‘अब लोग देश की आजादी को इंज्वॉय करने लगे हैं...!’- मनोज कुमार By Mayapuri Desk 07 Aug 2019 | एडिट 07 Aug 2019 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर शरद राय फिल्मी दुनिया के ‘भारत’ मनोज कुमार की फिल्मों के गाने अगर स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) या गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के अवसर पर न बजाये जाएं तो बहुत संभव है कि बहुतों को मालूम ही नहीं पड़ेगा कि उस दिन देश के लिए क्या महत्व रखता है। खुद भारत कुमार यानी मनोज कुमार क्या सोचते हैं अपनी उपलब्धि को लेकर और देश की आजादी को लेकर आईये उनसे ही सुनते हैं- अपनी देश भक्ति से लवरेज फिल्मों (‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘शहीद’, ‘क्रांति’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’) को जब आज की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी से जोड़कर देखते हैं तो क्या महसूस करते हैं? - मत पूछिये! तब लोगों को इंतजार रहता था कि मनोज कुमार की फिल्म आ रही है, राजकपूर की फिल्म आ रही है या गुरूदत्त की फिल्म आ रही है। आज अपनी फिल्मों की स्टार कास्ट को साथ लेकर रियलिटी शोज में जाने की मजबूरी है। हम बिकते थे, आज बेचते हैं।’ देश के नये परिदृश्य में आजादी के सेलिब्रेशन को लेकर आप क्या सोचते हैं ? - ‘बदलाव का दौर है। सेलिब्रेशन तो बनता है। लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं। जनता में जोश है इस साल का तिरंगा लहराया जाना मेरे लिए बचपन की यादों को ताजा करने जैसा है। मेरा परिवार पार्टिशन के बाद भारत आया था, तब मैं सिर्फ 10 साल का था। मेरे पिताजी मुझे दिल्ली में लालकिले पर झंडा फहराते हुए देखने के लिए लेकर गये थे। तब पंडितजी (पं.जवाहर लाल नेहरू) को झंडा फहराते हुए देखना मेरे लिए किसी बहुत बड़े कौतुहल से कम नहीं था। एक बच्चे के मन में देशभक्ति के गूंजते नारों की जो छाप पड़ी, आज भी ज्यों की त्यों हैं। मैंने सोचा था मुझे भी वही करना चाहिए जो देश की सेवा करने जैसा काम हो। तब... मैंने पंडितजी को झंडा फहराते जिस रूप में देखा था, वो विस्मृतियां आज भी हैं अब श्री नरेन्द्रमोदी जी प्रधानमंत्री हैं देश में आशा की नई किरण जागृत हुई है। तो मन में फिर से तिरंगे को लहराये जाते देखने की आस प्रबल हुई है। ‘मैं नहीं कहता कि हमारे देश को नेतृत्व देने वाले बीच के लोग कमतर थे...ना, सभी ने अपनी ड्यूटी जिम्मेदारी के साथ निभाई थी, निभाई है। व्यवस्था में जो क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत देश को आज है, वो ढेर जरूरी हो गया दिखता है। माननीय प्रधानमंत्री जी जो कदम उठा रहे हैं उसके परिणाम हमें आगे समझ में आयेंगे। देश में उम्मीद जगी है और मैं भी सभी की तरह आशावान हूं।’ आपने देश की वर्तमान समस्याओं को हमेशा पर्दे पर उकेरा है। क्या ऐसी सोच अब मन में नहीं उठती ? - सिर्फ सोच उठने से क्या होता है। सिनेमा बनाना एक व्यापार भी तो है। और आज इस व्यापार का रूप बदल गया है। मैंने ‘पूरब और पश्चिम’ बनाई थी जब लोग विदेशी कल्चर से प्रभावित होते जा रहे थे। ‘उपकार’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ उस समय की स्थिति को दर्शाती फिल्म थी। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की प्रेरणा से हमने ‘जय जवान जय किसान’ के मंत्र को पर्दे पर दिखाने की कोशिश की थी। ‘रोटी...’ तो आज भी वैसी ही समस्या है। ‘क्रांति’ और दूसरी फिल्में सभी देश का आईना रही हैं। अब... स्वास्थय और खुद की एकाग्रता को लेकर सोचता हूं। समस्यायें पहले से कम नहीं हैं। एक फिल्म मेकर के लिए बहुत कुछ है जो पर्दे पर दिखा सकता है और देश का भला कर सकता है। ‘करप्शन’ और ‘आतंकवाद’ को व्यक्ति के नजरिये से देखा जाए तो हमारे पास देश को समर्पित करके फिल्म बनाने के लिए सामाग्री की कमी नहीं है। इन दिनों जो फिल्में आ रही हैं, उनसे संतुष्ट हैं आप ? - मैं फिल्में नहीं देख पाता हूं। सुना है कि तकनीकि डेवलपमेंट बहुत हो गया है। पहले हमारे पास कम्प्यूटाइज साधन नहीं थे तब हम कैमरे के साथ खेलते थे। हमने अपनी फिल्मों में बिना साधन रहते जो दिखाया है, उससे आज को नहीं मापा जा सकता। आज तो जितना भी किया जाए कम है, क्योंकि साधन हैं। आज जो सोच सकते हैं दिखा सकते हैं, तब ऐसा नहीं था। ‘खैर, तकनीक को छोड़ो, हम देश की बातें करते हैं।’ मनोज जी टॉपिक बदल देते हैं। ‘तिरंगा हमारी आन बान और शान है। मैं कहना चाहूंगा कि 15 अगस्त को सिर्फ प्रधानमंत्री ही नहीं, देश का हर व्यक्ति राष्ट्रध्वज को सेल्यूट करे। राष्ट्रभक्ति के गीत गाये। हमारी फिल्मों में जो गाने हैं, जब सुबह-सुबह रेडियो- टीवी पर बजते हैं तब वे देश भक्ति का जोश हमारी रगो में दौड़ा देते हैं। कोई महसूस करे ना करे, मैं तो करता हूं और इंतजार करता हूं कि चारों तरफ गीत बजता सुनाई पड़े - ‘मेरे देश की धरती सोना उगले- उगले हीरे मोती...मेरे देश की धरती!’ #interview #Manoj Kumar हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article