एक समय ऐसा आया कि मैं कुछ भी करने को तैयार था - सतीश कौशिक By Mayapuri Desk 09 Mar 2023 | एडिट 09 Mar 2023 06:01 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर पूर्व इंटरव्यू कहते हैं फिल्म इण्डस्ट्री में सिर्फ काम बोलता है! काम अच्छा होता है तो यहां इंसान की सूरत और सीरत नहीं देखी जाती। लोग उसे उसके नाम से चाहने लगते हैं। जानने लगते हैं। अभिनेता और निर्देशक सतीश कौशिक के साथ भी यही हो रहा है, इन दिनों सतीश कौशिक ने जब तक बतौर अभिनेता काम किया, वो लोकप्रिय रहे। उनके फिल्मी नाम फिल्म- मुहब्बत, ‘कैलेंडर, फिल्म- मि. इण्डिया, ‘फनटास्टिक,” फिल्म-सागर, एयरपोर्ट” फिल्म-स्वर्ग” और कोरैक्ट, फिल्म- ठिकाना,” से बेहद लोकप्रिय हुए हैं। सतीश कौशिक पहले कामेडी एक्टर हैं जिनके काम के साथ साथ फिल्मी नाम भी बेहद लोकप्रिय हुए। - चंदा टंडन और जब एक्टिंग के साथ साथ सतीश कौशिक ने निर्देशन करने की जिम्मेदारी उठाई तो उन्हें एक्टर से भी ज्यादा सफलता हासिल हुई। उनकी पहली फिल्म ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ अभी रिलीज नहीं हुई है लेकिन फिल्म के हीरो और हीरोईन से लेकर फिल्म के जूँनियर आर्टिस्ट और स्पॉट ब्यॉय तक उनकी तरीफ कर रहे हैं। किसी भी निर्देशक के लिये कलाकारों का इतना जबर्दस्त स्पोर्ट मैंने पहले कभी नहीं देखा। न सिर्फ अच्छे एक्टर और अच्छे निर्देशक हैं सतीश कौशिक बल्कि बेहद अच्छे इंसान भी हैं। इस बात का सबूत मुझे तब मिला जब एक जूनियर कलाकार की बहन की बेटी के दिल के रूक जाने से मौत हो गई और सतीश कौशिक ने अपनी शूटिंग रोक दी। ये कहकर कि मैं भी इंसान हूँ ये घटना मेरे घर में भी घट सकती थी, तब क्या मैं शूटिंग करता? इसलिये जब आज हमारे साथी के घर में ये हादसा हुआ है तो मेरा ये फर्ज बनता है कि मैं अपनी शूटिंग कैंसिल कर दूं। इतना ही नहीं सतीश कौशिक ने उस कलाकार को छुट्टी दी और उसे पैसे भी भिजवाये। आज सतीश कौशिक बतौर एक्टर तो जाने ही जाते हैं। निर्देशक के रूप में भी वो अपने नाम के आगे चाँद लगाने की पूरी-पूरी तैयारी में हैं। ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ के साथ-साथ वो बॉनी कपूर की दूसरी फिल्म प्रेम भी कर रहे हैं। एक तरफ रूप की रानी.....! में अनिल कपूर और श्रीदेवी हैं तो दूसरी तरफ प्रेम” में संजय कपूर और तब्बु हैं। दो फिल्में, दो आटिस्ट, कैसे हैंडिल कर रहे हैं सतीश कौशिक, अनिल कपूर, श्रीदेवी और संजय, तब्बु को? हर निर्देशक के पास अपना एक स्टाइल होता है, अपना एक तरीका होता हैं काम करने का। इस्टैब्लिश आटिस्टों के साथ काम करना आसान होता है। हमें क्या चाहिये वो आसानी से समझ जाते हैं और हमारे मनमुताबिक शॉट देते हैं। जिसके लिये इतनी ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती हैं। किन्तु नये कलाकारों के साथ आपको ‘टीचर’ या ‘गारजियन’ जैसे पेश आना पड़ता है, उन्हें हर एक शॉट, हंर एक बात बहुत ‘डीटेल’ में समझाना पड़ता है। मेरे संबंध मेरे सभी कलाकारों के साथ बहुत अच्छे हैं। अपने किसी भी कलाकार को डायरेक्ट करते समय मुझे कभी ऐसा नही लगा कि मैं नया हूँ। मुझे सभी कलाकार पूरा-पूरा सहयोग दे रहे हैं। आनिल कपूर श्रीदेवी मुझे आऊट आफ द वे को आपरेट कर रहे हैं, इससे बड़ी बात एक नये निर्देशक के लिए क्या हो सकती है, सतीश कौशिक ने अपना निर्देशक शेखर कपूर के पास, एक सहायक के रूप मेंु शुरू किया। लेकिन जब सतीश कौशिक को बड़ी फिल्म ‘रूप की रानी... मिली निर्देशन के लिये तो अपने ‘बाॅस’ शेखर कपूर से सतीश अलग हो गये शेखर कपूर को एक सहायक की जरूरत है। मैं जब भी शेखर को घर पर फोन करता, वो मुझे मिलते नहीं थे