अनुभव सिखा जाते हैं हमें खास सबक- मनोज तिवारी By Mayapuri Desk 01 Jan 2019 | एडिट 01 Jan 2019 23:00 IST in रीजनल New Update Follow Us शेयर भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष और सांसद तथा भोजपुरी फिल्मों के मेगास्टार तथा लोकप्रिय गायक मनोज तिवारी का बचपन तंगहाली में बीता। पिता ने दुनिया को अलविदा कहा तो परिवार को अपनी पढ़ाई के लिये संघर्ष करते देखा। वे मानते हैं कि जीवन एक पाठशाला है और अनुभव सबसे अच्छा शिक्षक। अनुभव हमारे हो या दुसरों के हमेशा उनसे सीख सकते हैं। मनोज तिवारी कहते हैं लोगों के मनोजवा से मनोज तिवारी बनाने के दौरान अनुभवी लोगों से काफी कुछ सीखा। आज मनोज तिवारी की जिंदगी समाजसेवा के जरिये दूसरों की मदद के लिये समर्पित है। राजनीति के नियमों और औपचारिकता के बीच उनका जादू ऐसा चला कि आज वे भाजपा के स्टार प्रचारक हैं। मगर उन्होंने ना अभिनय छोड़ा और ना ही गायन। पेश है मनोज तिवारी से बातचीत के मुख्य अंश- मनोज जी कितना कुछ है जो दिल में दबा रह गया ? अहंकार शब्द कान में पड़ता है तो दुख होता है। चिंतन जितना विवेक सम्मत होगा उतना वर्तमान के साथ जुड़ेगा। लोगों ने ही इस मनोजवा को मनोज तिवारी बनाया। किसी का दुख देखता हूं तो मुझे बचपन की याद आती है। ये बात हमेशा दिल में रहती है कि पिताजी आज दुनिया में रहते तो कितना अच्छा रहता। मेरे गायक बनने की कहानी बाबूजी के पेट पर लेटने से शुरू होती है. दरअसल मेरे पिताजी जब रियाज करते तो मुझे पेट पर लिटाकर थपकी देते रहते थे । बाबूजी ने एक बार मुझे सरगम सिखाने की कोशिश की थी । एक सरस्वती वंदना है. मुझे आज तक ये वंदना याद है. शायद वो बाबूजी की शिक्षा थी। राजनीति की आपाधापी में संगीत के रियाज के लिये समय दे पाते हैं? मेरी तो पहचान ही संगीत से है। रियाज भी करता हूं और संगीत से अथाह प्रेम है। संगीत से ही धैर्य रखना सीखा हूं। एक समय था जब हम लोग साइकिल की सवारी करके कार्यक्रम करने जाते थे। उस समय भोजपुरी नाजुक दौर से गुजर रही थी। उस समय हम लोगों ने काफी मेहनत कर भोजपुरी को फिर से शिखर तक पहुंचाया। इसमें आप तमाम भोजपुरी भाषी लोगों का सहयोग रहा है। आज मैं जो कुछ भी हूं। संगीत की की बदौलत ही हूं। लेकिन अब भोजपुरी फिल्मों को देखने का नजरिया लोगों में बदला है? मुझे भी ऐसा लगता है। मैं जब गाना गाता था तो साफ सुथरा गाना गाता था। आज कुछ कतिपय कलाकार भोजपुरी में अश्लीलता फैलाने में लगे हुए हैं। जो पुरी तरह गलत है। हर फ़िल्म में मेकर्स का अपना जुगाड़ है। चीज़ें सुलझी हुई और नियमबद्ध नहीं हैं काम करने की आज़ादी सभी को है मगर फ़िल्मी दुनिया में लोग अब भी कहीं न कहीं बंधे रहते हैं। फ़िल्ममेकर्स अपने हिसाब से फ़िल्म नहीं बना पाते, कभी बजट तो कभी स्टार पॉवर की वजह से भी वो फ़िल्म को वो आकार नहीं दे पाते जो वो चाहते हैं । आप हमेशा भोजपुरी को दर्जा दिलाने की वकालत करते हैं लेकिन बात अभी तक बनीं