मैं पद्मावती बोल रही हूं By Sharad Rai 12 Jan 2018 | एडिट 12 Jan 2018 23:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर 800 सालों से मेरे अस्मिता को तार-तार करने वाले कौन है मेरे अपने या विदेशी ? 800 साल पहले करीब सन 1303 के आस पास एक इतिहास रचा गया था, 600 साल पहले (सन 1950) में उस इतिहास को रचनाबद्ध किया गया- कल्पनाओं के सहारे। और, पिछले 6 महीनों में उस मर्यादित काव्य कथा के चिथड़े चिथड़े किए गए हैं। उस काव्य कथा की नायिका ‘ पद्मावती’ (Padmavati) जो अपने समग्र व्यक्तित्व के साथ चित्तौड़गढ़ की महारानी थी, अपने नाम की एक (1 आई/आंख) खोकर ‘पद्मावत’ (Padmavat) नाम से दर्शकों के सामने पेश किए जाने की तैयारी में हैं फिर भी प्रदेश- सरकारें उसकी चलती-फिरती तस्वीर को छविग्रहों में चलाने से कतरा रही हैं, या कह सकते हैं घबरा रही हैं! मैं, उस पद्मिनी - जिसे आप “पद्मावती” के नाम से बुलाते हैं कि आत्मा हूं। मुझ पर क्या गुजरी है, इससे बे-परवाह सब अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं। मुझे तस्वीरों में उकेरने वाले ‘मेकर’ कि अपनी सोच है! मेरी मर्यादा की दुहाई-बघारने वालों से ना कि अपनी सोच! सत्ता और विपक्ष की अपनी सोच! सेंसर बोर्ड की अपनी सोच! पुलिस- प्रशासन की अपनी सोच! और तो और, मुझे दर्शकों के सामने प्रतियोगिता में ला खड़ा करने वाले ’वितरकों’ की अपनी सोच है। मेरा कंपटीशन भी कराया जा रहा है तो किससे? औरत की माहवारी के बहाव को सोफ्ता देने की सोच रखने वाली फिल्म ‘पैडमैन’ से! मैं कृतार्थ हो रही हूं या वे लोग जो मेरे लिए रखी गई परिचर्चाओं में बहस करते हैं? मैं सोच नहीं पा रही हूं कि मेरी अस्मिता को तार तार करने वाले कौन हैं- मेरे अपने या विदेशी (जिनको ‘खिलजी’ नाम से बुलाते हैं आप) ? सच कहूं तो मैं भी खुद को मलिक मोहम्मद जायसी की किताब ‘पद्मावत’ से ही जान पाई हूं। सिंहलगढ़ (आज का श्रीलंका) के महाराज की रूपसी कन्या जब 8 साल की थी तभी से उसकी खूबसूरती की चर्चा शुरु हो गई थी। वह कन्या- यानी मैं, कब कली से फूल बनी और कब फूल पर भोरें मंडराने लगे, कवि जायसी ही जानते हैं। वह रुप से कन्या निर्भिक थी, तलवारबाज थी, घुड़सवार थी- जिसकी चर्चा खुशबू सी फैलने लगी और मुझे खुद मेरी यौवनता का एहसास तब हुआ जब चित्तौड़गढ़ के महाराज रतन सिंह का प्रेम-पत्र तोते से प्राप्त हुआ। बेशक श्रीलंका और भारत के बीच राम युग में सेतु था, रावण ने जब सीता का हरण किया था तब उसके पास विमान था लेकिन, ‘जायसी’ ने हमारे प्यार में प्रगाढ़ता लाने के लिए तोता हीरामन को माध्यम बनाया था। पिता महाराज को जब भनक लग गई की बिटिया युवा हो गई है तो विवाह-स्वयंवर रच दिया और मैं महाराज रतन सिंह को वरन राजपूताने की आन बान और शान बन गई। खूबसूरती तो चर्चा पाती ही है। रानी ‘ घूम’ नृत्य करती थी या नहीं, यह तो जेसी नहीं लिख पाए, मगर मेरी खूबसूरती की चर्चा से दिल्ली के शासक ‘खिलजी’ के मन में तरंगे उठ गई। वह खिलजी वंशज-जो सगे चाचा को मारकर दिल्ली की सल्तनत पर बैठा था और पूरे आर्यावर्त पर राज्य-विस्तार के सपने देख रहा था- एक स्त्री को पाने की लालसा में कामांध हो गया। आगे की कहानी मुझे ही परदे से अब दस्त करने की व्यथा है। मुझे पाने की सारी कवायद में खिलजी यहां तक तैयार हो गया कि मेरी खूबसूरती की तरास को शीशे में देख कर ही शांत हो लेगा और राज्य को बख्श देगा ऐसा वादा किया। वह धोखे का खेल खेलने लगे। और मेरे बहादुर सिपहसलारों गोरा और बादल को मौत के घाट उतारा। मेरे पति महाराज रतन सिंह को कैदी बनाया। और अंततः अपनी अस्मिता को बचाने के लिए मैंने जौहर किया। मेरे साथ 16000 राजपूतानी अभी आग में जलकर भस्म हो गई। मगर, हम औरतें आततायी राजा को हाथ नहीं आयी। अब, कि मेरा नाम बदलकर लोगों दिखा ने दी जाऊं। खिलजी कहां से आया कहां गया, यह जिक्र भी फिल्म से गायब है। लेकिन मेरे विरोध की आंधी अभी तक जारी है। लोग पद्मावती की छाया के लिए लड़ रहे हैं। 13 वीं सदी की ‘पद्मिनी’ और 16 वीं सदी की ‘पद्मावत’ की ‘पद्मावती’ का सच जानने की जरूरत किसी को नहीं है। वैसे ही, जैसे असल जिंदगी में पर्दे की पद्मावती को जीने वाली तारिका (दीपिका पादुकोण) पर्दे के खिलजी (रणवीर सिंह) से बेपनाह मोहब्बत करती है और परदे के रथ (शाहिद कपूर) उनके प्यार से ईर्ष्या करते हैं! सच को स्वीकृति है और कहानी के लिए लड़ाई! यही व्यथा है मेरी!! #Deepika Padukone #Padmavati #Padman हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article