‘‘फिल्मों में काम पाने के लिए सिर नही झुकाना चाहती थी..’’रीताभरी चक्रवर्ती By Shanti Swaroop Tripathi 08 Oct 2022 | एडिट 08 Oct 2022 11:15 IST in इंटरव्यू New Update Follow Us शेयर मशहूर बंगला फिल्मकार सतरूपा सान्याल की बेटी और लेखक, निर्माता व अभिनेत्री रीताभरी चक्रवर्ती बंगला फिल्मों की स्टार अदाकारा हैं,तो वहीं वह ‘परी’ और ‘नेकेड’ जैसी कुछ हिंदी फिल्मों में भी अभिनय कर चुकी हैं। दर्शकों ने रीताभरी चक्रवर्ती को आयुष्मान खुराना, अनुराग कश्यप, कुणाल करन कपूर के साथ म्यूजिक वीडियो मंे भी देखा है। रीताभरी चक्रवर्ती ने सबसे पहले 15 साल की उम्र में सफल बंगला टीवी सीरियल ‘ओगो बोधु संुदरी’ में अभिनय किया था, जिसे बाद में ‘ससुराल गेंदा फूल’ नाम से हिंदी में भी बनाया गया था। इन दिनों रीताभरी चक्रवर्ती अपनी बंगला फिल्म ‘फटाफटी’ को लेकर सूर्खियों मंे हैं, तो वहीं वह बहुत जल्द एक हिंदी फिल्म भी करने वाली हैं, जिसकी कहानी उन्होंने खुद लिखी है। पेश है ‘‘मायापुरी’’ के रीताभरी चक्रवर्ती से हुई बातचीत के खास अंश... इतिहास विषय के साथ पढ़ाई करते करते आप अभिनय के क्षेत्र में कैसे आ गयी? - देखिए मैंने पंद्रह वर्ष की उम्र मंे एक बंगला टीवी सीरियल ‘ओगो बोधु सुंदरी’ में अभिनय किया था, जिसे बाद में हिंदी में ‘ससुराल गेंदा फूल’ के नाम से भी बनाया गया। उस वक्त मैं इतनी परिपक्व बच्ची तो नहीं थी जिसे इस बात की समझ होती कि उसे किस तरह किस क्षेत्र में करियर बनाना है। मैने उस वक्त तक सोचा ही नहीं था कि मुझे बड़े होकर क्या बनना है। वैसे मेरी मां प्रोफेशनली जानवरों की डाक्टर हैं। पर वह स्वतंत्र फिल्म मेकर भी हैं। वह लेखक व निर्देशक के तौर पर कई फिल्में व टेलीफिल्में बना चुकी हैं। इतना ही नही मेरी बड़ी बहन चित्रांगदा को हमेशा से अभिनेत्री बनना था। वह भी छोटी उम्र से अभिनय कर रही थी, तो उसे देखकर मुझे अच्छा लगता था कि वह अपनी पाॅकेट मनी ख्ुाद कमा रही है। मैं पाॅकेट मनी के लिए ही माॅडलिंग कर रही थी। एक बार मेरी बहन आॅडीशन देने जा रही थी, तो मैं भी यंू ही उसके साथ चली गयीं। कास्टिंग डायरेक्टर को मेरा चेहरा पसंद आ गया और उन्होने मेरा भी आॅडीशन ले लिया,जबकि मेरी समझ में नहीं आया था कि उन्होंने मेरा आॅडीशन लिया है। उन दिनो मैं बहुत ही ज्यादा स्पोर्टिंग पर्सन थी। इसलिए कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझसे कुछ करने व कुछ कहने के लिए कहा, तो मैंने वैसा कर दिया। फिर मेरी मां के पास निर्माता रवि ओझा का फोन आया कि वह मुझे अपने अगले प्रोजेक्ट में लेना चाहते हैं। मेरी मां ने साफ साफ मना कर दिया कि रीताभरी के कुछ माह में ही दसवी के बोर्ड की परीक्षाएं हैं, इसलिए वह अभिनय नहीं करेगी। मगर रवि ओझा मुझे भूले नहीं। तीन माह बाद फिर से रवि ओझा जी ने मेरी मम्मी को फोन करके कहा कि अब बोर्ड की परीक्षाएं खत्म हो गयी हैं। अब आप उसे मेरे अगले प्रोजेक्ट के लिए काम करने की इजाजत दे दें। पर मेरी