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झंझावात में चिड़िया: प्रबोध कुमार गोविल की तीखी नज़र!

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By Mayapuri Desk
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झंझावात में चिड़िया: प्रबोध कुमार गोविल की तीखी नज़र!

प्रबोध कुमार गोविल का साहस ही है वे फिल्मी सितारों की जिन्दगी में झाँकते हैं, उनके स्याह-सफेद, अंधेरों-उजालों में उजाला तलाशते हैं और साहित्य का हिस्सा बना देते हैं. वहाँ बहुत कुछ होता है जो कभी चुपके-चुपके देश की मर्यादाओं को चोट भी पहुँचाता है, हमारी संस्कृति-सभ्यता प्रभावित होती है,आर्थिक स्थिति चरमराती है,चरित्र हनन का खेल होता है और वासना,नशे में डूबे लोग देश के युवा लड़के-लड़कियों को भ्रमित करते हैं. अब तो राजनीति के भी हथकंडे फिल्मों के जरिये अपनाए जाते हैं.

दीपिका पादुकोण को देश की बेहतरीन और टॉप मॉडल्स के साथ रैंप वाक का अवसर मिला. हिमेश रेशमिया के साथ पॉप एल्बम और कन्नड़ फिल्म 'ऐश्वर्या' ने प्रमाणित किया कि बहुमुखी प्रतिभा वाली सीधी-सादी लड़की के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है. अपनी डेब्यू फ़िल्म 'ओम शांति ओम' की अपार सफलता के बाद विशेषज्ञ दीपिका को 'लेडी आफ द स्क्रीन' मानने लगे. वह स्टार किड्स का जमाना था. दीपिका स्टारपुत्री तो थी परन्तु अपना अलग मुकाम अपने दम पर बना रही थी. उसकी तुलना वहीदा रहमान से की जाने लगी.

गोविल जी लिखते हैं,"हमारी फिल्मों ने दो संस्कृतियों के सम्मिलित स्वर का स्वागत हमेशा से किया है. यही कारण है कि यहाँ कई मुस्लिम अभिनेत्रियाँ और अभिनेता नाम बदलकर इस तरह आए कि आम लोगों को उनका असली धर्म मालूम तक नहीं पड़ा." 

दीपिका के फिल्मों में आगमन का समय ऐसा था जब फिल्म जगत में विश्व सुन्दरियों की बाढ़ सी थी. ऐसे में चुनौतियां कम न थीं. दीपिका को 'गोलियों की रासलीला रामलीला' के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड मिला.

फिल्मों को विवादों में घसीटने का प्रचलन शुरु हो गया है. इस फिल्म को भी 'रामलीला' शब्द के चलते कोर्ट तक जाना पड़ा. कोर्ट ने रामलीला शब्द हटाकर फिल्म रिलीज करने को कहा.  यहाँ यह भी समझना जरुरी है, फिल्मों में ऐसे शब्द या प्रसंग फिल्माए जाते रहे हैं जो समाज के किसी वर्ग को आहत करते हैं. कभी नाम बदलकर खेल किया जाता था, तो कभी ऐतिहासिक संदर्भों के साथ छेड़छाड़ के रुप में किया जा रहा है. समाज प्रभावित हो रहा है. विरोध होना स्वाभाविक है.

दीपिका ने माडलिंग को नहीं छोड़ा. कई ब्रांड्स से जुड़ी रही. देहयष्टि को देखते हुए एक कम्पनी ने 2010 में उसे वर्ष की सबसे सेक्सी महिला का खिताब दिया था. 'चेन्नई एक्सप्रेस' भी सफल फिल्म रही. दीपिका को दुनिया की सर्वाधिक कामुक महिला भी कहा गया. गोविल जी स्पष्ट करते हैं, "इस बात का मतलब यह नहीं है कि उन्होंने उन्मुक्त प्रेम संबन्ध बनाये हैं या बनाने के लिए पुरुषों को आमंत्रित किया है. इसका अर्थ ये है कि उन्हें देखकर पुरुषों के मन में उनसे प्रेम करने की लालसा सर्वाधिक शिद्दत से जागती है."

