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Shailendra Singh के जन्मदिन पर जाने उनके बारे में विशेष बाते

गायकों को भी रॉयल्टी मिलनी चाहिए, इस आवाज को 1990 में भारत कोकिला के रूप में मशहूर गायिका स्व. लता मंगेशकर ने उठायी थी. उनकी इस आवाज के समर्थन में सबसे पहले गायक व अभिनेता शैलेंद्र सिंह खड़े हुए थे...

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Shailendra Singh के जन्मदिन पर जाने उनके बारे में विशेष बाते

गायकों को भी रॉयल्टी मिलनी चाहिए, इस आवाज को 1990 में भारत कोकिला के रूप में मशहूर गायिका स्व. लता मंगेशकर ने उठायी थी. उनकी इस आवाज के समर्थन में सबसे पहले गायक व अभिनेता शैलेंद्र सिंह खड़े हुए थे. तब से शुरू हुई इस लड़ाई के चलते 2012 में केंद्र सरकार ने संविधान संशोधन कर गायकों को रॉयल्टी मिलने की राह साफ कर दी. फिर भी किसी भी गायक को संविधान में दी रॉयल्टी के प्रावधान के बावजूद गायक को रॉयल्टी नही मिल पायी. संगीत कंपनियो के अलावा होटल इंडस्ट्री व अन्य उपभोक्ताओं ने गायक को रॉयल्टी देने से साफ तौर पर इकार कर दिया. तब लता मंगेशकर, संजय टंडन, सोनू निगम, अलका याज्ञनिक जैसे गायकों' ने नए सिरे से लड़ाई शुरू की. 'इंडियन सिंगर्स राइट्स एसोसिएशन' (इसरा) का गठन हुआ. इसरा का संघर्ष रंग लाया. 23 अप्रैल 2023 को "इंडियन म्यूजिक एसोसिएशन" (आईएम आई) और 'इसरा' के बीच गायकों को रॉयल्टी देने के फार्मूले पर ऐतिहासिक हस्ताक्षर संपन्न हुए. तो अब अप्रैल 2022 से हर गायक को रॉयल्टी मिलेगी. 'इसरा' के बोर्ड आफ डायरेक्टरर्स मे से एक गायक शैलेंद्र सिंह से हमने बातचीत की.

मुंबई में जन्में व पले बढ़े शैलेंद्र सिंह अभिनेता बनना चाहते थे, इसीलिए उन्होने 'पुणे फिल्म संस्थान' से अभिनय का प्रषिक्षण हासिल किया.वैसे तो उन्होने शास्त्रीय संगीत भी सीखा हुआ है. पर उन्हें सबसे पहले बतौर गायक 1972 में राज कपूर की फिल्म "बॉबी" में "मैं शायर तो नहीं" को गाने से मिला.फिल्म के साथ ही शैलेंद्र सिंह द्वारा स्वरबद्ध यह गीत भी लोकप्रिय हो गया. शैलेंद्र सिंह ने 'झूठ बोले..' सहित तीन गाने 'बॉबी' फिल्म के लिए लता मंगेशकर के संग गाया था.उसके बाद उनकी पहचान गायक के तौर पर हो गयी. फिल्म 'खेल खेल में' उनके द्वारा स्वरबद्ध गीत "तुमको देखा" ने तो राष्ट्रिय स्तर पर हंगामा मचा दिया. फिल्म 'सागर' के गीत 'जाने दो ना' को उन्होने आशा भोसले के संग गाया था. लेकिन अभिनेता बनने का जुनून उन पर सवार था. तो उन्होने 1975 में 'दो जासूस' में अभिनय किया. फिर बंगाली फिल्म 'अजसरा धन्यवाद', हिंदी में 'गिनी व जानी' जैसी असफल फिल्मों में अभिनय किया. 1980 में शैलेंद्र सिंह ने रेखा के साथ फिल्म 'अग्रीमेंट' में अभिनय किया,मगर यह फिल्म भी असफल रही. उसके बाद वह बतौर गायक लगातार गाते रहे और उन्हे जबरदस्त सफलता मिली.1993 तक वह लगातार सफल गीत गाते रहे.1994 में बीमारी के बाद उनके कैरियर पर विराम लग गया. 2008 में उन्होने फिल्म "भोले शंकर" में 'जय हो छठी मैया' गीत गाया था.पर वह 'आईपीआर एस' और 'इसरा' से जुड़कर गायकों के हक की लड़ाई लड़ते आए हैं.अब रॉयल्टी के ऐतिहासिक समझौते से वह खुश हैं.

शैलेंद्र सिंह से हुई संक्षिप्त बातचीत इस प्रकार रही...

रॉयल्टी के मसले पर संगीत कंपनियों के संग ऐतिहासिक समझौते से खुशी तो मिली होगी?