मां को लग ही नहीं रहा था कि मुझे अभिनेत्री बनना है और मैंने भी कुछ नहीं सोचा था। जब रवि ओझा जी ने काफी दबाव डाला तब मम्मी ने कहा कि कहानी सुन लो तुम्हें अच्छी लगे तो कर लेना। मैंने सीरियल ‘ओगो बोधी संुदरी’ की कहानी सुनी,अच्छी लगी। मैंने 15 वर्ष की उम्र में इसमें अभिनय किया और मजा आया। लेकिन उसके बाद मैं फिर से पढ़ाई में व्यस्त हो गयी। मेरे नाना जी, जो कि स्काॅटिश कालेज के प्रिंसिपल थे, उनका दबाव था कि पहले पढ़ाई करो। उनकी राय में वह नहीं चाहते थे कि भविष्य में कभी भी किसी के भी सामने मुझे झुकना पड़े। इसलिए पहले पढ़ाई करनी चाहिए। उनके कहने पर ही मैं इतिहास विषय के साथ पढ़ाई कर रही थी। ग्यारहवीं व बारहवीं में मैं सिर्फ पूरा ध्यान पढ़ाई पर ही दे रही थी। मैने बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में बंगाली और इतिहास विषय में टाॅप किया। फिर हिस्ट्री/इतिहास विषय के साथ ही मैने कालेज में बैचलर की डिग्री ली। उसके बाद मैंने नाना जी से कहा, ‘मैंने पढ़ाई पूरी कर ली. मजा आया। लेकिन मुझे अभिनय करना है। परीक्षा में जो नंबर मिलते हैं, उससे कहीं अधिक मजा लोगों का प्यार पाने मंे आता है। पढ़ाई में गोल्ड मैडल मिलता है तो अच्छा लगता है, लेकिन अवार्ड मिलता है, तो ज्यादा अच्छा लगता है। ’तो मेरे नाना जी ने कहा कि ठीक है। आप आगे बढ़ो। उसके बाद मैं इस क्षेत्र में रम गयी। दसवीं के बाद मेरी यात्रा काफी स्मूथ रही थी। पंद्रह वर्ष की उम्र मंे जब मुझे सीरियल मिला था, वह मेरा लक था। लेकिन जब मैंने तय किया कि मुझे अभिनय करना है, तब मेरी यात्रा उतनी स्मूथ नही रही। जब मैं दिमागी रूप से फिल्मों मंे काम करने के लिए इस इंडस्ट्री मंे आयी, तो मेरी समझ में आया कि यह प्रोफेशन इतना आसान नही है, जितना मुझे लग रहा था। मेरी समझ में आ गया कि इस इंडस्ट्री में सफल होना, अपनी जगह बनाना, एक मुकाम पाना मुश्किल ही नहीं बहुत मुश्किल है। बहुत मेहनत का काम है। पर मैं मेहनत करने को तैयार थी। इसलिए मेहनत करनी शुरू की। अब अभिनय के साथ ही निर्माण कार्य भी करती हॅूं.अपना एनजीओ भी चलाती हॅूं। एनजीओ चलाना तो मेरा निजी मसला है। लोगों ने, समाज ने मुझे इतना कुछ दिया है कि मैं उसी समाज को अपनी तरफ से कुछ लौटाने का प्रयास कर रही हॅूं। मुझे लगता है कि लोगों ने मुझे जो प्यार दिया है, उसके बदले में उनके लिए कुछ करना मेरी जिम्मेदारी है। उनका मनोरंजन करना तो है ही। यदि मैं लोगो को मनोरंजन नहीं कर सकती, तो मुझे इस प्रोफेशन में होना ही नहीं चाहिए। जहां तक निर्माता बनने का सवाल है तो यह नाना जी की बात को ध्यान में रखकर शुरू किया। नाना जी कहते थे कि हर इंसान की अपनी रीढ़ की हड्डी मजबूत होनी चाहिए। मैंने बंगाली फिल्म इंडस्ट्री में 15 वर्ष काम किया है। तो मेरा अनुभव यही कहता है कि हर जगह पितृसत्तात्मक सोच तो है ही। बाॅलीवुड की बजाय बंगला फिल्म इंडस्ट्री के बारे में मुझे ज्यादा पता है। मैंने महसूस किया कि यदि मुझे