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बर्थडे स्पेशल: पंडित बिरजू महाराज के जाने से थम गई पायलो की छनछन?

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बर्थडे स्पेशल: पंडित बिरजू महाराज के जाने से थम गई पायलो की छनछन?

-के. रवि (दादा)

देश के पंतप्रधान नरेंद्र मोदी ने आज बड़े सदमे के साथ देश के अंतरराष्ट्रीय आसामी बिरजू महाराज जी के निधन पर शौक जताया है।  प्रधान मंत्रीने इस पल अपने ट्विटर के जरिए कहा भारतीय नृत्य कला को विश्वभर में विशिष्ट पहचान दिलाने वाले पंडित बिरजू महाराज जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति!

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स्वर्गीय बिरजू महाराज को साल 1986 में पद्म विभूषण'  और 'कालीदास सम्मान' समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें 'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' और 'खैरागढ़ विश्वविद्यालय' से 'डॉक्टरेट' की मानद उपाधि भी मिल चुकी है। बिरजू महाराज का जन्म 4 फ़रवरी, 1938 को उत्तर भारत के लखनऊ,  'कालका बिन्दादीन घराने' में हुआ था। पहले उनका नाम 'दुखहरण' रखा गया था, जो बाद में बदल कर 'बृजमोहन नाथ मिश्रा' हुआ। बिरजू महाराज के लखनऊ घराने के  पिता  जगन्नाथ महाराज जो अच्छन महाराज के नाम से भी जाने जाते थे।

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अच्छन महाराज की गोद में महज तीन साल की उम्र में ही बिरजू की प्रतिभा दिखने लगी थी। इसी को देखते हुए पिता ने बचपन से ही अपने यशस्वी पुत्र को कला दीक्षा देनी शुरू कर दी। किंतु इनके पिता की शीघ्र ही मृत्यु हो जाने के बाद उनके चाचाओं, सुप्रसिद्ध आचार्यों शंभू और लच्छू महाराज ने उन्हें प्रशिक्षित किया। कला के सहारे ही बिरजू महाराज को लक्ष्मी मिलती रही। उनके सिर से पिता का साया उस समय उठा, जब वह महज नौ साल के थे।

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पंडित बिरजू महाराज ने विभिन्न प्रकार की नृत्यावालियों जैसे गोवर्धन लीला, माखन चोरी, मालती-माधव, कुमार संभव व फाग बहार इत्यादि की रचना की। निर्दशक सत्यजीत राॅय की फिल्म ’शतरंज के खिलाड़ी’ के लिए भी इन्होंने उच्च कोटि की दो नृत्य नाटिकाएं रचीं। बिरजू महाराज को  ताल वाद्यों की विशिष्ट अंतप्रेरणा भरी समझ थी, जैसे तबला, पखावज, ढोलक, नाल और तार वाले वाद्य वायलिन, स्वर मंडल व सितार इत्यादि के सुरों का भी इन्हें गहरा ज्ञान था। बिरजू महाराज ने हजारों संगीत प्रस्तुतियां भारत  के साथ आंतर राष्ट्रीय स्तर पर भी दीं।

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इन महान् शख्सियत ने गुरू की भूमिका में अपनी प्रतिभा को कई कलाकारों में अधिरोपित किया और नए कलाकारों को दुनिया से परिचित करवाया। 1998 में अवकाश ग्रहण करने से पूर्व पंडित बिरजू महाराज ने संगीत भारती, भारतीय कला केंद्र  में अध्ययन किया व दिल्ली के कत्थक केंद्र के प्रभारी भी रहे। इनके दो प्रतिभाशाली पुत्र  जयकिशन और दीपक महाराज भी इन्हीं के पदचिह्नों पर अग्रसरित हैं। अवकाश प्राप्त कर लेने के बाद भी इनके द्वारा नई प्रतिभाओं की कलमें तराशी जा रही हैं। बिरजू महाराज ने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त किए और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार ’संगीत नाटक अकादमी’, ’पद्म विभूषण’ 1956 में प्राप्त किया। मध्य प्रदेश सरकार सरकार द्वारा इन्हें ’कालिदास सम्मान’ मिला व ’सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’, ’एस एन ए अवार्ड’ व ’संगम कला अवार्ड’ भी इन्हें प्राप्त हुए। इन्हें नेहरू फैलोशिप के अलावा दो डाॅक्टरेट की मानद उपाधियां भी प्राप्त हुईं। इनका समर्पण, अभ्यास व दक्षता का करिशमा ही है कि यह भारत के महानतम् कलाकारों में से एक माने जाते हैं।

