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INTERVIEW!! ‘‘जो जितना बड़ा एक्टर होता हैं वो उतना डाउन टू अर्थ होता है ’’ -धनुष

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By Mayapuri Desk
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INTERVIEW!! ‘‘जो जितना बड़ा एक्टर होता हैं वो उतना डाउन टू अर्थ होता है ’’ -धनुष

- श्याम शर्मा
दक्षिण भारतीय फिल्मों के तमिल स्टार धनुष को उनकी दो हिन्दी फिल्मों रांझणा और शमिताभ से कहीं ज्यादा पहचान मिली उनके द्वारा गाये गीत ‘कोलावरी’ से । इस गीत को हिन्दी बेल्ट में काफी पंसद किया गया। धनुष साउथ में लेखक और अभिनेता के तौर पर जाने जाते हैं। वहां के सुपर स्टार रजनीकांत के दामाद धनुष बहुत जल्द फिल्म ‘ वीआईपी टू- ललकार’ में काजोल के साथ दो दो हाथ करते हुए नजर आने वाले हैं। फिल्म को लेकर धनुष से एक मुलाकात।

काजोल के बारे में कैसे सोचा ?

- यहां धनुष का कहना है कि जब हमने वीआईपी टू पर काम करना शुरू किया तो कहानी के दूसरे अहम् रोल वसुंधरा को लेकर सोचा कि इस रोल के लिये किसका चुनाव किया जाये। अचानक मेरे दिमाग में काजोल मैम का नाम आया। पता लगा कि काजोल मैम तो इन दिनों काम ही नहीं कर रही हैं। लेकिन मैंने हार न मानते हुए एक बार उनसे से बात करने का निश्चय किया। मिलने पर काजोल मैम ने स्क्रिप्ट सुनी तो उन्हें अपना रोल बहुत पंसद आया और वे फिल्म में काम करने के लिये राजी हो गई।

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फिर भी काजोल जैसी मुडी अभिनेत्री ने एक गैर भाषाई फिल्म करना कैसे स्वीकार कर लिया ?

- काजोल मैम मेरे लिये अजांन नहीं हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि वे पिछले पंद्रह सालों से मेरी बहुत अच्छी दोस्त रही हैं। हमारे बीच अच्छा कमन्यूकेशन रहा है। इसलिये उन्हें विश्वास था कि मैं अगर उनके पास कोई ऑफर लेकर आया हूं तो उसमें कुछ तो बात होगी। आप कह सकते हैं अच्छे रोल और मेरी अच्छी दोस्ती को देखते हुए वे फिल्म करने के लिये तैयार हो गई।

अगर काजोल काम न करती तो... क्या कोई अन्य अभिनेत्री भी दिमाग में थी ?

- ऐसी नौबत ही नहीं आई, क्योंकि पहली मीटिंग में ही काजोल मैम इस फिल्म में काम करने के लिए राजी हो गई थी।

फिल्म में आप और काजोल की किस तरह की प्रतिद्वंदिता है ?

- धनुष कहते हैं कि फिल्म में मेरी यानि रघुवरण और काजोल यानि वसुंधरा के बीच वैचारिक लड़ाई है लिहाजा हम अपने अपने विचारों को लेकर आपस में टकराते रहते हैं।

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आपका किरदार पहली फिल्म से कितना अलग है ?

- मेरा पहली फिल्म का ही विस्तारिक किरदार है यानि मुझे पार्ट टू में उस रोल की कंटीन्यूटी मेंटेन रखनी थी जैसे मेरी मेरे बोलने का अंदाज, चलने का स्टाईल और बॉडी लैंग्वेज आदि चीजों को मुझे वैसे ही रखकर चलना था जैसा पहली फिल्म वीआईपी में था। ये सब मुझे थोड़ा मुश्किल लगा, लेकिन मैंने उसमें जर्क नहीं दिया।

आपके सामने काजोल जैसी समर्थ अभिनेत्री थी तो क्या उनके साथ काम करते हुए कभी कोई प्रेशर महसूस किया ?

- मैंने अक्सर देखा है कि जो जितना बड़ा एक्टर होता है वो उतना ही डाउन टू अर्थ होता है। काजोल मैम की बात की जाये तो वे एक बेहतरीन अदाकारा होने के अलावा उतनी ही बढ़िया महिला भी हैं। दूसरे क्योंकि वे एक मंजी हुई एक्ट्रेस हैं लिहाजा उनके साथ काम करते हुए मैंने उनसे काफी कुछ सीखा।

काजोल के किरदार को लेकर क्या राय है?

- फिल्म वीआईपी काफी हंबल थी लेकिन वीआईपी टू में काजोल मैम का काफी भारी भरकम शख्सियत वाला किरदार है जिसका नाम वसुंधरा है। जिसमें एक गुरूर है, दंभ है और वो आत्म विश्वास से लबालब भरी बिजनेस वूमन है। इस किरदार को उन्होंने जिस प्रकार निभाया है उन्हें आप जब फिल्म में देखेंगे तो आपके मुंहू से वाह वाह निकलने वाला है।

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राझंणा की सफलता ने जहां आपके लिये बॉलीवुड के दरवाजे खोल दिये थे, वहीं शमिताभ जैसी बिग बजट फिल्म के न चलने का दुख तो हुआ होगा ?

- अगर मैं कहूं कि ऐसा कुछ नहीं तो ये बहुत बड़ा झूठ होगा, मुझे वाकई शमिताभ जैसी फिल्म न चलने का काफी दुख हुआ था क्योंकि मुझे उसमें एक तो लीजेंड अमिताभ जी के साथ काम करने का मौका हासिल हुआ था, दूसरे मैंने खुद भी काफी मेहनत की थी। उस समय जैसा फिल्म का लुक था उसे देखते हुए मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि फिल्म नहीं चलने वाली, लेकिन यह सब हमारे साथ होता रहता है। फिर भी अगर मुझे दोबारा कभी वैसा रोल ऑफर हुआ तो मैं जरूर करूंगा।

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