Birth Anniversary nadira: जाने एक्ट्रेस नादिरा के बारे में अनसुनी बातें By Mayapuri 05 Dec 2023 | एडिट 05 Dec 2023 03:30 IST in बीते लम्हें New Update Follow Us शेयर नादिरा (nadira) के बारे में: फिल्म ‘आन’ का एक दृश्य- दरबार-ए-आम में सारी प्रजा बेठी है, क्योंकि आज तलवारबाजी की प्रतियोगिता होने वाली है, और इससे पहले कि यह प्रतियोगिता शुरू हो एक जिद्दी घोड़े पर सवार राजकुमारी उपस्थित होती है, घोड़ा संभाले नहीं संभल रहा है और वह किसी गैर को अपनी पीठ पर हाथ भी नहीं रखने देती है, तो उस पर सवार होना तो और बात है, लेकिन राजकुमारी को वह जानता पहचानता है और लगाम को तेज कसाव से वह राजकुमारी के बस में होना ही अपनी खैर मनाता है, घोड़े पर सवार नादिरा के सु्र्ख गाल, आंखों में धधकती चिगांरी, बिखरे हुए घुंघराले बाल और पूरे चेहरे पर गुस्से की सैकड़ों रेखाए, यह बता रही थी कि प्रकृति ने उसे औरत जरूर बनाया है लेकिन वह अपनी बहादुरी में किसी भी मर्द से दो-दो हाथ कर सकती है. स्व. महबूब साहब ने इसी दृश्य में प्रतीक द्वारा यहां तक बता दिया है कि नादिरा में बिगड़े हुए घोड़े को बस में करने की ताकत है. एक जिद्दी-आन-बान -शान की जीती-जागती मिसाल के रूप में नादिरा ने जो कमाल किया है, वह हमेशा ही एक उदाहरण के रूप में पेश किया जाता रहेगा नादिरा वो है जिसने एक क्लब डांसर की ज़िन्दगी को भी इस वास्तविकता के साथ साकार किया जिसके लिए हर तारीफ कम है ‘आन’ के बाद “नममा’,वारिस’ और ‘रफ्तार’ जैसी फिल्में भी आई लेकिन इसके बाद फिर राजकपूर कृत ‘श्री 420’ की बारी आई, एक क्लब डांसर की उन्मुक्त जिंदगी को नादिरा ने जिस वास्तविकता के साथ साकार किया वह फिल्म की एक विशेष उपलब्धि है, और इसीलिए ‘श्री 420’ की हीरोइन अगर नर्गिस की जगह नादिरा को मान लिया जाए, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं किंतु नादिरा इस फिल्म में ‘एक बुरी औरत’ बनी है, लगा जैसे ‘आन’ की वह जिद्दी औरत ने फिर एक नया जन्म लिया है, और इस बार वह बची-खुची सारी कसर पूरी कर लेने पर तुली है. इस औरत को जमाने में किसी की परवाह नहीं, बेहिसाब ढंग से सिगरेट के कश लेना, बेहद कामुक अंदाज में शरीर के हर हिस्से को झटकना और आंखों से शराब की बरसात करने में नादिरा ने सारी सीमाओं को तोड़ दिया, किंतु सवाल यह उठता है कि औरत के इस घृणित रूप को पेश करने की .आखिर कौन-सी मजबूरी थी, नादिरा कहती है-“बात किसी मजबूरी की नहीं, मैं सिर्फ राज के साथ काम करना चाहती थी, जब राज के यहां से फोन द्वारा खबर मिली कि उसकी फिल्म में मेरे लिए एक रोल है, तो मैं भाग कर आर.के.स्टूडियो गई, राज ने सीन सुनाना शुरू किया. एक-दो सीन उसने सुनाए भी और मैंने बीच में टोके दिया-“सीन सुनाने को कोई जरूरत नहीं मैं सिर्फ काम करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ' लेकिन आज से दस-पंद्रह वर्ष पहले फिल्म के पर्दे पर सिगरेट के कश लेने के दृष्य देने के लिए राजी होना कैसा लगा था... फिल्म में सिगरेट के कश लेने में मेरी जान निकल जाती थी. क्या बतांऊ कि जान कैसे निकल जाती थी, और इसीलिए अगर दुबारा फिल्म देंखे तो इस बात को गौर करेंगे कि मैंने फिल्म में सिगरेट के कश कम लिए हैं, पोज ज्यादा दिए हैं-उसके बाद से आज तक जब भी कोई इस तरह के रोल मेरे लिए निकलते हैं, और मुझे सिगरेट पीने के लिए कहंा जाता है, तो मैं साफ इंकार कर जाती