किसी पर निर्भर नहीं रहना है, तो मुझे अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू करना ही होगा। देखिए, जब मैं सिर्फ अभिनय करती हॅंू तो उस वक्त मुझे निर्माता के वीजन, निर्देशक की सोच, पटकथा कैसी हो, इसे लेकर मैं पूरी तरह से आत्मनिर्भर हॅूं। लेकिन काम पाने के लिए मैं सिर नहीं झुकाना चाहती थी। जब आप दसवीं के बाद सीरियल ‘ओगो बोधु संुदरी’ में अभिनय करते हुए ग्यारहवीं की पढ़ाई भी कर रही थीं, उस वक्त किस तरह की समस्याएं आ रही थीं? उस वक्त दिमाग में पढ़ाई या अभिनय किसे छोड़ने की बात आ रही थी? - मैं दोनो नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए दोस्तो को छोड़ दिया था। सच कह रही हॅूं। मेरी अपनी कोई जिंदगी ही नहीं थी। लोग बोलते हैं कि ग्यारहवी व बाहरवीं मंे तो कालेज जिंदगी को इंज्वाॅय करना होता है, अपने दोस्तों के साथ घूमना व फिल्में देखना होता है। रेस्टारेंट जाना होता है। ब्वाॅयफ्रेंड होता है। पर मेरा ब्वाॅयफ्रेंड वगैरह कुछ नहीं था। मेरा रूटीन यह था कि सुबह स्कूल जाती थी। फिर सेट पर पहुॅच जाती थी। सेट पर जब वक्त होता था, तब मेकअप रूम में बैठकर अपनी पढ़ाई करती थी। बहुत बेहतरीन फिल्म रिलीज हो तो थिएटर जाने का वक्त नहीं होता था। इंतजार करती थी कि कब उसे लैपटैप पर देखने को मिले। यही मेरी जीवन शैली बनकर रह गयी थी। इसलिए जब मैं कालेज पहंुची तो मैं बहुत थक गयी थी। और उस वक्त मैने सोचा कि अब कछ समय मुझे अपने लिए जीना है, मगर अभिनय नहीं छोड़ना है। कालेज दिनों मंे पढ़ाई के अलावा सिर्फ थिएटर किया। बहुत ज्यादा काम नहीं कर रही थी। कालेज के दिनों में मैने अपनी जिंदगी जी। अभिनय जगत में करियर स्थापित होने के बाद अमरीका जाकर अभिनय की पढ़ाई करने की जरुरत क्यांे महसूस की? - मेरे इस निर्णय पर बहुत से लोगांे ने मूर्ख कहा। लोगों ने कहा कि अब शोहरत मिल गयी, एक पहचान बन गयी है। एक मुकाम हासिल हो चुका है। तब पढाई करने की क्या जरुरत? इससे अच्छा है कि मंुबई में रहकर समय बिताओ। मंुबई में पीआर करो। अमरीका जाकर पढ़ाई करने की क्या जरुरत? पर लोग भूल गए कि सिनेमा में विकास के साथ बदलाव हो रहा है। एक वक्त यह था,जब यह महत्वपूर्ण था कि कलाकार दिखता कैसा है? हीरोईन से उम्मीदें होती थी कि वह कितनी खूबसूरत लगती है। पर अब कलाकार कें अंदर कितनी व किस स्तर की अभिनय क्षमता है, वह मायने रखता है। पर अब खूबसूरती से ज्यादा मायने अभिनय क्षमता रखती है। आपको नहीं लगता कि इसी के साथ अब सिनेमा में हीरोईन के किरदार भी बदले हैं। पहले हीरोइन के हिस्से एक दो गाने व एक दो दृश्य ही आते थे। पर अब ऐसा नहीं रहा...? - जी! ऐसा ही था। एक उम्र के बाद हीरोईन को काम मिलना बंद हो जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। मुझे गर्व है कि मैं उस वक्त पैदा हुई, जब यह सब बदल रहा है। मैं यह भी मानती हॅूं कि खूबसूरती और अपने आपको ग्रूम करना आवश्यक है, लेकिन अभिनय प्रतिभा उससे अधिक मायने रखती है। मैं