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वो एक दिन जब देव आनंद चेन्नई के चेहरे पर एक आनंदमयी मुस्कान लाये थे

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By Mayapuri Desk
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वो एक दिन जब देव आनंद चेन्नई के चेहरे पर एक आनंदमयी मुस्कान लाये थे

देव आनंद भगवान नहीं थे। देव संत नहीं थे। देव पोप (रोम का पादरी) नहीं थे। देव होलीमेन या गॉडमेन भी नहीं थे। देव सिर्फ किसी अन्य इंसान की तरह ही थे। फिर वह जादू और उनके बारे में वह चुंबकीय रहस्य क्या था जो सभी उम्र के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों, राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, विभिन्न दलों के अन्य राजनेताओं, जनरलों, मेजरों, कप्तानों और सैनिकों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों, स्वामियों, मुल्लाहों को आकर्षित करता हैं, और यहां तक कि उनकी खुद की पीढ़ी को और अन्य सितारे जिनमे पुरुष और महिलाए शामिल है और यहां तक वह लोगों जो उनके बारे में कुछ नहीं जानते थे और उनकी कई शानदार उपलब्धियों के बारे में भी उन्हें कुछ नहीं पता था, को भी देव की पर्सनालिटी ने आकर्षित किया था। विभिन्न स्थानों पर हुए, अलग-अलग समय पर, अलग-अलग मौकों पर, मैं हर इवेंट और फंक्शनस में उनके साथ था और मैं कभी समझ नहीं पाया कि देव आनंद के अंदर का वह जादू क्या था। -अली पीटर जॉन

जब देव आनंद साहब के साथ चेन्नई का सफर तय हुआ

वो एक दिन जब देव आनंद चेन्नई के चेहरे पर एक आनंदमयी मुस्कान लाये थेकिसी पब्लिक फंक्शन में भाग लेने के लिए देव साहब को सहमत करना बहुत मुश्किल था और मुझे इस बारे में पता था। लेकिन मेरा इंडियन एक्सप्रेस मैनेजमेंट चाहता था कि वह साउथ स्क्रीन अवार्ड्स में मुख्य अतिथि बने और देव चाहते थे कि मैं उनसे बात करूं। मैंने ऐसा किया था और यह तब खत्म हुआ जब वह इस कंडीशन पर सहमत हुए कि मैं उनके साथ चेन्नई जाऊँगा।

वह हवाई अड्डे पर एक घंटे पहले ही पहुँच गये थे क्योंकि वह हमेशा हर नियम का पालन करने में विश्वास रखते थे। उनके पास हमेशा किसी भी एयरलाइंस में किसी भी एयरक्राफ्ट की पहली लाइन में एक सीट होती थी जहां वह अपनी कैप पहन अपने चेहरे को कवर करके बैठते थे। उन्होंने हमेशा की तरह फ्लाइट में पूरे रास्ते के दौरान एक गिलास पानी भी नहीं माँगा था।

हम ने ताज कोनेमारा होटल में चेकइन किया था और उन्होंने यह देखा की मेरा रूम उनके बगल में ही था। उन्होंने मुझे उनके लिए आए सभी कॉल्स पिक करने को कहा था।

देव साहब ने भी  थी की कमल हासन  के अभिनय की तारीफ

पहला फोन कमल हासन का था जिसने कहा कि वह श्री देव आनंद को अपना सम्मान देना चाहते थे। मैंने देव साहब को कमल के अनुरोध के बारे में बताया और देव साहब ने कहा, “उसे बुलाओ, वह एक अच्छा अभिनेता है” और इससे पहले कि मैं अपनी चाय ले पाता, कमल होटल में देव साहब के कमरे में थे’ और मैंने देखा कि कमल देव साहब के बगल में एक स्टूल पर बैठे थे, जब तक कि देव साहब ने उन्हें कंधों से पकड़ कर अपने साथ बैठने को कहा था। और इससे पहले कि उनकी बातचीत आगे बढ़ पाती, देव साहब ने उन्हें उनके साथ हिंदी में फिल्म बनाने के अपने विचार के बारे में पहले ही बता दिया था और कमल ने कहा था, “किसी भी समय आप कहे, मैं तैयार हूँ, यह मेरे लिए सम्मान की बात होगी।”