2014 में दीपिका पर दौलत,शोहरत और पुरस्कारों की बारिश हुई. फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड,बेस्ट एक्ट्रेस का आइफा अवार्ड,रणवीर कपूर के साथ वर्ष की सर्वश्रेष्ठ जोड़ी का पुरस्कार,आइफा ने बेहतरीन एंटरटेनर के रुप में पुरस्कृत किया. मीडिया में भी धूम रही. 'फाइंडिंग फैनी' में दीपिका ने अपने अभिनय का लोहा मनवाया. उसने अमिताभ बच्चन और इरफान खान के साथ सार्थक सिनेमा शैली की बेहतरीन  फिल्म 'पीकू' की. इसी साल शाहरुख खान के साथ 'हैपी न्यू इयर' हिट रही. फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड फिर मिला और दीपिका को दशक की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रुप में स्वीकार किया गया. 

गोविल जी लिखते है, 2015 आते-आते दीपिका एक सफल,सजग,सम्पन्न और सुलझी हुई शख्सियस बन चुकी थी. वह समझती थी,यहाँ सब खुश नहीं हैं, सब कामयाब नहीं हैं और सबके सपने परवान नहीं चढ़ पाते. दीपिका ने पिता की तरह संसार के दुखी लोगों के लिए कुछ करने का निर्णय लिया. उसने 'लिव लव लाफ' फाउण्डेशन की शुरुआत की. उसने माना, वह कई बार अवसाद में रही है,अवसाद से बाहर निकाल कर लोगों को जीवन की मुख्य धारा में लाना उसका उद्देश्य है. 'बाजीराव मस्तानी' रिलीज हुई. इसमें दीपिका ने बाजीराव पेशवा की प्रेमिका और दूसरी पत्नी मस्तानी का किरदार निभाया. 

प्रबोध जी लिखते हैं, इस फिल्म के बारे में भी कहा गया कि उपन्यास से छेड़छाड़ करके इतिहास से खिलवाड़ किया गया है. ऐसे किसी भी विवाद को लेकर प्रबोध कुमार गोविल ने अपने स्पष्ट विचार रखे हैं. सहमति-असहमति पाठकों पर निर्भर करती है. दीपिका ने बतौर अभिनेत्री और प्रोड्यूसर 'छपाक' में काम किया. एसिड से झुलसे चेहरे की पीड़ा को लेकर दीपिका बहुत द्रवित हुई और उसने यह फिल्म बनाई. गोविल जी की भाषा, शैली प्रवाह के साथ पाठकों को जोड़ रहती हैं. वे गीतों की पंक्तियाँ गुनगुनाते हैं और चरित्रों से जोड़ते हैं. 

फिल्मी दुनिया के चरित्रों पर लिखना सहज नहीं है क्योंकि जो दिखता है,वह होता नहीं और जो होता है, वह दिखता नहीं. फिल्म शिक्षण का बहुत बड़ा माध्यम है, दुर्भाग्य से हम अपने उद्देश्य से भटक गये हैं और हमारा फिल्मी संसार अपना आदर्श स्वरुप नहीं दिखा पा रहा है. फिल्म जगत से जुड़े लोग अधिक समझते होंगे, अधिक समझना,जानना चाहिए और बेहतर करना चाहिए. आज जो भी हो रहा है,उसका प्रभाव पीढ़ियाँ भुगतेंगी. इसलिए फिल्में अच्छी,सार्थक,कलात्मक बने और उनका अच्छा संदेश जाए. गोविल जी का यह प्रयास स्तुत्य है,उन्होंने कोई नया द्वार खोला है, लोग आगे आएंगे और फिल्मों पर और भी लिखा जायेगा.  

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