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मशहूर शायर गुलजार साहब का असली नाम 'सम्पूर्ण सिंह कालरा' है और उनका जन्म 18 अगस्त 1934 को झेलम जिले के दीना गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।
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गुलजार साहब ने हाल ही में अपना 90वां जन्मदिन मनाया और अपनी लेखन प्रक्रिया के बारे में बताया कि वे कुर्सी पर बैठकर, पेन और कागज के साथ लिखते हैं।
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गुलजार साहब की एक किताब 'रात पश्मीने की' है, जिसमें उन्होंने अपने शहर दीना की यादों को संजोया है और इसे पाठकों की प्रेरणा के लिए छोड़ा है।
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गुलजार साहब अपनी फिटनेस के लिए दंड-बैठक करते हैं और वर्तमान समय की चिसी-पिटी बातों से परेशान रहते हैं।
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उन्होंने बताया कि उनकी जन्मतिथि और नाम को लेकर इंटरनेट पर गलत जानकारी फैली हुई है, जैसे कि कहीं 1936 तो कहीं 1938 लिखा है, जबकि वे 1934 में पैदा हुए थे।
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हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में गुलजार साहब ने 'कोशिश', 'परिचय', 'अचानक', 'खुशबू', 'आंधी', 'मौसम', 'किनारा', 'मेरे अपने', 'मीरा', 'किताब', 'नमकीन', 'इजाजत', 'लिबास', 'अंगूर', 'लेकिन', 'माचिस' और 'हू तू तू' जैसी कई फिल्मों का निर्देशन किया है।
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गुलजार साहब को 20 बार फिल्मफेयर और 5 राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें 'स्लमडॉग मिलियनेयर' के गाने 'जय हो' के लिए 2010 में ग्रैमी पुरस्कार भी मिला था।
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भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 2004 में पद्म भूषण और 2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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