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बिरजू महाराज ने मात्र 13 वर्ष की आयु में ही नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय कला केन्द्र में सिखाना आरम्भ  किया। कुछ समय बाद इन्होंने कत्थक केन्द्र (संगीत नाटक अकादमी की एक इकाई) में शिक्षण कार्य आरम्भ किया। यहां ये संकाय के अध्यक्ष थे तथा निदेशक भी रहे। तत्पश्चात 1998 mr  में इन्होंने वहीं से सेवानिवृत्ति पायी। फिर  कलाश्रम नाम से दिल्ली में ही एक नाट्य विद्यालय खोला।

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बिरजू महाराज ने सत्यजीत राय की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी की संगीत रचना की, तथा उसके दो गानों पर नृत्य के लिये गायन भी किया। इसके अलावा वर्ष 2002 में बनी शाहरुख खान की मशहूर  हिन्दी फ़िल्म देवदास में एक गाने काहे छेड़ छेड़ मोहे का नृत्य संयोजन भी किया।  इसके अलावा अन्य कई हिन्दी फ़िल्मों जैसे डेढ़ इश्किया, उमराव जान तथा संजय लीला भन्साली की  निर्देशित बाजी राव मस्तानी में भी कत्थक नृत्य के संयोजन किये।

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पंडित बिरजू महाराज कथक नृत्य के लखनऊ कालका-बिंदडिन घराने का प्रमुख प्रतिपादक है, और दिल्ली में नृत्य स्कूल कलशराम के संस्थापक हैं जो कथक और संबंधित विषयों के क्षेत्र में प्रशिक्षण देने पर केंद्रित हैं। स्कूल में वे परंपरागत मापदंडों का उपयोग नई प्रस्तुतियों के नृत्य के लिए करते हैं, क्योंकि वह दर्शकों को व्यक्त करने की इच्छा रखते हैं कि शास्त्रीय शैली बहुत ही आकर्षक, दिलचस्प और सम्मानजनक हो सकती है।

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पंडित बिरजू महाराज को कला के अपने जुनून के अलावा, कारों का भी शौक है। अपने एक साक्षात्कार में बिरजू महाराज ने उल्लेख किया था कि वह यदि नृत्य कौशलता में निपुण ना होते तो वे एक मैकेनिक बन जाते। आज भी वह गैजेट्स के बहुत बड़े फैन हैं। उनका पसंदीदा शगल टेलीविजन सेट और मोबाइल फोन जैसे गैजेट्स को तोड़ना और उन्हें पहले की तरह पुनर्व्यवस्थित करना है। यह दिग्गज नृत्य गुरु हॉलीवुड की  फिल्में भी देखना भी पसंद करते हैं। उनके पसंदीदा एक्शन नायकों में, जैकी चैन और सिल्वेस्टर स्टेलोन को सबसे अधिक स्थान  हैं।

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बिरजू महाराज के पांच बच्चे हैं- दो बेटे और तीन बेटियां। उनके पांच बच्चों में दीपक महाराज, जय किशन महाराज और ममता महाराज प्रमुख कथक नर्तक हैं। गौरतलब हो कि पंडित   बिरजू महाराज की पत्नी का 15 साल पहले ही निधन हो गया था। कथक के दिग्गज पंडित बिरजू महाराज का 16 जनवरी 2022 की रविवार को देर रात दिल्ली में उनके घर पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 83 वर्ष के थे। महाराज-जी, जैसा कि वे लोकप्रिय थे, उनके परिवार और शिष्यों से घिरे हुए थे। उनके परिवारों ने बताया कि रात के खाने के बाद वे अंताक्षरी खेल रहे थे, तभी अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई।

