David Dhawan: मुझे उस के साथ काम ही नहीं करना जो मेरे साथ नहीं चल सकता धवन फैमिली अपने दोनों बच्चों, अनिल और राजेंद्र धवन को लेकर कानपुर शिफ्ट हो गयी और यहाँ इस छोटे से राजिंदर धवन को पड़ोस में रहती एक यहूदी आंटी ‘डेविड’ कहकर बुलाने लगीं... By Siddharth Arora 'Sahar' 16 Aug 2024 in गपशप New Update Follow Us शेयर उस पंद्रह अगस्त को देश आज़ाद हुए सिर्फ छः साल हुए थे, यानी वो साल 1951 था जब अगरतला, त्रिपुरा में बसी एक पंजाबी फैमिली में नया मेहमान आया था। इसका नामकरण हुआ – राजिंदर धवन। धवन फैमिली अपने दोनों बच्चों, अनिल और राजेंद्र धवन को लेकर कानपुर शिफ्ट हो गयी और यहाँ इस छोटे से राजिंदर धवन को पड़ोस में रहती एक यहूदी आंटी ‘डेविड’ कहकर बुलाने लगीं। भला ऐसा क्यों? क्योंकि, उस यहूदी महिला के बेटे का नाम डेविड था जो राजेंद्र का बहुत बहुत अच्छा दोस्त था। इन दोनों की दोस्ती को देख वो आंटी दोनों को ही अपना बेटा मानती थीं और दोनों को ही कई बार डेविड नाम से बुला लिया करती थीं। राजिन्द्र की जगह डेविड नाम उस बालक पर इतना सूट हुआ कि घर परिवार में भी सब उसे डेविड कहकर ही बुलाने लगे और जब बड़ा हुआ तो डेविड धवन कहलाने लगा। लेकिन किंग ऑफ कॉमेडी का तमगा डेविड को यूँ ही नहीं मिल गया था। वह कानपुर के मशहूर कॉलेज क्राइस्चर्च में पढ़ते थे लेकिन उनकी नज़र हमेशा मुंबई की तरफ रहती थी। इसका वाजिब कारण भी था। उनके भाई अनिल धवन फिल्मों में जाना-माना नाम हो चुके थे इसलिए डेविड को जब मौका मिलता था, वह मुंबई चले जाते थे। यहाँ तक कि पाँच दिन की छुट्टी मिले तो भी उनका मुकाम मुंबई ही होता था। डेविड शायद बने ही फिल्मलाइन के लिए थे। जब ये बात उनके घरवालों ने जानी तो उनका एडमिशन फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में करवा दिया। यहाँ डेविड भी अपने भाई की ही तरह एक्टर बनने का ख्याल मन में बसाकर वहाँ गये थे पर जब उन्होंने अपने साथ वालों को एक्टिंग करते हुए देखा तो उन्हें एहसास हुआ कि एक्टिंग उनके लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। लेकिन करें क्या? मन में तो एक ही ख्याल बसा हुआ था कि कैसे भी करके फिल्म लाइन में घुसना है। डेविड जब इंस्टिट्यूट का फॉर्म फिल्म कर रहे थे तब उन्हें एक आप्शन एडिटिंग भी नज़र आया और उन्होंने झट से एक्टर की बजाए एडिटर होना चुना। इस इंस्टिट्यूट में उनके साथ मशहूर लेखक रूमी जाफरी, बिंदास एक्टर सतीश शाह और टेलीविज़न के मोस्ट कॉमिक एक्टर राकेश बेदी क्लासफेलो थे। डेविड की क्लासेज़ सुबह सात बजे की होती थीं और एक्टर्स को 9 से क्लासेज़ ज्वाइन करनी होती थी। लेकिन डेविड सुबह उठकर सतीश शाह की मानें तो ‘राग झिंझोड़’ में ज़ोर ज़ोर से गाना शुरु कर देते थे। मतलब वह कुछ भी, पूरी आवाज़ खोलकर इस तरह बेसुरा गाते थे कि उनकी आवाज़ सोते हुए स्टूडेंट्स को भी झिंझोड़कर उठा देती थी। मज़ाक में सतीश शाह कहते हैं कि “ये हमारे लिए अलार्म का काम भी करता था” एफटीआईआई पास होने के बाद जब ये सब मुंबई पहुँचे तो डेविड धवन के साथ राकेश बेदी भी सेम पेइंग गेस्ट रूम में शिफ्ट हो गये। एक दफा राकेश बेदी को ‘एहसास’ नामक फिल्म के लिए ऑडिशन देने जाना था। उनके पास कोई कायदे का कपड़ा नहीं था। तो उन्होंने चुपचाप डेविड धवन की नई टी-शर्ट निकाली और पहनकर चले गये। किस्मत से ऑडिशन भी अच्छा हुआ और वो रोल उन्हें मिल भी गया। लेकिन एक जगह खाना खाते वक़्त दाल उस टी-शर्ट पर गिर गयी। राकेश बेदी डर गये, उन्होंने बिना धोये-साफ़ किए ही वो टी-शर्ट चुपचाप वापस रख दी। अगले रोज़ जब डेविड ने अलमारी खोली और वो टी-शर्ट पहनी तो उसपर दाल का निशान देख बहुत गुस्सा हुए और सारा पीजी सिर पर उठा लिया। अब राकेश बेदी ने भी धीरे से सच बोल दिया कि वही उस टी-शर्ट को पहनकर गए थे और उन्हीं से दाल गिरी थी। अब डेविड क्या कर सकते थे, गलती होनी थी हो गयी थी। लेकिन डेविड ने गुस्से में राकेश बेदी को ऊपर से नीचे तक झिंझोड़ दिया तो राकेश हँसने लगे और यूँ वो दो मिनट की गर्मा-गर्मी हँसी-मज़ाक में टल गयी। डेविड को फिल्म इंडस्ट्री में एडिटिंग का काम ख़ूब मिला। उन्होंने कोई दो या चार नहीं बल्कि दस साल में कोई ६० फ़िल्में एडिट कीं। जिनमें संजय दत्त की ‘नाम’, जान की बाज़ी, मेरा हक़’ आदि ऐसी फिल्में रहीं जो अच्छी हिट हुईं। लेकिन दस साल बाद डेविड का मन होने लगा कि उन्हें भी डायरेक्शन करना चाहिए। लेकिन नये डायरेक्टर पर भरोसा कौन करे? हालाँकि इन दस सालों में डेविड फिल्म इंडस्ट्री के अन्दर जाना-माना नाम हो गये थे। सपोर्ट की शुरुआत संजय दत्त ने की। उन दोनों एडिटर और एक्टर के बीच की दोस्ती रंग लाई और भोली जगदीश राज के प्रोडक्शन में ताक़तवर नामक फिल्म रिलीज़ हुई जिसमें सेकंड लीड के तौर पर गोविंदा को लिया गया। गोविंदा बताते हैं कि उन दिनों उनके पास कोई 50 फ़िल्में थीं जो वह कर रहे थे। लेकिन फिर भी डेविड को वह मना नहीं कर सके और ताक़तवर के सेट पर ही उन दोनों के बीच दोस्ती हो गयी। यह दोस्ती ऐसी चली कि यह दोनों अबतक 18 फिल्में साथ कर चुके हैं। हालाँकि जैसी दोस्ती चली वैसी फिल्म न चल सकी और ताक़तवर ही नहीं, 1989 में रिलीज़ हुई डेविड धवन की पहली तीनों फ़िल्में – आग का गोला, ताकतर और गोला बारूद बिल्कुल फ्लॉप साबित हुईं। इंडस्ट्री में यह सुगबुगाहट शुरु हो गयी कि डेविड सिर्फ एडिटिंग ही कर सकता है, डायरेक्शन इसके बस का नहीं। लेकिन 1990 में राजेश खन्ना को रिवाइव करते हुए, फिर गोविंदा के साथ जोड़ी बनाते हुए डेविड ने एक और फिल्म रिलीज़ की। यह फिल्म थी स्वर्ग। इस फिल्म ने डेविड धवन और गोविंदा दोनों को सुपर-डुपर हिट कर दिया। बस यहाँ से डेविड ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद फिर गोविंदा के साथ फिल्म शोला और शबनम हो या ऋषि कपूर के साथ बोल राधा बोल, माधुरी दीक्षित के साथ याराना हो या करिश्मा के साथ कुली नंबर वन, हर साल हर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट होने लगी। यकीन जानिये गोविंदा और डेविड धवन की जोड़ी ने 90 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री पर राज किया है। लेकिन