मैंने कमल को लिफ्ट तक छोड़ा और उसी लिफ्ट से रजनीकांत निकले जिन्होंने मुझे बताया कि वह ठीक ग्यारह बजे आ गए  हैं। दोनों दिग्गजों ने एक-दूसरे का अभिवादन किया और रजनी देव साहब के पास पहुंचे। रजनी ने उस फ्लोर पर से उठने से इंकार कर दिया जहां वह देव साहब के चरणों में बैठे थे, हालांकि देव साहब उन्हें बताते रहे कि उन्हें अपने पैरों के पास लोगो को बैठाना पसंद नहीं हैं। मैंने रजनी जैसा स्टार फैन पहले कभी नहीं देखा था।

दोपहर के करीब, देव साहब ने मुझे बताया कि हमें शिवाजी गणेशन ने दोपहर के भोजन के लिए अपने घर पर आमंत्रित किया था और मैं हैरान रह गया था क्योंकि मुझे पता था कि देव आनंद साहब के पास किसी के साथ दोपहर का भोजन करने का कोई चांस ही नहीं था। होटल की लॉबी के लिए नीचे जाने पर, देव साहब रुक गए और कहा, “अली मैंने कभी मसाला डोसा नहीं खाया है, चल थोडा हो जाए” और एक विशाल मसाला डोसा हमारी मेज पर आया और देव साहब को पता नहीं था कि इसके साथ क्या करना है और इससे पहले कि वह भी डोसा को छू सके, रेस्तरां के बाहर भारी भीड़ थी, उन्होंने जाहिर तौर पर कहानियों के बारे में सुना था कि देव साहब भोजन करने आए थे। उन्होंने बस डोसा चखा और कहा, “यह बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है” और वह मर्सिडीज में सवार हो गये और शिवाजी गणेशन के बंगले के लिए रवाना हो गए जहाँ स्टालवार्ट और उसका पूरा परिवार, ज्यादातर महिलाएँ उन्हें देखने की प्रतीक्षा कर रही थीं।

और वो गणेशन के बंगले की यादें

वो एक दिन जब देव आनंद चेन्नई के चेहरे पर एक आनंदमयी मुस्कान लाये थेगणेशन का बंगला एक पूरे गाँव की तरह विशाल था और गणेशन ने देव साहब को पूरे घर में घुमाया, जहाँ कई हॉल और छोटे और बड़े कमरे थे। चेन्नई में भगवान की तरह माने जाने वाले गणेश देव साहब के पीछे-पीछे चलते रहे और उन्हें ‘हैण्डसम यंग मैन’ कहा। घर में और भी कई महिलाएँ थीं और देव साहब जो शरारती मूड में थे ने गणेशन से पूछा “इनमें से कितनी महिलाएँ आपकी पत्नी हैं?” और गणेशन जोर से हंसे और कहा, “नॉटी यंग मैन”, गणेशन ने ‘यूसुफ’ (दिलीप कुमार) के बारे में पूछताछ की और कहा, “महान अभिनेता है मेरे दोस्त यूसुफ।”

गणेशन पर्सनल हो गए और बताया, “देव साहब, बॉम्बे की लड़की “खुशबू” मेरे पारिवारिक जीवन को खराब कर रही है।” यह वह समय था जब मीडिया प्रभु के बारे में कहानियों से भरा था, गणेशन के अभिनेता बेटे का खुशबू के साथ अफेयर था। देव साहब ने जब खाने की मेज पर कई तरह के व्यंजन से टेबल को सजा हुआ देखा, वह लगभग हैरान दिख रहे थे और देव गणेशन के घर से बाहर निकल आए उन्हें धन्यवाद देने और फिर मिलने का वादा करके। गणेशन के बंगले के बाहर एक विशाल भीड़ थी जिसने देव साहब के लिए इस तरह से तालियाँ बजाई कि वे अक्सर कहते थे कि वह इसे कभी नहीं भूल सकते थे। यह दो महान दोस्तों के बीच मिलने का वादा था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका था और आपने ऐसा क्यों नहीं होने दिया, हे भगवान।

देव आनंद साहब ने अपने नार्मल शेड्यूल का पालन किया और दोपहर के भोजन के समय के दौरान किसी भी तरह की हलचल नहीं की थी और अपनी स्क्रिप्ट्स उन लार्ज नोटबुक्स में एक कलम से लिखते रहे।