हूं. पिछले दिनों चेतन ने ‘हंसते जख्म’ में भी मुझे सिगरेट के कश लेने के लिए कहा और मैंने साफ इंकार कर दिया, सिगरेट पीना मुझे पंसद नहीं.” और ‘श्री 420’ के प्रदर्शन के बाद चार-पांच वर्षों का एक ऐसा भी समय आता है, जब फिल्म दर्शक यह महसूस करते हैं, कि नादिरा रजत पट से अचानक किसी अंधेरी दुनिया में गायब हो जाती है, इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए? सीधे-सादे अंदाज में नादिरा स्पष्ट करती है-“इसमें कसूर सिर्फ मेरा ही है, ‘श्री 420’ के बाद उस समय लगभग 200-250 ऑफर उसी ढंग के रोल के आए और सभी को मैंने बेरहमी से ठुकरा दिया.” फिर जब वापसी हुई तो तीसरे दर्जे की फिल्म मिली इतना कुछ होने के बाद भी नादिरा को भुला देना इतना आसान नहीं था, लेकिन जिस रूप में वह पर्दे पर वापस आई, वह तीसरे दर्जे की स्टंट फिल्में थी, ‘नादान जोरो’ की तरह. किंतु ‘नादान जोरो’ में नादिरा के लिए कोई जगह नहीं थी, इस दौर में नादिरा की अभिनय प्रतिभा के साथ सबसे ज्यादा अनर्थ हुआ है., इसी बीच बाबू राम इशारा ने ‘चेतना’ शुरूकी थी और इस फिल्म में नादिरा की भूमिका लंबाई के हिसाब से बहुत छोटी है, लेकिन प्रभाव की दृष्टि से सबसे अधिक सार्थक और गहन ‘चेतना’ का किस्सा बयान करती हुई नादिरा एक राज की बात बताती हैं, “दरसल में अगर इशारा इजाजत दें तो मैं, बताना चाहूंगी कि ‘चेतना’ के लिए अपनी भूमिका मैंने स्वयं निर्धारित की, रेहाना को जब उस लड़के से शादी का ऑफर मिलता है, तो वह किसी साधू से इस बारे में राय लेने के लिए जाना चाहती है, यहां पर मैंने बाबू को यह कहा कि बजाय इसके कि वह लड़की किसी साधू-सन्यासी से राय लेना चाहती है, क्यों न किसी अपने ही पेशे की औरत से राय ले क्योंकि साधुओं को इस जिंदगी की तकलीफों और उलझनों का तो कोई ज्ञान नहीं होगा जबकि इस पेशे की औरत सही ढंग से उसे इस जिंदगी की हकीकत बता सकती है, बाबू को मेरी राय जंच गई और मैनें बहुत बढ़िया ढंग से सीन लिखा... पर सफर यूँ ही आगे बढ़ता रहा “चेतना” के बाद फिल्मकारों को इसकी खबर मिली, कि नादिरा अभी जिंदा है, और वह बाकायदा अपने पूरे मिजाज लेकर पर्दे को फाड़ देने” जैसी बात अभी भी पैदा कर सकती हैं. नादिरा फिर चल पड़ती हैं, ‘इंसाफ का मन्दिर’, ‘एक नजर’, ‘हंसते जख्म’, ‘तलाश’, ‘वो मैं नहीं’ और ‘जूली’ की तरह कई फिल्में आती हैं, हर फिल्म में नादिरा की उपस्थिति का पता दर्शकों को अवश्य होता है, ‘जूली’ में उसकी भूमिका को लेकर फिल्म फेयर का अवाॅर्ड भी मिला लेकिन वह कहती हैं-“इधर की फिल्मों में संजीव कुमार की मां के रूप में ‘इंसाफ का मंदिर’ में मैंने बहुत बढ़िया रोल किया था, मां की भूमिका में प्रस्तुत होने का यह मेरा पहला तर्जूबा था, लेकिन इसे मैंने जी-जान से निभाया पता नहीं क्यों लोगों का ध्यान उस ओर नहीं गया?” नादिरा को फिल्मों की ओर समूचे रूप में कोई बात कहीं जाए तो इतनी बातें साफ तौर पर देखी जायेंगी, कि हर एक फिल्म में नादिरा अभी भी “आन” की वही पुरानी नादिरा हैं, वही गुस्से में तनी हुई भवें और वही जिद्दी औरत, क्या यह सब एक जैसा नहीं है? कभी कोई नहीं कह सकता कि नादिरा ने एक ही तरह के अंदाज़ पेश किए इस संदर्भ में नादिरा मेरी बातों से असहमति प्रकट करती हैं-“यह कोई नहीं कह सकता कि हर फिल्म में मैंने एक ही तरह के अंदाज पेश किए हैं, बल्कि ज्यादातर फिल्मों में मेरे रोल से हमदर्दी ही हुई है, किसी से हमदर्दी