या ख़ुद शैलेन्द्र में इतनी हिम्मत नहीं थी कि सचिन दा को ना कह सकें। तो उसी समय पंचम पहुँच गये शैलेन्द्र के पास, शैलेन्द्र ने उन्हें गाड़ी में बिठाया और बोला कि “तुम चिंता मत करो पंचम, मैं आज गाना दे दूंगा” पंचम दा मुस्कुरा कर रह गये। ड्राइवर उन्हें शंकर जयकिशन के म्यूजिक स्टूडियो ले गया। वहाँ शैलेन्द्र के साथ पंचम दा को आता देख जयकिशन जी ने छेड़ दिया “क्यों पंचम, यहाँ से कुछ धुन ‘उठाने’ के लिए आया है” इससे पहले कि पंचम झेंपते हुए कोई जवाब देते, शैलेन्द्र ने जयकिशन जी को सारी बात समझाई कि इसके और मेरे दोनों के सिर पे सचिन दा की तलवार लटकी है। ये गीत लिए बिना कैसे वापस जायेगा। तब जयकिशन जी और ज़ोर से हँसते हुए बोले “अभी तो शैलेन्द्र जी को हमारे बहुत से गाने पूरे करने है, तुम तो अभी लाइन में हो पंचम” शाम के वक़्त शैलेन्द्र शंकर-जयकिशन के स्टूडियो से उस रोज़ का काम ख़त्म कर पंचम को लेकर निकले और ड्राइवर से बोला कि चलो नेशनल पार्क चलो। ड्राइवर चला ही कि शैलेन्द्र ने सिगरेट सुलगा ली। फिर एक सिगरेट ख़त्म हो तो शैलेन्द्र दूसरी जला दें। एक के बाद एक सिगरेट पीते शैलेन्द्र सोचे जा रहे थे पर एक भी शब्द उनके मुँह से निकलकर राज़ी नहीं था। पंचम दा भी अपने नसीब को कोसते हुए चुपचाप गाड़ी में पीछे बैठे सफ़र कर रहे थे। घूमते-घूमते रात हो गयी। शैलेन्द्र ने ड्राइवर को फिर हुक्म दिया “जुहू बीच चलो” बीच बिल्कुल सुनसान पड़ा था। शैलेन्द्र आराम से बीच पर नंगे पैर टहलने लगे। साथ साथ पंचम दा भी मुँह बांधे कदम से कदम मिलाने लगे। शैलेन्द्र तबसे इतनी सिगरेट पी चुके थे फिर भी सिगरेट खत्म न हुई लेकिन माचिस में तीलियाँ खत्म हो गयीं। उन्होंने पंचम से माचिस माँगी, पंचम दा शौक हो गये! शैलेन्द्र जानते थे कि पंचम सिगरेट पीता है, पर पंचम दा डर रहे थे कि कहीं शैलेन्द्र पापा को न बता दें। उन्होंने फिर भी डरते-डरते माचिस दे दी। शैलेन्द्र ने फिर एक सिगरेट सुलगाने के बाद माचिस लौटाते हुए पूछा कि “पंचम, दादा की ट्यून क्या है, ज़रा बता तो” पंचम दा ने उसी माचिस की डिब्बी पर ट्यून बजानी शुरु की और कुछ गुनगुनाने भी लगे। शैलेन्द्र लगातार लहरों से खेलते समुन्द्र को और स्याह काले आसमान को देख रहे थे। शैलेन्द्र सिगरेट फेंकते हुए बोले “पंचम तू घर जा और दादा को बोल मैं सुबह पूरा गाना लेकर आ रहा हूँ” और शैलेन्द्र पंचम दा की बनाई ट्यून में ही गुनगुनाते हुए बोले “खोया खोया चाँद, खुला आसमान, आँखों में सारी रात जायेगी, तुमको भी कैसे नींद आयेगी” पंचम मुस्कुरा उठे, उन्होंने झट से मुखड़ा सिगरेट की मुड़ी तुड़ी डिब्बी पर लिखा और घर चले गये। घर पहुँचे तो पता चला पापा सो चुके हैं। अगली सुबह सचिन दा ने पंचम को उठा के माँगा “ए पंचम, गाना किधर है?” पंचम ने वही सिगरेट का मुड़ा तुड़ा हिस्सा निकाला और पापा को सुनाया। गाना सिचुएशन पर सूट कर रहा है। देव आनंद इस गाने में वहीदा रहमान को प्यार से ढूंढ रहे थे, उनके लुभाने की कोशिश में थे। उसी हिसाब से शैलेन्द्र ने ये रोमांटिक गाना कुछ इस तरह लिखा “मस्ती भरी, हवा जो चली, खिल खिल गयी ये दिल की कली मन की गली में है खलबली के उनको तो बुलाओ” अब आगे शैलेन्द्र की कलाकारी देखिए - “तारे चले, नज़ारे चले संग संग मेरे वो सारे चले चरों तरफ इशारे चले किसी के तो हो जाओ” “ऐसी ही रात, भीगी सी रात हाथों में हाथ होते वो साथ कह लेते उनसे दिल की ये बात के अब तो न सताओ” “हम मिट चले, हैं जिनके लिए बिन कुछ कहे वो चुप चुप रहें कोई ज़रा ये उनसे कहे न ऐसे आज़माओ” शैलेन्द्र ने इस गाने में एक एक शब्द को बहुत ध्यान से लिखा है। शुरुआत उन्होंने