कुरीतियों का विरोध करती 'शादी में जरूर आना' By Shyam Sharma 10 Nov 2017 | एडिट 10 Nov 2017 23:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर बेशक हम आज महिलाओं को लेकर जागृत करने का शोर मचा रहे हैं, लेकिन मुंबई जैसे कुछ मैट्रो सिटीज को छोड़ कर देखा जाये, तो आज भी नॉर्थ में लड़कियों को रूढीवादी माता पिता और समाज के सामंती रवैये का सामना करना पड़ता है। निर्देशिका रत्ना सिन्हा की फिल्म ‘शादी में जरूर आना’ के जरिये दहेज और लड़कों के आगे लड़कियों को लेकर छोटी सोच, प्रभावी ढंग से दिखाने की कोशिश की गई है। क्या है फिल्म की कहानी ? राज कुमार राव यानि सत्तू अपनी क्लर्क की सरकारी नौकरी से खुश है। उससे कहीं ज्यादा उसके मां-बाप के के रैना और अल्का अमीन खुश हैं। वो उसकी शादी को लेकर बहुत उत्सुक हैं। यहां पिता के भीतर दहेज को लेकर संकोच है, लेकिन मां का मानना है कि आज हम अगर दहेज नहीं लेगें, तो कल लड़की की शादी में हमें भी तो ऐसी ही स्थिति से गुजरना पड़ेगा। सत्तू के लिये कृति खरबंदा यानी आरती शुक्ला का रिश्ता आता है, तो उसके मामा विपिन शर्मा उसके पिता गोविंद नामदेव और मामा मनोज पाहवा से पच्चीस लाख दहेज की मांग करते हैं। लड़के की सरकारी नौकरी को देखते हुए, गोविंद अपनी हैसियत से ज्यादा रकम के लिये भी हां कर देते हैं। कृति एक मेधावी छात्रा है, वो आगे राज्य लोक सेवा के एग्जाम की तैयारी कर रही है, लेकिन पिता के दकियानूसी विचारों के आगे वो शादी करने के लिये मजबूर है। आरती पिता के कहने पर सत्तू से मिलती है। मिलने के बाद उसे सत्तू और उसके विचार अच्छे लगते हैं, लिहाजा वो उसे जीवन साथी के तौर पर पसंद कर लेती है। एक समय दोनों एक दूसरे को बेहद प्यार करने लगते हैं। शादी के दिन आरती को पता चलता है कि उसने राज्य लोक सेवा का एग्जाम पास कर लिया है, लिहाजा अब वो अफसर बन चुकी है। यहां उसकी बहन उसे समझाती है कि ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा, क्योंकि उसकी सास उसे नौकरी नहीं करने देगी, लिहाजा आगे उसे भी उसी की तरह सुसराल में जीवन भर, चारदीवारी में घर और बच्चे संभालने पड़ेंगे। वो उसे घर से भाग जाने की सलाह देती है। आरती भी सत्तू को कॉन्फिडेंस में न लेते हुये घर से भागने का फैसला कर लेती है। आरती के इस कदम से और अपने पिता तथा मामा की भारी बेइज्जती देख सत्तू पूरी तरह से टूट जाता है। आरती से बदला लेने पहुंचता है सत्तू पांच साल बाद जहां आरती लखनऊ राज्य लोक सेवा में अफसर बन कर आती है, वहीं सत्तू उसी डिपार्टमेंन्ट का डीएम बन चुका है। आरती के लिये उसके दिल में नफरत ही नफरत है, लिहाजा वो एक रिश्वत कांड में उसे कुसूरवार ठहराते हुये जेल तक पहुंचा देता है, लेकिन उसके मां बाप की क्षमा याचना के बाद वो उसे निर्दोश साबित करवा जेल से बाहर भी निकाल लेता है। उसके बाद आरती का एक ही लक्ष्य हैं कि वो अपनी गलती मानते हुये सत्तू के दिल में फिर पहले वाली जगह बनाये। निर्देशिका ने रीति-रिवाजों की दुहाई देते हुये दहेज और लड़कियों के साथ होने वाले व्यवहार और कुछ लड़कियों के साथ हो रहे अन्याय का सामना करने की कहानी को एक हद तक प्रभावी तरीके से दिखाने की कोशिश की है। लेकिन पटकथा की कमजोरी के चलते फिल्म अपना समुचित प्रभाव नहीं छोड़ पाती। इसके चलते क्लाईमेक्स तो कुछ ज्यादा ही नाटकीय हो गया। क्योंकि जहां सत्तू और उसके मां बाप आरती से बेइंत्हा नफरत करते हैं, लेकिन अगले ही पल वे अचानक आरती के पक्ष में होने वाले शड़यंत्र का हिस्सा बने दिखाई देते हैं। पटकथा की कुछ और कमजोरियों के चलते फिल्म के समर्थ अदाकार अपनी प्रतिभा का चाहकर सही इस्तेमाल नहीं कर पाते। कहानी के हिसाब से फिल्म में मध्यवर्गीय परिवारों का माहौल, रहन-सहन रीयल लगता है। फिल्म का गीत संगीत बढ़िया है। राजकुमार राव की बढ़िया ऐक्टिंग राज कुमार राव ने एक बार फिर उत्तम अदाकारी का दिखाई, वहीं कृति खरबंदा की प्रेजेंटेशन अच्छी रही, उसने अपनी भूमिका के साथ पूरा पूरा न्याय किया है। सहायक भूमिकाओं में गोविंद नामदेव, अल्का अमीन, विपिन शर्मा, के के रैना, नवनी परिहार तथा मनोज पाहवा ने उल्लेखनीय काम किया है। कुरितियों का विरोध करती ये फिल्म दर्शकों को निराश नहीं करती। #movie review #Shaadi Mein Zaroor Aana हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article