जीत उपेंद्र की वापसी पर्दे पर! 'चट्टान' का निडर पोलिस ऑफिसर उस दौर की याद दिलाता है जब... By Sharad Rai 24 Jul 2023 | एडिट 24 Jul 2023 11:29 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर १९८० में एक दौर आया था वीडियो फिल्मों का। नारी हीरा जैसे मीडिया मुगल ने सिनेमा को एक नई शुरुवात दिया था वीडियो फिल्में बनाने की शुरुवात करके। उस दौर की आरंभिक वीडियो फिल्मों से ('डॉन-२', 'स्केंडल' आदि) से दो लड़कों की खूब चर्चा हुई , ये थे- आदित्य पंचोली और जीत उपेंद्र। बाद में दोनो बड़े पर्दे पर आगए। जीत उपेंद्र ने नासिरुद्दीन शाह के साथ 'पनाह', आमिर खान के साथ 'अफसाना प्यार का' आदि कई हिन्दी फ़िल्में किया l फिर वह हिंदी के साथ साथ मलयालम, गुजराती, राजस्थानी, भोजपुरी, कन्नड़, तामिल सिनेमा को अधिक समय देने लगे। वह फिल्मों में कई यादगार रोल्स किये l जिनमें 'दिल दोस्ती', 'परदेशी', 'ढोलना', आतंक, शिखंडी(गुजराती), जांनी वॉकर (मलयालम), 'माँ का आँचल' (भोजपुरी ), 'शिवा रंजनी' (तमिल) 'दूध का क़र्ज़, 'चुनड़ी', 'खून रो टीको' (राजस्थानी) आदि विशेष उल्लेखनीय रही हैं l अब वह फिर हिंदी फिल्म के पर्दे पर एक नई शुरुवात करने जा रहे हैं 'चट्टान' के साथ। प्रस्तुत है जीत उपेंद्र से उनकी नई फिल्म को लेकर बातचीत- आपकी आने वाली नई फिल्म 'चट्टान' को लेकर चर्चा है कि फिल्म '90 के दशक की एक सत्य घटना पर आधारित है इसलिए फिल्म का पूरा परिदृश्य उस समय के अनुकूल बनाया गया है, क्या यह सही है? जी हां, एक जांबाज पोलिस ऑफिसर की कहानी है 'चट्टान' - जो 90 के दशक में मध्यप्रदेश की एक लोकेशन पर घटित हुआ था। इसलिए सारी चीजें उस समय के माकूल हैं। मैं उस पोलिस वाले कि भूमिका में हूं और मेरे साथ मेरी वाईफ की भूमिका में रजनिका जी का सफर है। जब कोई अभिनेता किसी रियल कैरेक्टर की प्ले करता है तो अपने किरदार को आत्मसात करने के लिए अपने आसपास विचरते हुए किसी न किसी व्यक्ति विशेष के मैनेरिज्म को ज़रूर अपनाता है आपने इस दिशा में क्या किया है? मैंने अपने कैरियर में हिंदी, राजस्थानी, मालयालम, भोजपुरी, तामिल और गुजराती मिलाकर १५० से भी अधिक फ़िल्में की है पर किसी भी रोल में कभी किसी की कॉपी नहीं की और ना ही मेरा कॉपी करने में विश्वास है। जब 90 के दौर की वास्तविक कहानी विशेष पर आधारित फिल्म 'चट्टान' में निडर बहादुर पुलिस अफसर रंजीत सिंह का रोल करने का अवसर आया तब भी मैंने अपने सहज और स्वाभाविक मौलिक रूप को ही प्राथमिकता दिया और निर्देशक सुदीप डी.मुखर्जी भी यही चाहते थे कि मैं उनके विजन का पात्र लगूं। बिलकुल कस्बे का नेचरल पुलिस अफसर मैंने इसका पूरा ध्यान रखा है। मेरा रोल हीरोईज़्म से कौसो मील दूर है। आपका लम्बा कैरियर रहा और फिल्मों में बहुत उतार चढाव का दौर आपने करीब से देखा है। अपना रोल मॉडल किसे मानते हैं? मैंने कभी किसी को अपना आइडियल नहीं माना फिर भी मेरे मन मस्तिष्क पर डेनी डेन्जोप्पा हमेशा हावी रहे। उनका अभिनय और मैनरिज़्म मुझे बहुत अच्छा लगता है उनकी खूबियां अनायास बहुत कुछ सिखा जाती हैं। पिछले कुछ सालों में फिल्मों ने नई करवट बदली है। स्टोरी टेलिंग,म्यूजिक और टेक्नोलॉजी सभी पक्षों में बदलाव आये हैं ऐसी स्थिति में 90 के फ्लेवर की फिल्म करना आपके कैरियर के लिहाज़ से तर्कसंगत है? बदलाव तो प्रकृति की नियति है। मगर कुछ दौरों में ऐसा कुछ खास हो जाता है कि हमारे लिए धरोहर बन जाते हैं। उनसे लगाव हो जाता है। ऐसा ही फिल्मों का 90 का दौर था l अभी फ़िल्म इंडस्ट्री और ऑडियंस उस दौर की वापसी चाहती है मेरी फिल्म 'चट्टान' उसी की पहल है। आपकी फिल्म 90 के दौर की लगे इसके लिए किन किन पक्षों को इसमें शामिल किया गया है इसका खुलासा कीजिए? जीत उपेंद्र गहरी सोच में डूब जाते हैं फिर बड़े उत्साह के साथ बोल पड़ते हैं- ९० के परिवेश को हूबहू पेश करने क लिए सभी पात्रों के बॉडी लैंगुएज, ड्रेसअप, डायलॉग्स, एक्शन सीक्वेंस और म्यूजिक सभी पक्षों को उसी स्तर पर रखा गया है। और तो और टेक्नोलॉजी भी उस समय की इस्तेमाल की गई है फिल्म पूरी तरह 90 के कलेवर की लगे उसके लिये हर छोटी बड़ी बातों का ध्यान रखा गया है। निर्देशक सुदीप डी. मुखर्जी जी के साथ आपके कैसे अनुभव रहे? शूटिंग के दौरान कभी किसी क्रिएटिव मसले पर कोई नोकझोंक हुई? सुदीप दा बहुत बढ़िया सुलझे हुए निर्देशक हैं। शूटिंग का माहौल बिलकुल घरेलू रहाl सुदीप जी को स्क्रिप्ट और कैमरे के साथ संगीत की भी गहरी समझ है। एक एक गाना उमदा बना है। यह फिल्म एक कम्प्लीट पैकेज है जिसमे एकबार फिर कम्प्लीट जीत उपेंद्र दिखेगा। #Jeet Upendra #Jeet Upendra Interview #Jeet Upendra films #Actor Jeet Upendra हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article