तो एक अभिनेत्री होने को इंज्वाॅय करती हूंू। अभिनय के प्रोसेस को इंज्वाॅय करती हॅूं। मैने हिस्ट्ी लेकर पढ़ाई की, जबकि मुझे एक्टिंग लेकर पढ़ाई करनी चाहिए थी, जो कि मेरे नाना जी ने नहीं करने दिया था। मेरे नाना जी ने शौक के चलते शाम को गाना सीखने की इजाजत दी थी। अब जब समय बदल रहा है, तो मुझे कुछ ऐसी पढ़ाई करनी थी, जिससे अभिनय जगत में मैं बेहतर परफार्म कर सकॅूं। फिर महामारी सबसे अच्छा समय मिला। हम सभी अपने अपने घरों में कैद थे। लाॅकडाउन था। पहले मैं यह कोर्स 2018 में करना चाहती थी। पर तब मैं फिल्मों में इस कदर व्यस्त थी कि नही कर सकी। पर कोविड महामारी के समय मुझे यह कोर्स करने का अवसर मिला। अमरीका मंें कोर्स करने के बाद आपने अपने अंदर किस तरह का बदलाव महसूस किया? - एक नहीं बहुत बदलाव महसूस करती हॅूं। बंगाली फिल्मों में मेरा अपना एक मुकाम बन चुका है। लोग मेरे काम की तारीफ करते हैं. नाम है.शेाहरत है। इसके बावजूद जब मैं अमरीका में पढ़ाई करने पहुॅची, तो वहां पर मैं महज एक स्टूडेंट थी। वहां पर मैं कोई स्टार या अभिनेत्री नहीं थी। वहां पर ज्यादा अमरीकन थे, पर कुछ इटली व अन्य देशों के स्टूडेंट भी थे। जो शिक्षक हमें एडवांस कोर्स पढ़ा रहे थे उन्होेने कहा कि आप किस माध्यम में, फीचर फिल्म या लघु फिल्म के लिए शूटिंग कर रहे हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। या आप स्टेज पर परफार्म कर रहे हो। पर जब भी आपके अंदर कोई इमोशंस है, या जिसे आप बाहर निकालना चाहते हो, तो याद रखो कि उस इमोशंस को निकालने के लिए हर इंसान के लिए, हर कलाकार के लिए तरीका अलग अलग है। अगर मैने किसी बेहतरीन कलाकार के साथ काम किया है, तो मैंने उनसे यही सवाल किया है कि आप किसी इमोशंस को उजागर करने के लिए क्या करते हो कि आपको यह इमोशंस आता है? पर मुझे कभी भी संतोषप्रद उत्तर नहीं मिला। उसकी वजह मुझे इस कोर्स करते हुए पता चला कि सब के लिए एक ही मैथड नहीं हो सकता। कोई अपने अनुभवों का उपयोग करता है, कोई अपने शरीर को इंस्टू्मेंट के तौर पर उपयोग करता है। उसके बाद मैंने पाया कि मैं अपने अंदर के इमोश्ंास किस तरह ला सकती हॅंू, जिसका उपयोग मैंने अपनी नई फिल्म ‘फटाफटी’ में किया है। फिल्म को लेकर दर्शकों की राय क्या होगी, यह तो मैं नहीं कह सकती। लेकिन मेरी राय में इस फिल्म में मेरी परॅफार्मेंस सबसे अधिक ‘फ्री परफाॅर्मेंस’ है। जब मैं इस फिल्म के लिए डबिंग कर रही थी, तो मुझे कहीं नहीं लगा कि परदे पर रीताभरी है। वह तो एकदम अलग किरदार ही नजर आया। मैंने ख्ुाद बड़ा अंतर महसूस किया। दूसरी बात अमरीका में जो मेरे सहपाठी थे, जो अपना करियर शुरू कर रहे थे। अमरीका में तो आॅडीशन आम बात है। इनमें से कुछ वेटर के रूप में काम करते हुए एक्टिंग क्लास कर रहे थे और आॅडीशन भी दे रहे थे। तो मंैने महसूस किया कि मैं कितनी लक्की हॅूं कि मुझे सुबह उठकर काम पर जाने का अवसर मिलता है। मैं वही कर रही हॅूं, जो कि मुझे अपनी जिंदगी में