पुरस्कार समारोह शाम 6 बजे शुरू होना था और देव साहब ने मुझसे कहा कि हमें किसी भी परिस्थिति में देर नहीं करनी चाहिए। हम साढ़े पाँच बजे कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे और भारी भीड़ को देखकर देव साहब हैरान रह गए। उन्हें कई युवा लड़कियों द्वारा मंच पर ले जाया गया और एक कुर्सी पर बैठने के लिए कहा गया जो एक सिंहासन की तरह दिखती थी और जितना मैं देव साहब को जानता था, मुझे पता था कि वह बहुत असहज महसूस कर रहे थे।

मेरे पास एक रहस्य था जिसे मैं प्रकट नहीं करने वाला था। रजनी ने मुझे यह बताने के लिए फोन किया था कि वह लगभग 6ः30 बजे समारोह में पहुचेंगे। 6ः15 पर ही मैं भारी भीड़ को बेचैन होते हुए देख सकता था। और फिर उन्होंने समारोह में प्रवेश किया, थलाइवा जनता के प्रिय, रजनी ने प्लेन ब्लू जीन्स और मैचिंग की टी-शर्ट में पैर में हवाई सेंडल पहने हुए थे। उन्होंने मुझसे कहा था कि उनके आने या यहां तक कि उनकी उपस्थिति के बारे में कोई घोषणा नहीं होनी चाहिए क्योंकि उनका मानना था कि वे देव साहब के आसपास किसी भी जगह को परेशान करना नहीं चाहते थे। लेकिन आखिरकार, वह रजनी थे और ऐसा लग रहे थे कि जब वह कहीं होते थे तो लोग उनकी उपस्थिति को महसूस कर सकते थे।

भीड़ तब तक चुप रही जब तक कि दक्षिण के कई अन्य सितारे वहां नहीं आ गए और देव साहब जहां बैठे थे, उनके बगल में आके बैठ गये, लेकिन रजनी के अंत में प्रवेश करने पर किसी तरह का विस्फोट हुआ और मैं देव साहब के चेहरे पर एक दयालु मुस्कान देख सकता था। उस शाम सबसे ड्रामेटिक मोमेंट तब था जब रजनी देव साहब के पास गए और नीचे झुककर देव साहब के पैर छूने लगे और यह देख भीड़ पागल हो गई थी। और जब रजनी बोले तब मैं सैकड़ों लोगों को खुलकर रोते हुए देख सकता था। मैं रजनी की कही गई बातों को नहीं सुन पाया था और जब मैंने एक सहयोगी से पूछा तो उसने कहा, “रजनी ने कहा है कि वह देव साहब जैसे भगवान जैसे आदमी के साथ बैठने के लायक नहीं थे।” जो भीड़ रजनी के सभी कट्टर प्रशंसक की थी उन्होंने सोचा था कि अगर उनका भगवान किसी दूसरे आदमी के पैर छू सकता है, तो वह जरुर एक बड़ा ही अहम भगवान होगा। फंक्शन खत्म होने पर हंगामा हो सकता था, लेकिन रजनी को सिर्फ अपना हाथ उठाना पड़ा और चारों ओर पूरी शांति थी और लोगों ने बिना किसी नियम को तोड़ने के किसी भी तरह के संकेत के बिना कार्यक्रम स्थल को छोड़ दिया, क्योंकि देव साहब जैसे दुर्लभ अतिथि के सम्मान में रजनी ने उनसे ऐसा करने के लिए कहा था।

हम (मेरे संपादक, उनकी बेटी, मैं और देव साहब) दोपहर 2 बजे बॉम्बे के लिए रवाना होने वाले थे, अगले दिन देव साहब मुझे महिलाओं से समय पर निकलने का अनुरोध करने के लिए कहते रहे ताकि हम फ्लाइट को समय से पकड़ पाए। लेकिन लेडिज तो लेडीज हैं और वह देर करती रही थीं और एयरपोर्ट पहुंचने में हमारे पास बस एक घंटा ही था। देव साहब नाराज हो गए थे लेकिन उन्होंने ऐसा दिखाया नहीं था। जब हम हवाई अड्डे पर पहुँचे, तो फ्लाइट की अनाउंसमेंट की जा रही थी। और देव साहब को चार लोगों का सामान उठाते हुए और विमान की ओर भागते हुए देखना हैरान कर देने वाला सीन था, और यह सीन सैकड़ों लोगों के साथ सरासर प्रशंसा भी देख रहा था। यह चेन्नई में अनंत आनंद का काम था, जब देव साहब फ्लाइट में चढ़े, मैं पूरे चेन्नई को हाथ लहराते हुए देख सकता था जो कह रहे थे ‘पोइटो वंगो’ जिसका मतलब था “जाओ और फिर से वापस आओ”।

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