देखिए, हम इतने वर्शों से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे थे. जो अब जाकर सफल हुई है.जाहिर है कि हम बहुत खुश हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि म्यूजिक लेबल यानी कि संगीत कंपनियां भी खुश हैं. बीच में उनके संग हमारी थोड़ी सी अनबन चल रही थी. मतलब यह कि हम दोनों एक दूसरे के मुद्दों से सहमत नही हो पा रहे थे.पर अंततः केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल की मध्यस्थता के बाद ऐसा संभव हो पाया. पियूष गोयल जी के सहयोग और उनके मार्गदर्षन के चलते सारी अड़चने दूर हो गयीं और अब 'इसरा' व 'आईएम आई' के बीच ऐतिहासिक समझौता हो चुका है. तो यह हम सभी गायकों के लिए खुशी का दिन है.ऐतिहासिक दिन है.हमारा संघर्ष सफल रहा. मैं अपनी तरफ से सभी म्यूजिक लेबल्स, संजय टंडन व पियूष गोयल जी का धन्यवाद अदा करते हैं. संजय टंडन ने इस मसले को सुलझाने में काफी कठिन मेहनत की.

क्या यह ऐतिहासिक समझौता गायकों' और म्यूजिक लेबल्स की आपसी समझ के बिना संभव हो सकता था?

आपने एकदम सही कहा. बिना एक दूसरे के सहयोग,एक दूसरे की समझ के यह क्या कोई भी समझौता संभव नही हो सकता. मैं सपष्ट कर दॅूं कि म्यूजिक लेबल्स के साथ हमारे मतभेद थे, पर दुश्मनी नहीं थे. हम लोग जब बातचीत के लिए टेबल पर बैठते थे,तो दोनो पक्ष एक दूसरे के सम्मान का पूरा ख्याल रखते थे. देखिए,पियूष गोयल जी का मार्गदर्षन जरुर रहा, पर सारी बातचीत तो मूलतः म्यूजिक लेबल व गायकों' के बीच ही थी.

क्या यह माना जाए कि संघ्र्श्ता और गायन के क्षेत्र में खास उपलब्धि हासिल न कर पाने वाले गायकों के लिए सही मायनों में यह ऐतिहासिक दिन है?

जी हां! हमने ऐसे गायकों के लिए खास प्रोवीजन रखा है. हम कुछ फंड अलग से वेलफेअर फंड के रूप में रख रहे हैं, वह ऐसे गायकों के लिए ही है.किसी को बीमारी के वक्त या अन्य तरह की मुसीबत के वक्त सहायता चाहिए,तो वह भी हम मुहैय्या करेंगे. शमशाद बेगम जैसे पुराने गायको के पास पैसा नही था. उस वक्त तो गायक को बहुत कम मेहनताना मिलता था. उस बात को ध्यान में रखकर ही हमने 'इसरा' के पास आने वाली रॉयल्टी का एक अंश अलग 'वेलफेअर फंड' के रूप में रख रहे हैं. मैं 'इसरा' के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में से एक हॅूं, इसालिए मुझे यह बात पता है.

अभी पियूष गोयल जी ने बताया कि म्यूजिक लेबल्स की मांग थी कि हर गायक अपने गीत के प्रमोट होने के बाद म्यूजिक कंसर्ट के शो करके जो राषि कमाता है, उसका हिस्सा म्यूजिक कंपनियों को मिलना चाहिए..क्या वास्तव में हर गायक म्यूाजिक शो करके कमाता है?

यह बेबुनियाद बात है.मैं इससे सहमत नही हूं. पियूष गोयल जी भी सहमत नही थे. हर कलाकार म्यूजिकल शो नही करता. हर कलाकार को इतने अधिक शो मिलते भी नही है. आखिर गायक क्या करेगा? वह दो शो करेगा और वह राषि म्यूजिक लेबल को दे देगा? यह मुद्दा ही गलत था. इससे हम सहमत नही थे.अंततः म्यूजिक लेबल्स की भी समझ में आया कि वह गलत बात कर रहे थे.

जिस ढंग की चर्चाएं हो रही हैं, उससे लगता है कि संघर्ष अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है.होटल इंडस्ट्री सहित कई इंडस्ट्री से रॉयल्टी एकत्र करना आसान नही होगा?

मिलेगा... पर मेहनत तो अभी भी करनी पड़ेगी.

आईपीआरएस काफी लंबे समय से कार्यरत है.इससे क्या फायदा था?

देखिए, मैं भी आईपीआरएस का सदस्य हॅूं.आईपीआरएस का दायरा अलग है. उसमें गीतकार, पब्लिशर, पटकथा व कहानी लेखक वगैरह हैं.इस संस्था में गायकों के लिए कुछ नही है. मैं तो दोनों का सदस्य हॅूं.

-ओल्ड इंटरव्यू 

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