करना है। मुझे अहसास हुआ कि मेरे पास जो कुछ है, वह ईश्वर का बहुत बड़ा आशीर्वाद है। उस क्लास को करने के बाद मुझे जो कुछ मिला, मेेरे मन में उसकी इज्जत काफी बढ़ गयी। लेकिन लोगों की राय में अभिनय सीखने के लिए थिएटर से बड़ा कोई स्कूल नहीं हो सकता? - आपने एकदम सही कहा। मैं स्वयं थिएटर से जुड़ी रही हॅूं। देखिए, एक्टिंग एक क्राफ्ट है, इससे मैं दूर न चली जाऊं, इसलिए कालेज के दिनों में मैने एक थिएटर ग्रुप के साथ कुछ नाटको में अभिनय किया था। डांस भी एक क्राफ्ट है। आप चाहे जितने उत्कृष्ट डांसर हो, मगर यदि आपने दो तीन वर्ष तक डांस की प्रैक्टिस नहीं की, तो आपकी प्रतिभा कहीं न कहंी मुरझा जाती है। फिर चाहे आप संगीतकार हांे या गायक हों। यही नियम लागू होता है। तो एक्टिंग का भी रियाज/प्रैक्टिस होना चाहिए। इसके लिए थिएटर से बढ़कर क्या हो सकता है? मैंने बंगला के दिग्गज अभिनेता स्व.सौमित्र चटर्जी के साथ दो तीन वर्ष थिएटर किया है। मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला था। मुझे दर्शकों के रिएक्शन सीधे देखने व महसूस करने का अवसर मिला, जो कि टीवी या फिल्म में काम करते हुए संभव नही है। लेकिन मुझे फिल्म मेंकिंग का पूरा प्रोसेस बहुत अच्छा लगता है। आर्ट डायरेक्शन, सिनेमैटोग्राफी ,एक्टिंग, एडीटिंग,डबिंग यह पूरा प्रोसेस संुदर लगता है। आप तक के करियर को आप किस तरह से देख रही हैं? - मेरा करियर सही दिशा मंे ही चल रहा है। कालेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद जब मैने अभिनय को ही कैरियर बनाने का निर्णय लिया, तो मेरी यात्रा उतनी आसान नही रही, जितना पहला सीरियल करते समय थी। मैने राकेश कुमार के निर्देशन में फिल्म ‘तोमर बदले प्राण खिलाड़ी’ से कैरियर शुरू किया था। फिल्म की कहानी पांच पुरुषों के साथ महिला नायक के रिश्ते की पड़ताल करती है। फिर ‘बारूद’ और ‘टोबू बसंता’ सहित कई अन्य फिल्मों में काम किया। टीवी श्रृंखला ‘चोखर तारा तुई’ भी किया। अक्टूबर 2014 में श्रीजीत मुखर्जी की मल्टी स्टारर फिल्म ‘छोटुषकोन’, बिस्वरूप बिस्वास द्वारा निर्देशित बंगाली ड्रामा फिल्म ‘बावल’, ‘ओनियो अपाला’, ‘कोलकटाय कोलंबस’, के अलावा मलयालम फिल्म ‘‘पेंटिंग्स लाइफ’’ की। पर आप तो निर्माता भी हैं? - जी हाॅ! बंगला फिल्मों में मनपसंद काम न मिलते देख और खुद को ‘पेन इंडिया’ कलाकार के रूप में स्थापित करने के मकसद से मैने निर्माण के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया। सबसे पहले मैंने आयुष्मान खुराना के साथ म्यूजिक वीडियो ‘‘अरे मन’’ में अभिनय किया, जिसका निर्माण भी मैने ही किया था। मैने आयुष्मान ख्ुाराना के अलावा अनुराग कश्यप,रजत कपूर व कुणाल करन कपूर के साथ भी म्यूजिक वीडियो बनाया। मंैने ंिहंदी में लघु फिल्म ‘‘नेकेड’’ का निर्माण किया, जिसमें मैंने कलकी कोचलीन के साथ अभिनय किया। इसे काफी सराहना मिली.