फोन कर करके मैं तंग आ गया था। एक दिन मैंने ये निर्णय कर लिया कि चाहे जो हो जाये मैं शेखर कपूर से आज मिलकर ही रहंूगा मैंने घर पर जब फोन किया तो पता चला कि वो एयरपोर्ट चले गये, सुबह 7 बजे की फ्लईट से कहीं जा रहे है। मेरे पास में 4 रूपये थे। मैं एयरपोर्ट भागा, 3 रूपये खर्च करके अंदर लांज में शेखर को ढूंढ़ निकाला। शेखर कपूर से अपनी प्राब्लस बताई और कहाँ कि मैं उन्हें सहायक के रूप में जाॅईन करना चाहता हूँ। शेखर कपूर ने मुझे अपने साथ काम करने की इजाजत दी। मैंने शेखर कपूर के साथ तीन फिल्में की ‘मासूम’ ‘जोशिले’ ‘मिस्टर... इण्डिया’। हाँ रूप की रानी...” के लिये मिलने के बाद हम प्रोफेशनली अलग हो गये। लेकिन मैं जितने भी दिन शेखर कपूर के साथ था, शेखर ने मुझे बहुत अच्छी तरह रखा, बिल्कुल एक दोस्त की तरह पेश आये। इतना ही नहीं बल्कि शेखर कपूर के इतने खूबसूरत स्वभाव से मैं उनके और भी करीब चला गया, उनकी एक एड एजेंजी में उनके साथ पार्टनर भी बन गया। शेखर कपूर जैसे इंसान बहुत कम लोगों को नसीब होते हैं। मैं कितना भी बड़ा निर्देशक बन जाऊं अपने निर्देशक शेखर कपूर के लिये मैं सतीश कौशिक ही रहंूगा। सतीश कौशिक नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा (एन. एस. डी) के विद्यार्थी रहे है। वो बम्बई सिर्फ इसलिये आये थे कि उन्हें फिल्मों में काम करना था लेकिन यहां आने के बाद पता चला, जिन्दगी आसान नहीं है। अपनी रोजी रोटी कमाने के लिये सिर्फ फिल्मों का सहारा लेना तब बहुत मुश्किल था। इसलिये मैं टैक्सटाईल मिल में कैरियर की नौकरी कर ली। साथ ही एक्टिंग के लिये स्ट्रगल भी करता रहा। मुझे फिल्म मिली चकरा इस फिल्म में मेरा बहुत बहुत बहुत छोटा रोल था। यूं समझ लीजिए न के बराबर। मुझे एण्ट्री मिल गई थी, इण्डस्ट्री में। मैं कामेडी किंग मेहमूद बनना चाहता था। मुझे फिल्में मिलती गई लेकिन फिर बाद में मुझे महसूस हुआ कि यहां कामेडीयन की कोई रेप्यूटेशन नहीं न उनका कोई महत्व है। लेकिन मेरे पास नहीं होते थे, एक बार का खाना खा लेता था। तो दूसरे वक्त का खाना कहां से आयेगा इसके बारे में मैं खुद नहीं जानता था। मैं इण्डस्ट्री में रहना चाहता था और एक समय ऐसा आया कि मैं इण्डस्ट्री में कुछ भी करने के लिए तैयार था। और अब जब निर्देशक के रूप में इतना बड़ा ब्रेक मिला है तो क्या एक्टिंग करना छोड़ रहे हैं सतीश कौशिक? यदि ऐसा हुआ तो लोगों का वो ‘एयरपोर्ट’,कैंलेडर, (मि. इण्डिया), ‘फनटास्टिक’ (सागर) भईये (मुहब्बत) के किरदार कहां देखने को मिलेेंगे? नहीं नहीं मैं एक्टिंग करना नहीं छोड़ रहा। मैं फिल्में कर रहा हूँ एक्टिंग मैं कैसे छोड़ सकता हूँ? वो तो मेरा पहला प्यार हैं। क्या सतीश कौशिक भगवान को मानते है? अचानक ही ये सवाल मेरे दिमाग में आया था और अचानक ही मैंने उनसे जानना चाहा था। पहले मैं जब अपने घर से निकलता था, तो मैं रोज सुबह एक मंदिर से गुजरता था। लेकिन मैंने कभी उस मंदिर की तरफ झांककर भी नहीं देखा। लेकिन ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ और ‘प्रेम’ के मिल जाने के बाद मैं उस मंदिर में गया, दोनों हाथ जोड़कर मैंने भगवान को धन्यावाद दिया। लेकिन एक दिन जानती हैं क्या होगा? जब मैं भगवान मुझसे बोलंेगे ‘तुमने मुझे क्या समझ रखा है क्या मैं कोई भगवान हूँ? खैर। ये तो मजाक की बात है लेकिन जब ‘प्रेम’ लांच हुई थी तो मैं और बाॅनी कपूर कई जगह गये तीर्थ यात्रा पर। यह लेख दिनांक 02-09-1990 मायापुरी के पुराने अंक 832 से लिया गया है #Satish Kaushik #sridevi #bonny kapoor #chanda tondon #Kaagaz हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article