नहीं? राजनीति में आने के बाद भी मैंने भोजपुरी के उत्थान के लिए कई कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा दिए जाने के विषय में लगातार बात हो रही है। जल्द ही जरूरी प्रक्रिया पूरी कर भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा दिया जाएगा। बिहार के लाला अब तो दिल्ली के हो गये? एक कलाकार के लिहाज से मैं पूरे देश का हूं हां सांसद के हिसाब से कहेंगे तो दिल्ली मेरे दिल में बसती है। मैं भारतीय जनता पार्टी का एक सिपाही हूं। दिल्ली के राजनीति को आप किस रुप में देखते हैं? अरविन्द केजरीवाल एक नंबर का झुठा आदमी है। उनको तो सिर्फ खांसी थी खांसी का इलाज क्या उनके मोहल्ला क्लीनिक में नहीं हो सकता था। क्यों केजरीवाल जी ने बड़े अस्पतालों में जाकर अपना इलाज कराया। कहते हैं राजनीति के ताने बाने में आप ऐसे उलझे कि आप मृदुल नहीं रहे? नहीं नहीं बिल्कुल नहीं। मैं अब भी मृदुल हूं। बीते कुछ वक़्त में मेरे कुछ बयानों की वजह से भले ही विरोधियों को मृदुलभाषी न लगता हूं लेकिन मैं आज भी व्यवहार से उतना ही मृदुल हूं। लेकिन आप जब नेता रहते हैं तो अपना उपनाम मृदुल नहीं लगाते? ''मेरे सिर्फ़ गायिकी से जुड़े कामों में मृदुल उपनाम का इस्तेमाल होता है.'' हालांकि फेसबुक पर मेरेनाम के साथ मृदुल लिखा हुआ है. ''मेरा पहला एल्बम 'बाड़ी शेर पर सवार' और 'मैया की महिमा' 1996 में आया था. ये भजनों का संग्रह था. तब गुलशन कुमार जी ने मुझे ये नाम दिया था. तब से मेरी एल्बम में मनोज तिवारी 'मृदुल' लिखा जाने लगा.'' मायानगरी मुंबई ने आपको नयी पहचान दी है। राजनीति में जाने के बाद अब मायानगरी में मन रमेगा? मुंबई को तो भुलने का सवाल ही नहीं उठता है। अब भी दिल्ली से थोड़ा सा भी फुर्सत मिलता है तो मुंबई की उड़ान पकड़ लेता हूं। राजनीति की सोचना हूं तो मन दिल्ली में रमता है और अभिनय के बारे में सोचना हूं तो मन मुंबई में रमता है। संगीत, अभिनय और राजनीति किसी क्षेत्र की मोहताज नहीं होती है। काशी हिन्दु विश्वद्यालय से आपने पढ़ाई किया। वहां के दोस्तों को मिस करते हैं? बिल्कुल नहीं। जब भी मुझे दोस्तों की याद आती है मैं उनके यहां चला जाता हूं या तो वे खुद मुझसे मिल लेते हैं। हां मिस करता हूं तो बनारस के लंका का लौंगलता और वहां की कचौड़ी जलेबी। वो हॉस्टल जिसमें मैं रहता था और अब दूसरे किसी को एलाट हो गया है वो जरुर मिस करता हूं। आप अपने पैतृक गांव बिहार के भभुआ में अतरवलिया गांव को फिल्मी पर्दे पर कब ला रहे हैं? कोई ढंग का प्रोजेक्ट बनेगा तो जरुर ऐसा करुंगा। फिलहाल मेरी योजना शेरशाह सुरी और चंद्रशेखर आजाद पर एक फिल्म बनाने की है लेकिन ये बड़े बजट की फिल्म होगी। इसलिये इसके लिये जरुरी है कि रिसर्च हो। हमारी एक टीम इसके लिये रिसर्च कर रही है। #Bhojpuri Singer #Manoj Tiwari #Bhojpuri News #Manoj Tiwari Interview हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article