Rahul Dev Burman Death Anniversary: आर डी बर्मन उर्फ़ पंचम दा के जन्मदिन पर उन्हें श्रद्धांजलि By Mayapuri Desk 04 Jan 2024 in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर क्या आप जानते हैं फिल्म जगत के रॉकस्टार 'पंचम' के नाम से मशहूर आरडी बर्मन को यह नाम किसने दिया था इसके विषय मे कई कहानियां हैं कोई कहता है की बचपन में जब आरडी बर्मन रोते थे तो पंचम सुर की ध्वनि सुनाई देती थी, लिहाजा सब उन्हें पंचम कहने लगे.तो कुछ लोगों का ये भी कहना है कि एक्टर अशोक कुमार ने जब पंचम को छोटी उम्र में रोते हुए सुना तो कहा कि 'ये पंचम सुर में रोता है' तब से उन्हें पंचम कहा जाने लगा. आरडी बर्मन का जन्म 27 जून 1939 को कलकत्ता में हुआ था. उनके पिता एसडी बर्मन के जाने-माने फिल्मी संगीतकार थे. घर में फिल्मी माहौल के कारण उनका भी रुझान संगीत की ओर हो गया और वे अपने पिता से संगीत की शिक्षा लेने लगे. उन्होंने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद वादन की भी शिक्षा ली. आर डी बर्मन बचपन से ही बहुत अलग और योग्य थे जिसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है की उन्होंने नौ वर्ष की छोटी-सी उम्र में अपनी पहली धुन 'ए मेरी टोपी पलट के आ' बनाई और बाद में उनके पिता सचिन देव बर्मन ने उसका इस्तेमाल वर्ष 1956 में प्रदर्शितत फिल्म 'फंटूश' में किया. इसके अलावा उनकी बनाई धुन 'सर जो तेरा चकराए' भी गुरुदत्त की फिल्म 'प्यासा' के लिए इस्तेमाल की गई. पहले वे अपने पिता एसडी बर्मन के साथ सहायक संगीतकार काम करते रहे उन्होंने एक सहायक संगीतकार के रूप में बंदिनी (1963), तीन देविया (1965) और गाइड जैसी फिल्मों के लिए भी संगीत दिया. व बाद मे बतौर संगीतकार उन्होंने अपने सिने करियर की शुरुआत वर्ष 1961 में महमूद की निर्मित फिल्म 'छोटे नवाब' से की लेकिन इस फिल्म के जरिए वे कुछ खास पहचान नही बना पाए. वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म 'भूत बंगला' से बतौर संगीतकार पंचम दा कुछ हद तक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए. इस फिल्म का गाना 'आओ टि्वस्ट करें' श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ. एक मशहूर संगीतकार का बेटा होने के बावजूद वह अपने वजूद को तलाशते रहे और आरडी बर्मन को लगभग दस वर्षों तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा.पर फिर वह समय भी आया जिसका पंचम दा को कब से इंतज़ार था वर्ष 1966 में प्रदर्शित निर्माता निर्देशक नासिर हुसैन की फिल्म 'तीसरी मंजिल' के सुपरहिट गाने 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा' और 'ओ हसीना जुल्फों वाली' जैसे सदाबहार गानों के जरिए वे बतौर संगीतकार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे.व इसके साथ साथ वर्ष 1972 पंचम दा के सिने करियर का अहम पड़ाव साबित हुआ. इस वर्ष उनकी 'सीता और गीता', 'मेरे जीवन साथी', बॉम्बे टू गोआ', 'परिचय' और 'जवानी दीवानी' जैसी कई फिल्मों में उनका संगीत छाया रहा.