गोविंदा के साथ-साथ अनिल कपूर के साथ भी डेविड ने कई सुपरहिट कॉमेडी फ़िल्में दीं जिनमें एक्शन ड्रामा कॉमेडी लोफर, दीवाना मस्ताना, अंदाज़, घरवाली-बाहर वाली आदि फिल्में बहुत ज़बरदस्त हिट रहीं। डेविड धवन को वो दौर ख़ासकर बहुत अच्छा लगता था जब उनकी फिल्म बोल राधा बोल रिलीज़ के पहले तीन दिन बिलो एवेरेज थी लेकिन सोमवार से फिल्म ने ऐसी रफ़्तार पकड़ी थी कि सिल्वर जुबली साबित हुई थी। वहीँ आज के डेविड से पूछो तो अब सिनेमा में सिर्फ पहले तीन दिन का महत्त्व रह गया है। पहला वीकेंड अच्छा गया तो समझो सब ठीक। लेकिन वो आज भी अपनी फिल्म कम से कम दो हफ़्तों के हिसाब से सोचकर ही बनाते हैं। डेविड की मानें तो उनकी शुरुआत ही मनमोहन देसाई की फिल्में देखने से हुई थी। वह भी अपनी फिल्मों में मनमोहन देसाई की तरह कम्पलीट एंटरटेनमेंट देने की कोशिश करते हैं। शायद इसीलिए उनकी पहली फिल्म ताकतवर कहीं न कहीं अमर अकबर अंथनी के जैसी ही लगती है। डेविड साथ-साथ क्लासिक डायरेक्टर हृषिकेश मुखर्जी के भी फैन रहे हैं। उनकी फिल्मों से इंस्पायर होकर ही उन्होंने गोविंदा के साथ हीरो नंबर वन बनाई थी जो ज़रा-बहुत फिल्म बावर्ची से इंस्पायर्ड थी। डेविड धवन ने पहलाद निहलानी के साथ तो बहुत काम किया ही है, वाशु भगनानी भी उनको अपनी तरक्की का हिस्सेदार मानते हैं। वाशु भगनानी खुले शब्दों में कहते हैं कि डेविड जैसा कोई दूसरा डायरेक्टर हो ही नहीं सकता। डेविड धवन का भी मानना है कि प्रोडूसर अगर सिर्फ पैसा कमाने के लिए धंधा करने आया है तो मुझे उसके साथ काम ही नहीं करना। प्रोडूसर तो वो होना चाहिए जिसको फिल्मों में इंटरेस्ट हो। जो फिल्म में अपनी डेडिकेशन झोंक सके। डेविड धवन प्रोडूसर ही नहीं, हर एक्टर स्टार्स के इनपुट लेने में हिचकते नहीं हैं। उनका मानना है कि अच्छी क्रिएटिविटी होनी चाहिए, मैं क्यों ईगो रखूँगा। मुझे तो बस सिनेमा अच्छा बनाना है। डेविड धवन ने आज तक किसी भी एक्टर के सामने स्क्रीनप्ले का नेरेशन नहीं किया है। उनका मानना है कि फिल्म को सीन बाई सीन उठाते चलो तो पूरी फिल्म कम्पलीट इंटरटैनिंग बन जाती है। इस मामले में डेविड धवन गोविंदा को बहुत मानते हैं। कहते हैं “गोविंदा वो कम्पलीट एक्टर है जिसे एक गंदा सा सीन भी दे दो तो वह रिहर्सल करते वक़्त उसमें से गन्दगी निकाल देगा और एक फ्रेश सीन बना देगा” वहीँ गोविंदा और संजय दत्त मज़ाक में कहते हैं कि डेविड को खाने पीने का इतना शौक है कि सेट पे शूट बाद में शुरु होती है, इसका खाना पहले शुरु हो जाता है। डेविड को खाने का इतना शौक है कि वह सारे काम छोड़कर, पहले खाने पर फोकस करते हैं। इतना ही नहीं, जिन दिनों वह एक बेडरूम हॉल के फ्लैट में रहते थे और एडिटिंग करते थे तब उनके साथ एडिटिंग के वक़्त संजय दत्त भी मौजूद होते थे और उनकी पत्नी करुना उर्फ़ लाली कुछ न कुछ खाने के लिए बनाकर लाती रहती थीं। उस दौर को यादकर डेविड कहते हैं कि गोविंदा, सलमान, संजू बाबा ये लोग ऐसे हैं जैसे फैमिली होती है। इन्हें मैं कोई नेरेशन वैरेशन नहीं देता हूँ। इनको बस सीन समझा