माहौल से की है और धीरे से बिना किसी एक्स्सेसिव फ़ोर्स के देवआनंद के करैक्टर की पर्सनल फीलिंग को ज़ाहिर करना शुरु कर दिया है कि वो वहीदा रहमान के लिए दिल में कितना प्यार रखते हैं। ख़ासकर शुरुआती बोल “मन की गली में है खलबली कि उनको तो बुलाओ” देव आनंद की बेचैनी को बहुत ख़ूबसूरती से दर्शाता है। एक समय इस गानें को सुन यूँ लगता है कि पूरी कायनात इन दोनों को मिलाने के लिए जी जान से जुटी है। “तारे चले, नज़ारे चले, संग संग मेरे वो सारे चले चारों तरफ इशारे चले, किसी के तो हो जाओ” अगले दोनों अंतरे पूरी तरह से वहीदा रहमान के लिए समर्पित लगते हैं। यहाँ, इस गाने को पिक्चराइज़ करने के लिए विजय आनंद की कला का ज़िक्र करना भी बहुत ज़रूरी है। बहुत से लोग ये सोचकर हैरान होंगे कि आख़िर कैसे विजय आनंद ने पूरे दिन के उजाले में चाँद तारों की बातें की होंगी। उस दौर में, सन 60 की शुरुआत में जब ऐसे कैमरा और संसाधन नहीं थे कि रात में शूटिंग हो सकती, इसलिए डायरेक्टर्स डे फॉर नाईट टेक्नीक का इस्तेमाल करते थे। इसमें दिन में शूटिंग की जाती थी लेकिन स्टूडियो में आकर फिल्म की ब्राइटनेस बिल्कुल कम कर दी जाती थी और सिनेमा हॉल में वो वाकई रात का दृश्य लगता था। विजय आनंद ने इस गाने को शूट करते वक़्त भी एक बहुत मज़ेदार थीम डाली थी। आप इस गाने को ध्यान से देखें तो पायेंगे कि पूरे गाने में देवानंद इधर से उधर भाग रहे हैं और कैमरा भी उन्हें फॉलो कर रहा है वहीं वहीदा रहमान एक जगह खड़ी हैं। कई बार राईट से लेफ्ट जाती दिखती हैं तो कहीं उनका बस साइड पोज़ दिखता है। यह थीम भी इस गाने के बोल की तरह ही है कि वहीदा वो चाँद हैं जो अपनी जगह स्थिर है या कभी आधा मुखड़ा दिखा रहा है तो कभी ज़रा सी जगह बदल रहा है लेकिन देव आनंद वो बादल है जो इधर से उधर उड़ा जा रहा है। एक और ऐसी यूनीक बात थी विजय आनंद के डायरेक्शन में जो अमूमन किसी और दिग्दर्शक में देखने को नहीं मिलती थी। अमूमन तब गानों में 2 से 3 अंतरें ही रखे जाते थे लेकिन विजय आनंद ने सचिन दा और शैलेन्द्र के गीत पर इतना भरोसा था कि उन्होंने चार-चार अंतरें डाले हुए हैं और हर अंतरा पिछले वाले से दो हाथ आगे ले जा रहा है। ये चीज़ बाकी फिल्ममेकर्स को भी इतनी पसंद आई कि वो विजय आनंद की तारीफ किए बिना न रह सके। फिर देव आनंद और वहीदा रहमान की केमेस्ट्री की तो क्या ही कहें, वहीदा जहाँ बेहद ख़ूबसूरत लगी हैं तो वहीं देवआनंद में रूमानी अदाओं में सबको पीछे छोड़ दिया है। देव आनंद ने इस गाने की फील कुछ इस तरह पकड़ी है मानों कोई मोर अपनी प्रियतमा को रिझाने के लिए बारिश में झूम रहा है। काला बाज़ार वो पहली फिल्म थी जब वहीदा रहमान, देव आनंद, विजय आनंद, और सचिन दा- शैलेन्द्र की जोड़ी ने साथ काम किया था और इस फिल्म के गाने, ये फिल्म, सब कुछ ब्लाकबस्टर-चार्टबस्टर हुई थी। दोबारा यही टीम गाइड के लिए एक हुई थी और उस बार भी, बॉलीवुड इतिहास के पन्नों में एक नायाब चैप्टर जोड़ने में कामयाब हुई थी। इन सारी बातों की शुरुआत याद कीजिए और शुक्रिया कीजिए सचिन देव बर्मन के गुस्से का और पंचम दा यानी राहुल देव बर्मन के सब्र का जो वो सारा दिन शैलेन्द्र के साथ जमे रहे और ऐसे खूबसूरत गाने के सृजन के साक्षी बने। Artile By - Omprakash Dutta Ji Translated and presented by - सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ ?si=BzYWs7ARdZVfDJlG #Shailendra story #shailendra birthday #shailendra article #about shailendra #shailendra birthday spaecial #shailendra songs हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article