अब जैसे पंचम दा का गोल्डन पीरियड आ गया था तभी तो 1975 में रमेश सिप्पी की सुपरहिट फिल्म 'शोले' के गाने महबूबा महबूबा गाकर पंचम दा ने अपना एक अलग समां बांधा जबकि 'आंधी', 'दीवार', 'खूशबू' जैसी कई फिल्मों में उनके संगीत का जादू श्रोताओं के सर चढ़कर बोला. संगीत के साथ प्रयोग करने में माहिर आरडी बर्मन पूरब और पश्चिम के संगीत का मिश्रण करके एक नई धुन तैयार करते थे. हालांकि इसके लिए उनकी काफी आलोचना भी हुआ करती थी. उनकी ऐसी धुनों को गाने के लिए उन्हें एक ऐसी आवाज की तलाश रहती थी जो उनके संगीत में रच-बस जाए. यह आवाज उन्हें पार्श्व गायिका आशा भोंसले मे मिली. फिल्म 'तीसरी मंजिल' के लिए आशा भोंसले ने 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा', 'ओ हसीना जुल्फों वाली' और 'ओ मेरे सोना रे सोना' जैसे गीत गाए. इन गीतों के हिट होने के बाद आरडी बर्मन ने अपने संगीत से जुड़े गीतों के लिए आशा भोंसले को ही चुना. लंबी अवधि तक एक दूसरे का गीत संगीत मे साथ निभाते-निभाते न जाने कब वे दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे व दोनों ने जीवन भर के लिए एक-दूसरे के हो लिए और अपने सुपरहिट गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते रहे. फिर वो शाम भी आई जब हर सूरज की रौशनी हलकी हो जाती है. सन 1985 के बाद आरडी बर्मन निर्माता-निर्देशकों के बीच अब उतने लोकप्रिय नहीं रहे. उन्हें तब बेहद झटका तब लगा जब निर्माता- निर्देशक सुभाष घई ने फिल्म 'रामलखन' में उनके स्थान पर संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को साइन कर लिया. इसके बाद इजाजत (1987), लिबास (1988) और परिंदा (1989), 1942 ए लव स्टोरी (1993) में भी उनका संगीत काफी पसंद किया गया. आरडी बर्मन ने अपने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में लगगभ 300 हिन्दी फिल्मों के लिए संगीत दिया. हिन्दी फिल्मों के अलावा बंगला, तेलुगू, तमिल, उड़िया और मराठी फिल्मों में भी अपने संगीत के जादू से उन्होंने श्रोताओं को मदहोश किया. इनमें सनम तेरी कसम, मासूम और 1942 ए लवस्टोरी शमिल हैं. जिसमे 1942 ए लवस्टोरी उनका आकृ प्रोजेक्ट था. कहा जाता है की यदि वे इस फिल्म के बाद जीवित रहते तो ये उनकी कमबैक मूवी होती पर अफ़सोस ये नहीं हो पाया कहा जाता है की काफी लंबे समय बाद 90 के दशक की शुरुआत में उन्हें विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म '1942 अ लव स्टोरी' में संगीत देने का मौका मिला.फिल्म के सारे गाने सुपरहिट साबित हुए लेकिन अफ़सोस कि इसकी कामयाबी देखने के लिए ख़ुद आर डी बर्मन ज़िंदा नहीं थे. वो अपनी 'आख़िरी सफलता' को देखने से पहले ही दुनिया से विदा हो चुके थे.जावेद अख़्तर, ने इस फिल्म के गीत लिखे थे उन्होंने कहता था की हमारे यहां टैलेंट की कोई कद्र नहीं होती.बस वर्तमान देखा जाता है. इसी सोच की वजह से हमने आरडी जैसे जीनियस को खो दिया. गीतकारचार जनवरी 1994 को 55 साल की आयु में उनका निधन हो गया था. #R.D. Burman #R D Burman #R.D.Burman #Rahul Dev Burman #Rahul Dev Burman Death AnniversaryV #R D Burman Death Anniversary #Pancham Daa Death Anniversary #Pancham Da #Pancham Da death anniversary #Tribute to RD Burman हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article