Birthday Prasoon Joshi: देश के अच्छे कामों पर चर्चा करके देख लेते हैं सन् 90 के उतरते दशक में जब फिल्मों का म्यूजिक हल्का होता जा रहा था और नए सिंगर्स भी काम की तलाश में भटक रहे थे, तब दौर प्राइवेट एल्बम का भी आने लगा था... By Mayapuri Desk 16 Sep 2024 in बीते लम्हें New Update Follow Us शेयर सन् 90 के उतरते दशक में जब फिल्मों का म्यूजिक हल्का होता जा रहा था और नए सिंगर्स भी काम की तलाश में भटक रहे थे, तब दौर प्राइवेट एल्बम का भी आने लगा था. उस प्राइवेट एल्बम के दौर में, प्रसून जोशी का काम भी धीरे से श्रोताओं के कान में जा रहा था लेकिन, जैसा कि इस देश का तौर है, यहाँ पहले भी लेखकों को जल्दी पहचान नहीं मिल पाती थी, उस दौर में भी नहीं मिल पाई. बाकी मोहित चैहान के बैंड सिल्क रूट का सबसे मशहूर गाना ‘डूबा-डूबा रहता हूँ’ (1998) मोहित चैहान के साथ-साथ प्रसून जोशी ने भी लिखा था. इसके साथ ही शुभा मुदगल की एल्बम ‘अब के सावन, ऐसे बरसे’ (1999) को लिखने वाले भी आदरणीय प्रसून जोशी ही थे. लेकिन प्रसून जोशी का कलात्मक सफर यहाँ से शुरु नहीं होता है, बल्कि इससे करीब 10 साल पहले, मात्र 17 साल की उम्र में प्रसून जोशी ने अपनी पहली किताब ‘मैं और वो’ पब्लिश करवाई थी! उनके पिता डीके जोशी और माँ सुषमा जोशी, दोनों ही अल्मोड़ा जिले के रहने वाले थे और क्लासिकल संगीत में सिद्धहस्थ थे! इसके साथ ही उनकी माँ एक तरफ पोलिटिकल साइंस की लेक्चरर थीं तो 30 साल उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में भी काम किया है! उनके पिता स्टेट एजुकेशन सर्विस में एडिशनल डायरेक्टर रह चुके हैं. कला और शिक्षा से समृद्ध परिवार में जन्में होने के बावजूद प्रसून जोशी को लेखन में कैरियर बनाने की इजाजत नहीं थी. उनके माँ-पिता पढ़ाई के प्रति बहुत सजग और पाबंद थे. इसीलिए प्रसून जोशी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद गाजियाबाद से एमबीए किया और एक नामी ब्रिटिश एडवरटाइजिंग कम्पनी में काम शुरु कर दिया. उनकी काबिलियत का नमूना इस बात से समझिए कि उस कम्पनी में मात्र दस साल के अन्दर वह एग्जीक्यूटिव क्रिएटिव डायरेक्टर बना दिए गये. इसके बाद 2002 में जिस कम्पनी में काम शुरु किया वहाँ सीधे वाईस प्रेसिडेंट की पोस्ट उन्हें मिली और आज वह सीईओ के पद पर कार्यकृत हैं. प्रसून जी के फिल्मी कैरियर पर नजर डालने से पहले उनके नाम के मायने जानना बहुत जरूरी है. उनके नाम का अर्थ है ‘फूल’ एक खूबसूरत सा खिला हुआ फूल जो जहाँ अपना मुकाम बनाए वहाँ अपनी खुश्बू छोड़ने में कामयाब रहे. कुछ ऐसा ही प्रसून जोशी का कैरियर भी है. राज कुमार संतोषी की मशहूर फिल्म ‘लज्जा’ में उन्होंने पहली बार गीतकार की चेयर ऑफर हुई थी. लेकिन बतौर गीतकार उनकी पहली फिल्म भोपाल एक्सप्रेस है जो सिर्फ अवाॅर्ड फंक्शन्स में ही रिलीज हो सकी थी. इस फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर शंकर एहसान लॉय थे. लज्जा में अनु मलिक की कम्पोजीशन में सारे गाने गीतकार समीर ने लिखे थे लेकिन एक गाना, ‘कौन डगर, कौन शहर तू चली कहाँ’ प्रसून जोशी ने लिखा था और सिर्फ यही गीत स्वर कोकिला लता मंगेश्कर ने गाया था. इसके बाद मल्टीस्टारर फिल्म ‘आँखें’ में भी उन्हें एक गाना ‘गुस्ताखियाँ हैं, बेताबियाँ हैं, छाई हैं मदहोशियाँ’ मिला था! साथ ही इसका टाइटल ट्रैक भी प्रसून जोशी ने ही लिखा था. इसके बाद जतिन-ललित के म्यूजिक में कुणाल कोहली की फिल्म ‘हम तुम’ की पूरी एल्बम लिखने का जिम्मा प्रसून जोशी को ही मिला और 2004 में आई इस फिल्म ने और फिल्म के गानों ने दर्शकों का दिल जीत लिया. ‘साँसों को साँसों से मिलने दो जरा, धीमी सी धड़कन मचलने दो जरा, लम्हों की गुजारिश है ये, पास आ जाएं, हम तुम’ और “साथ ही लड़की क्यों न जाने क्यों लड़कों सी नहीं होती” सुपर डुपर हिट गाने थे. फिर क्या था, प्रसून जोशी के पास गीत लिखवाने वालों की लाइन सी लग गयी. पर प्रसून जोशी के पास न इतना समय था कि वो रोज फुल टाइम गाने लिख सकें और न ही उनकी इच्छा थी,क्योंकि प्रसून जोशी का मानना है कि जबतक कोई फिल्म उन्हें टच नहीं कर जाती, या उसमें कुछ अलग बात नजर नहीं आती, तबतक मैं उसके लिए काम नहीं करता. इसके बाद प्रसून जोशी ने संजय लीला भंसाली के साथ ब्लैक में भी काम किया लेकिन उनकी सबसे ज्यादा तारीफ हुई फिल्म ‘रंग दे बसंती’ की एल्बम लिखने में. “अपनी तो पाठशाला मस्ती की पाठशाला” “कुछ कर गुजरने को, खून चला खूब चला” “तू बिन बताए मुझे ले चल कहीं” “लुका छुपी, बहुत हुई, सामने आ जा न” आदि इस फिल्म के सारे गाने सुपर-डुपर हिट हुए और प्रसून जोशी के पास अवाॅर्ड्स की झड़ी लग गयी. उन्हें पहली बार फिल्मफेयर में नॉमिनेशन भी मिला! इसी साल कुनाल कोहली के साथ फिर टीम बनाते हुए, फिर जतिन-ललित के साथ और फिर आमिर खान की फिल्म फना में उन्होंने गाने लिखे और ऐसे लिखे कि एक-एक गाना सुपरहिट साबित हुआ. “चाँद सिफारिश जो करता हमारी” और “देखो न, हवा कुछ हौले हौले, जुबा से क्या कुछ बोले, क्यों दूरी है अब दरमियाँ” जहाँ रोमांटिक गीत थे तो “चंदा चमके चम चम” पूरी तरह बच्चों का गाना था. और “देश रंगीला” जैसा गीत भी फिल्म में था जो पूरी तरह से देशभक्ति से ओत-प्रोत था. चाँद सिफारिश के लिए उन्हें ‘फिल्मफेयर अवार्ड से भी नवाजा गया. आमिर खान के साथ फिर टीम-अप करते हुए, और अपने पुराने साथी ‘शंकर महादेवन’ का हाथ थामते हुए प्रसून जोशी ने ‘तारे जमीन पर’ के गाने लिखे और ऐसे गाने लिखे कि नेशनल अवाॅर्ड अपने नाम कर लिया! बच्चों के लिए प्रसून जोशी को लिखने में यूँ भी बहुत उत्साह रहता है, फिर उन्हें अपनी बेटी के लिए भी यह फिल्म बहुत पसंद है. इस फिल्म के किस गाने की तारीफ ज्यादा की जाए, ये सबसे मुश्किल काम है. “खोलो खोलो दरवाजे पर्दे करो किनारे खूंटे से बंधी है हवा मिल के छुड़ाओ सारे” “बम बम भोले मस्ती में डोले” या “क्यों दुनिया का नारा, जमे रहो, क्यों दिल का इशारा जमे रहो” इसके हर गाने में आपको गीतकारी की बारीकियां पढ़ने को मिलेंगी. लेकिन गीत “मैं कभी बतलाता नहीं, पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ” इस एल्बम का बेस्ट गीत है. इसीलिए इस अकेले गीत को फिल्मफेयर, नेशनल अवाॅर्ड, स्टार गिल्ड अवाॅर्ड आदि ढेरों अवाॅर्ड्स से नवाजा गया है. ‘तारे जमीन पर’ के बाद प्रसून