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भारत के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक, कथक प्रतिपादक, गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे और उनका डायलिसिस उपचार चल रहा था। उनकी पोती ने कहा कि संभवत: कार्डियक अरेस्ट से उनकी मृत्यु हो गई। पंडित बिरजू महाराज प्रसिद्द कथक डांसर होने के साथ शास्त्रीय गायक ,कोरियोग्राफर भी हैं। वह श्री अचन महाराज के इकलौते बेटे और शिष्य थे। पूरी दुनिया में भारतीय कथक नृत्य का जाना-पहचाना चेहरा थे। उन्होंने कई देशों में परफॉर्म किया था। बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी माँ को मानते थे। जब वे नाचते थे और अम्मा देखती थी तब वे अम्मा से अपनी कमी या अच्छाई के बारे में पूछा करते थे।

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उसने बाबूजी से तुलना करके इनमें निखार लाने का काम किया।  संगीत भारती में प्रारंभ में 250 रु मिलते थे। उस समय दिल्ली के दरियागंज में रहते थे। वहाँ से प्रत्येक दिन पाँच या नौ नंबर का बस पकड़कर संगीत भारती पहुँचते थे। संगीत भारती में इन्हें प्रदर्शन का अवसर कम मिलता था। अंततः दुःखी होकर नौकरी छोड़ दी।  बिरजू महाराज की शादी 18 साल की उम्र में हुई थी। उस समय विवाह करना महाराज अपनी गलती मानते हैं। लेकिन बाबूजी की मृत्यु के बाद माँ घबराकर उन्होंने  जल्दी में शादी कर दी। वे शादी को नुकसानदेह मानते हैं। क्यूं की वह  विवाह की वजह से नौकरी करते रहे।

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बिरजू महाराज के गुरु भी उनके बाबूजी ही थे। वे अच्छे स्वभाव के थे। वे अपने दु:ख को व्यक्त नहीं करते थे। उन्हें कला से बेहद प्रेम था। बिरजू  महाराज को तालीम बाबूजी ने ही दि थी। शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज बचपन में नाचा करते थे। आगे भारतीय कला केन्द्र में उनका सान्निध्य मिला। शम्भू महाराज के साथ सहायक रहकर कला के क्षेत्र में विकास किया। शम्भू महाराज उनके चांचा थे। बचपन से महाराज को उनका मार्गदर्शन मिला। रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया,  क्योंकि महाराज जी छह साल की उम्र में नवाब साहब के यहाँ नाचते थे। अम्मा परेशान थी। बाबूजी नौकरी छूटने के लिए हनुमान जी का प्रसाद माँगते थे। नौकरी से जान छूटी इसलिए हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया जाता था।

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बिरजू महाराज अपने शिष्या रश्मि वाजपेयी को भी अपना शार्गिद बताते हैं। वे उन्हें शाश्वती कहते हैं। इसके साथ ही वैरोनिक, फिलिप, मेक्लीन, टॉक, तीरथ प्रताप प्रदीप, दुर्गा इत्यादि को प्रमुख शार्गिद बताये हैं। वे लोग तरक्की कर रहे हैं, प्रगतिशील बने हुए हैं, इसकी भी चर्चा किये हैं। जब महाराज जी के बाबूजी की मृत्यु हुई तब उनके लिए बहुत दुखदायी समय व्यतीत हुआ। घर में इतना भी पैसा नहीं था कि दसवाँ किया जा सके। इन्होंने दस दिन के अन्दर दो प्रोग्राम किए। उन दो प्रोग्राम से 500 रु इकट्ठे हुए तब दसवाँ और तेरह की गई। ऐसी हालत में नाचना एवं पैसा इकट्ठा करना बिरजू महाराजजी के जीवन में दुःखद समय आया था। और आज वे अपने सारे चहेतो को छोड़कर हम सब से अलग होकर चले गए। हम जब भी बिएजू महराज जी को देखते हैं तो हमें स्वर्गीय. गोपी कृष्णन जी की याद आती है।

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पंडित बिरजू महराज को देश के हर क्षेत्र के आम से आम और खास से खास शक्षियतो ने काफी शौक मग्न होते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की हैं।

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