युवावर्ग के लिये प्रेरक फिल्म है 'मित्रों' By Shyam Sharma 14 Sep 2018 | एडिट 14 Sep 2018 22:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर कई पेरेन्ट्स का अपने बच्चों की क्षमता पर विश्वास न कर उन्हें अपने मुताबिक जीने से रोकते हुये उन्हें हतोउत्साहित कर उन पर अपनी मनमानी थोपना कितना हानिकारक हो सकता है। नितिन कक्कड की फिल्म ‘मित्रों’ बहुत असरदार ढंग से बताती है। जय यानि जैकी भगनानी एक ऐसा युवक है जो बचपन से ही अपने पिता नीरज सूद से डरता आया है। उन्हीं के कहने पर उसने किसी तरह इंजीनियरिंग की लेकिन उसे नौकरी नहीं मिलती। वैसे वो सेफ बनना चाहता है, लेकिन अपने पिता से इस बारे में कह नहीं पाता। दूसरी तरफ अवनी यानि कृतिका कामरा विक्रम यानि प्रतीक बब्बर से प्यार करती है और उसके साथ कोई बिजनिस करना चाहती है, जबकि उसके पिता सुनील सिन्हा उसकी शादी कर देना चाहते हैं। विक्रम अवनी को ट्रक फूड का बिजनिस शुरू करने का आइडिया देता है और पैसे का इंतजाम करने दिल्ली चला जाता है। इस बीच अवनी अपने पिता से पैसे लेकर एक टैंपो भी खरीद लेती है। इस बीच व्रिकम का उसे मैसेज मिलता है कि वो वापस नहीं आ रहा है क्योंकि उसके मां बाप उसकी शादी कर देना चाहते हैं। जय के पिता चाहते हैं कि वैसे तो वो कुछ करता नहीं अगर उसकी शादी कर दी जाये तो शायद उसके बाद वो कुछ करने लगेगा। उसके पिता उसे बताते हैं कि उनके पास एक रिश्ता आया है जिसमें लड़की के पिता मोहन कपूर से दहेज में एक करोड़ तक मिल सकता है। इस रिश्ते के लिये जय हां कर देता है क्योंकि उसे लगता है कि दहेज में मिले पैसे को फिक्स डिपाजिट करने के बाद एक लाख महीना आता रहेगा, उसके बाद कुछ करने की जरूरत ही क्या है। लेकिन जय को जब मोहन कपूर कहता है कि पहले वो साबित कर दिखाये कि वो शादी के बाद उसका बिजनिस संभाल सकता हैं या नहीं। उसी दौरान उसे अवनी टकराती है अवनी जय के हाथ की डिश खा चुकी है लिहाजा वो उसे ट्रक फूड बिजनिस में आने का ऑफर देती है। अवनी के साथ काम करते हुये जय एक कामयाब सेफ बन साबित कर दिखाता है। लिहाजा अब उसे किसी मोहन कपूर जैसे एक करोड़ दहेज देकर घर जमाई बनाने वाले ससूर की जरूरत नहीं। वो रीयल लाइफ में भी अवनी का लाइफ पार्टनर बन जाता है। नितिन कक्कड़ इससे पहले फिल्मीस्तान जैसी अवार्ड विनर फिल्म दे चुके हैं। इस बार भी उन्होंने एक बहुत संवेदनशील और प्रेरक विषय चुना। जिसके जरिये उन्होंने प्रभावशाली ढंग से अपनी बात कहने की कोशिश की है। फिल्म की कथा पटकथा तो बढ़िया है ही लेकिन अभिनेता शारीब हाशमी द्धारा लिखे संवाद कमाल के हैं। फिल्म के सात म्यूजिक डायरेक्टर्स हैं लेकिन गीत कहानी के साथ ही घुल मिल जाते हैं। टीवी अभिनेत्री कृतिका कामरा ने इस फिल्म से बड़े पर्दे पर शानदार डेब्यू किया है। वो इस फिल्म में एक बेहतरीन अदाकरा साबित हुई है। जैकी भगनानी का अपनी अभी तक की फिल्मों से बिलकुल अलग रोल है और उसकी अभिव्यक्ति भी प्रभावी है। उसने एक जिन्दगी से अलसाये और कन्फयूज्ड तथा अपने पिता से डरे युवक को जिवित कर दिखाया है। उसके दोस्तों में प्रतीक गांधी तथा शिवम पारिख अच्छा काम कर गये। लेकिन जय के पिता की भूमिका में नीरज सूद एक बार फिर अपने प्रभावशाली अभिनय की छाप छोड जाते हैं। इसी प्रकार सुनील सिन्हा भी अच्छा काम कर गये। खास कर युवा वर्ग को ‘मित्रों’ जरूर देखनी चाहिये। #movie review #Jackky Bhagnani #Kritika Kamra #Mitron हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article