देता हूँ बाकी ये ख़ुद कर लेते हैं। सालों बाद, जब डेविड धवन ने अपने बेटे वरुण के लिए ‘मैं तेरा हीरो’ बनाई तो क्रिटिक्स ने कई बार टोका कि आप वरुण को भी गोविंदा बनाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? इसपर डेविड धवन मासूमियत से बोले “अरे मैं ऐसा डेलिब्रेटली नहीं करता, मैं क्या करूँ 18 फ़िल्में करने बाद गोविंदा भी तो मेरे अन्दर घुसा हुआ है। हर सीन उसी को सोचकर दिमाग से निकलता है। हालाँकि वरुण सलमान खान जैसी बॉडी लैंग्वेज भी लेकर चलता है। उसकी फिसिक अच्छी है। गोविंदा के साथ भले ही डेविड ने अपने कैरियर की 44 में से 18 फ़िल्में की हों पर सलमान और संजय दत्त के साथ भी उन्होंने 8-8 फिल्में बनाई हैं जिनमें ज़्यादातर कामयाब रही हैं। डेविड से जब पूछा गया कि आप इतने समय से इंडस्ट्री में हैं, सिनेमा की इतनी समझ रखते हैं फिर भी आप ख़ुद प्रोडूसर क्यों नहीं बनते, तो डेविड ने जवाब दिया “मुझसे ये नहीं हो सकता कि कोई मेरे सामने रोता हुआ आए कि मुझे पैसे नहीं मिले, मेरी पेमेंट नहीं हुई। या मेरा चेक फँसा है, मुझे ये नहीं मिला वो नहीं मिला न, मैं अपने काम से बहुत ख़ुश हूँ, मेरी रेस्पेक्ट है। मुझे यही मोड्यूल पसंद है” डेविड धवन यूँ तो अब बीते चार साल से सिर्फ वरुण धवन के साथ ही फ़िल्में (मैं तेरा हीरो, जुड़वाँ 2, कुली नंबर 1) बना रहे हैं। लेकिन आज भी बॉलीवुड के सारे एक्टर्स, ख़ासकर जॉनी लीवर, राजपाल यादव, उनके दोस्त सतीश शाह, सतीश कौशिक आदि उन्हें बहुत प्यार करते हैं और उनकी एक आवाज़ पर काम करने के लिए राज़ी हो जाते हैं। स्क्रिप्ट को लेकर लेकर ही, अपनी तीसरी फिल्म में उनके बेटे वरुण धवन ने एक बार गलती से बोल दिया था कि “स्क्रिप्ट तो बता दीजिए, क्या है” तो डेविड ने झिड़क दिया “लो अब इसे स्क्रिप्ट चाहिए, अबे मैंने कभी गोविंदा, संजय दत्त को स्क्रिप्ट नहीं सुनाई, तुझे सुनाऊंगा?” डेविड धवन के 30 साल लम्बे कैरियर में उन्हें कभी कोई मेजर अवार्ड नहीं मिला पर जब एक टीवी शो के दौरान छोटे से वरुण धवन ने आकर सबके सामने कहा कि “मेरे पापा बेस्ट हैं, मैं इनसे इंस्पायर होता हूँ और मैं चाहता हूँ कि हर जन्म में मुझे यही पापा मम्मी मिलें” तो डेविड की आँखें नम हो गयीं और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा “इससे बड़ा कोई अवार्ड संसार में नहीं बना है, इसके अलावा मुझे और कोई अवार्ड नहीं चाहिए” मायापुरी की ओर से, किंग ऑफ़ कॉमेडी डेविड धवन को जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं – सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ Read More: Amitabh Bachchan ने परिवार के साथ बिताया दिन, कहा- 'समय की मांग है...' इंडस्ट्री की बेरुखी ने जॉन अब्राहम को बनाया निर्माता,एक्टर ने बताई वजह Adipurush के फ्लॉप होने पर Kriti Sanon ने शेयर किया अपना दर्द Birthday Special: Sunidhi Chauhan के करियर के यादगार गाने #sanjay dutt #govinda #David Dhawan #Varun Dhawan हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article