जोशी के पास फिर फिल्मों की लाइन लग रही थी पर उन्होंने अपना काम सीमित ही रखा. उनका कहना था कि मैं पैसे के लिए तो नहीं लिखता हूँ, मेरे पास पैसा कमाने के लिए अपनी कम्पनी है. और ये सच भी है, वो जब एड एजेंसी में क्रिएटिव हेड बने तो कोका-कोला से लेकर क्लोर-मिंट तक, हर एड में उन्होंने जान डाल दी. उनके विज्ञापनों में भी एक कहानी, एक संगीत नजर आता है. राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ फिर टीम अप करते हुए उन्होंने फिर ए-आर रहमान का हाथ थामा और ‘दिल्ली 6’ के गाने लिख डाले. फिल्म में “ससुराल गेंदाफूल” और “मसककली” बहुत पॉपुलर गाने हुए. यूँ ही साल में एक बड़ी हद दो फिल्में करते हुए प्रसून जोशी ने एक बार फिर आमिर खान के साथ ‘गजनी’, विपुल शाह के साथ ‘लन्दन ड्रीम्स’, पियूष झा के साथ ‘सिकंदर’, प्रकाश झा के साथ ‘आरक्षण’, सत्याग्रह, और प्रीटी जिंटा की इकलौती प्रोड्यूस डायरेक्टेड फिल्म इश्क इन पैरिस की. खुद को पैसों के चक्कर में न बांधते हुए प्रसून जोशी ने एक बहुत छोटे बजट की फिल्म ‘चिट्टागोंग’ के लिए भी गाने लिखे और मजा देखिए कि इसी फिल्म के गाने ‘बोलो ना’ के लिए उन्हें दूसरी बार नेशनल अवार्ड मिला. राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ तीसरी बार हाथ मिलाते हुए उन्होंने भाग मिल्खा भाग की स्क्रिप्ट भी लिखी, डायलॉग भी लिखे और गीत तो लिखे ही. इस फिल्म के गीत ‘जिंदा है तो प्याला पूरा भर दे, कंचा टूटे, चूरा कांच कर दे’ के लिए लिए उन्हें तीसरी बार फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया. फिल्म ‘नीरजा’ के लिए उन्होंने एक बार फिर ‘माँ’ के लिए गाना लिखा और इस बार एक बेटी की तरफ से लिखा. उनकी क्रोनोलॉजी समझिए कि माँ पर लिखा पहला गीत एक बेटे की तरफ से था ‘पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ’ उनका दूसरा गीत एक माँ की तरफ से अपने बेटे के लिए था ‘लुका छुपी बहुत हुई, सामने आ जा न’ और तीसरा गीत एक बेटी की तरफ से माँ के लिए था कि ‘ऐसा क्यों माँ’ इन तीनों ही गीतों में वो ज्जबात हैं जो सुनते के साथ ही आँखें भिगा देने पर मजबूर कर दें. प्रसून जोशी को 2017 में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन का चेयरमैन भी नियुक्त किया था जो अपने आप में बहुत बड़े सम्मान की बात है. उनकी देशभक्ति के बारे में तो दुनिया जानती है, लेकिन बहुत से जलने वाले उन्हें सरकार का चमचा भी कहते हैं. हालाँकि प्रसून इस बात का कभी बुरा नहीं मानते बल्कि अपने ही अंदाज में कहते हैं कि ‘बहुत समय से नजर का चश्मा काला करके भारत को देखते रहे हैं हम, क्यों न कुछ समय के लिए कुछ अच्छा देखने की कोशिश की जाए’ वो खुले तौर पर कहते हैं कि बीते सालों में पहली बार भारत में कोई ऐसी सरकार बनी है जिसपर मुझे भरोसा है कि ये कुछ अच्छा करेंगे. उन्होंने लन्दन के रॉयल पैलेस में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू भी किया था जिसमें उन्होंने तमाम सवाल पूछे लेकिन उनकी इस बात पर बहुत आलोचना हुई कि उन्होंने देश में जो कमी हैं, जो दिक्कतें हैं उनपर कोई सवाल क्यों नहीं किया? एक साहित्य