इन म्यूजिक वीडियो व लघु फिल्मांे में मैने अपने अभिनय की उस रेंज को दिखाया,जो कि मैं बंगला फिल्म करते हुए नहीं दिखा पा रही थी। मैंने डीग्लैमरस किरदार निभाकर सभी को चकित कर दिया। उसके बाद बंगला फिल्म इंडस्ट्री में मुझे मनपसंद काम मिलने लगा। फिर मैने बंगला फिल्म के सुपर स्टार जीत के साथ ‘‘शेष थेके शुरू’ की। धीरे धीरे मेरी अभिनय की प्रशंसा होने लगी, शोहरत मिली और फिर मुझे सोलो हीरो के रूप में फिल्म ‘‘ब्रम्हा जानेन गोपों कोम्मोटी ’’ मिली। मतलब इस फिल्म में पुरूष कलाकार नही मैं प्रोटोगाॅनिस्ट हॅूं। इसके अलावा मैंने अनुष्का शर्मा के साथ हिंदी फिल्म ‘परी’ की। राम कमल मुखर्जी के निर्देशन में ‘ब्रोकेन फ्रेम’ किया। बंगला में ‘टिकी टका’ व ‘एफ आई आर’ की, जिसमें मुख्य प्रोटोगाॅनिस्ट मेरा ही किरदार है। अब मैं अपनी नई बंगला फिल्म ‘‘फटाफटी’’ को लेकर अति उत्साहित हॅंू, जो कि जल्द ही सिनेमाघरों में पहुंचेगी। फिल्म ‘फटाफटी’ क्या है? - कभी-कभी एक फिल्म आपको एक परिवर्तन यात्रा पर ले जाती है, खैर, हमारी फिल्म ‘फटाफटी’ ऐसी ही एक फिल्म है। यह फिल्म डबल एक्सल माॅडल की कहानी है। सीधी सादी महिला है। उसका अपना घर है। पति है। पर वह खुद गोल मटोल है। कोई बीमारी नहीं है। इसमें स्वास्थ्य की भी बात की गयी है। फिल्म की नायिका को डिजाइनिंग, टेलरिंग आदि काम भी बहुत पसंद हैं। लेकिन उसे लगता है कि उसकी अपनी सीमाएं हैं। क्योंकि उसका फिगर माॅडल वाला नहीं है। वह सोचती है कि हमारे जैसे फिगर वालों के लिए कोई कुछ क्यों नही करता। तो वह सब काम छोड़कर खुद ही ब्लाॅग लिखना शुरू करती है। पर यह बात उसके परिवार में किसी को नहीं पता। एक दिन उसका ब्लाॅग ‘फटाफटी’ काफी लोकप्रिय हो जाता है। इस फिल्म के माध्यम से आप क्या संदेश देना चाहती हंै? - मैं हमेशा शरीर और सौंदर्य की सकारात्मकता में दृढ़ विश्वास रखती हूं। लेकिन इस फिल्म की करके मुझे दूसरा पक्ष समझने का अवसर मिला। यह जानना अजीब है कि आपका वजन, ऊंचाई, या यहां तक कि रंग किसी और का व्यवसाय कैसे बन सकता है? यदि यह ‘‘सौंदर्य मानदंड‘‘ में फिट नहीं होता है। मैं समझती हूं कि आत्म-प्रेम और अपने शरीर की देखभाल की यात्रा लंबी है। लेकिन किसी को यह तय न करने दें कि आप खुद को कैसे देखते हैं! अपने शरीर के प्रति दयालु रहें। अपनी बाॅडी को लेकर सहज रहें। इसके बाद..? - बहुत जल्द मेरी राम कमल मुखर्जी निर्देशित हिंदी फिल्म ‘‘ब्रोकेन फ्रेम’’ भी प्रदर्शित होगी। इस फिल्म में मेरी जोड़ी रोहित बोस राॅय के साथ है। इस फिल्म की कहानी से हर कोई रिलेट कर सकेगा। इसे कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ मंे सराहा जा चुका है। तथा कुछ दूसरी फिल्में हैं, जिन पर जल्द बात करुंगी। ताजा खबरों के लिए मायापुरी के साथ बने रहें. #bollywood latest news in hindi #bollywood news #bollywood latest news in hindi mayapuri #bollywood latest news updates #bollywood latest news update #Ritabhari Chakraborty हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article