समारोह में बैठे प्रसून जोशी खुलकर कहते हैं कि “विदेश में बैठकर, अपने देश की बुराई करना मेरे जहन को गंवारा नहीं है. कुछ लोगों की आदत सोलोमन आइलैंड के उन वासियों जैसी हो गयी है जो किसी पेड़ को काटने से पहले उसके चारों तरफ इकट्ठे होकर रोज उसे खूब गालियाँ देते हैं, उसे कोसते हैं. धीरे-धीरे वो पेड़ मुरझा जाता है और मर जाता है, ये लोग भी देश को ऐसे ही कोसते हैं और चाहते हैं कि ये देश भी ऐसे ही बर्बाद हो जाए तो इन्हें सुकून मिले” उनके गीत जितने खूबसूरत हैं, उससे कहीं ज्यादा उनकी बातें प्रेरणात्मक हैं. वह कहते हैं “जबतक आप बाहर निकलकर किसी से मिलते नहीं हो, तबतक आपको अपने दुःख बहुत बड़े लगते हैं, अपनी खुशियाँ सबसे ज्यादा लगती हैं, अपनी सफलताएँ सबसे बड़ी नजर आती हैं लेकिन जब आप घर से दूर आकर लोगों से मिलते हो, उन्हें समझते हो, उनके दुखों को टटोलते हो तो पाते हो कि आपका दुःख तो कुछ भी नहीं है. फिर आपको एहसास होता है कि जिस गम को, जिस दर्द को आप अपना दुश्मन समझ रहे हो, अपनी बर्बादी का कारण मान रहे हो वो असल में आपको बना रहा है, आपकी पर्सनालिटी बिल्ड कर रहा है. फिर आपको अपने उसी दर्द से प्यार होने लगता है. फिर आपको उसी दर्द के साथ जीने में मजा आने लगता है और तब आप इस दुःख और सुख की परिभाषाओं से एक हाथ ऊपर उठ जाते हो” मन से कवि होने की वजह से प्रसून जोशी का यह भी मानना है कि कवितायें और शायरी सिर्फ फिल्मों के भरोसे नहीं रहनी चाहिए क्योंकि फिल्मों में वो कविताएं होती हैं जो फिल्म के पात्र की भावनाएं दर्शाना चाहती हैं लेकिन जो कवि है, उसकी फीलिंग्स कहाँ हैं? वो भावनाएं मिलेंगी फोक संगीत में, लिटरेचर में, सूफियों के गानों में” 2015 पद्म भूषण से सम्मानित प्रसून जोशी जी की जितनी तारीफ की जाएँ उतनी कम है. उनकी इस नज्म ‘बाबुल’ के साथ हम इस लेख का समापन करते हैं, यह नज्म उन्होंने गाँव ग्राम की उन बेटियों की ओर से लिखी है जिनका विवाह उम्र से कहीं पहले हो जाता है. आप भी पढ़िए और भाव समझिए बाबुल जिया मोरा घबराए, बाबुल, रहा न जाएबाबुल मोरी इतनी अरज सुन ली जो,मोहे सुनार के घर न दीज्योमोहे जेवर कभी न भाए बाबुल मोरी इतनी अरज सुन ली जो,मोहे व्यापारी घर न दीज्योमोहे धन दौलत न सुहाएबाबुल मोरी इतनी अरज सुन ली जोमोहे राजा घर न दीज्योमोहे राज करना न आएबाबुल मोरी इतनी अरज सुन ली जो, मोहे लोहार के घर दे दीज्योजो मोरी जंजीरें पिघलाए प्रसून जोशी जी को मायापुरी मैगजीन की ओर से जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं Read More: द ग्रेट इंडियन कपिल शो में आलिया और Jr NTR समेत ये स्टार्स होंगे गेस्ट निक और मालती संग फ्रांस में रोमांटिक टाइम स्पेंड कर रही हैं प्रियंका 'The Buckingham Murders' ने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर किया इतना कलेक्शन आयुष्मान खुराना का ट्रेन में गाने से लेकर बॉलीवुड स्टार बनने तक का सफर #Prasoon Joshi #Prasoon Joshi birthday #birthday special Prasoon Joshi हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार 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