होने का तरीका यह नहीं है, कि मैं पछाड़ खा-खा कर रोऊ, खुद अपने जीवन में भी मैं उसी आदमी के लिए तकलीफ महसूस करती हूं, जो गंभीर किस्म का आदमी हो, ऐसे आदमी की आंखों में एक बूंद आंसू भी मुझे पिघला डालते हैं....! फिल्मों में नादिरा ने जिन चरित्रों की भूमिकाएं निभाई हैं, उसका बाहरी लोगों पर कुछ और ही असर पड़ा है दूसरों की तुलना में मैं अपने आपको अधिक स्वतंत्र महसूस करती हूं, और कम से कम पांच हजार लोगों की भीड़ के बीच में भी घिर जाऊं तो किसी में भी मुझे छूने की, हिम्मत नहीं होगी. लोगों को मुझे देख कर ऐसा लगता है, जैसे मैं अभी किसी को नोच लूंगी अथवा काट खाऊ गी.... फिर मैंने अचानक ही पूछ डाला-“क्या घर में भी आप उसी तरह गुस्सा करती हैं, जैसे फिल्म के पर्दों पर ?” नादिरा इंकार करती हैं-“नहीं-नहीं बिल्कुल नहीं बल्कि फिल्म के पर्दे पर ही इतनी गुस्से बाजी कर लेती हूं, कि घर में गुस्सा करने का मौंका ही नहीं मिलता.” पुरानी पीढ़ी की नायिकाओं में एक खास बात यह पाई जाती है, कि वे अपने भूतकाल के ऐश्वर्य में डूबी वर्तमान की भत्र्सना करती हुई अवसर पाई जाती है, कि यह वर्तमान भ्रष्ट है और वह भूत बहुत सुनहरा था, नादिरा इस क्रम में अपवाद लगेंगी. वह कहती हैं-“गुजरा हुआ जमाना हर किसी को बहुत प्यारा लगता है. गुजरे हुए समय में अगर किसी ने जेल और मच्छरों के बीच भी वक्त काटा हो तो भी वह कहेगा-‘क्या जेल थी! क्या बड़े-बड़े मच्छर थे, न आज वह जेल है और न आज वह मच्छर! मुझे अपने वर्तमान से कोई शिकायत नहीं बल्कि आज हम जेट की रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं, इस तरक्की को कैसे झुठलाया न जा सकता है? इसे झुठलाने कर मतलब अपने को झुठलाना है.... नादिरा की उम्र लगभग 43वर्ष की है, लेकिन उनकी खूबसूरती और नाक-नक्श में अभी भी एक तीखापन है, उनका गोरा रंग, उनके बात करने का जंवा दिल अंदाज, उनकी चंचलता उनकी हंसी और उनकी नजाकत को देखकर अचानक ही मन उनके यौवन को कल्पना में लीन होना चाहता है... किसी भी नई उम्र के युवक को अठारह वर्षीय नादिरा की झलक देखने का मौका नहीं मिल सकता-लेकिन इस मौजूद नादिरा को देखकर वह अवश्य कह सकता है, कि अभी यह हाल है तो उस वक्त क्या कयामत रही होगी... फिल्म में काम करती हुई नादिरा ने अपने जीवन के 26 वर्ष गुजारे हैं, और अपनी उम्र का अनुभव का निचोड़ पेश करती हुई कहती हैं, यह सच है कि फिल्मों में काम करते हुए 26 वर्ष गुजरे लेकिन मैंने गिनती के हिसाब से ज्यादा फिल्मों में काम नहीं किया बल्कि जितनी भी फिल्मों में काम किया ज्यादातर सफल रहीं और उनमें मेरे काम की सराहना हुई. इतने दिनों का मेरा तर्जुबा यही है कि यहां 90 प्रतिशत नसीब काम करता है और 10 प्रतिशत कोशिश. इसी नसीब की वजह से यहां ऐसे लोग मिलेंगे जिन्हें एक्ंिटग की जरा भी तमीज नहीं, अगर कोई इजाजत दे तो मैं एक से एक बड़े गदहे को सामने लाकर खड़ा कर सकती हूँ, लेकिन उनका नसीब है और वे चल रहे हैं..... नादिरा बड़े ही रोचक अंदाज में अपनी बातें समाप्त करती हैं. ‘मामा भांजा’, “मधु मालती’ और “दुनिया मेेरी जेब में’ उनकी आगामी फिल्में हैं, और उनका पता है.....!! अरुण कुमार शास्त्री ‘जूली’ की सफलता और नादिरा के बढ़िया अभिनय ने उसे फिर से मार्केट में खड़ा कर दिया है। आज फिर से प्रोडयूसरों की लाईन नादिरा के घर पर लग गई है। मैं जब मिला तो नादिरा की आँखों में आंसू आ गये और कहने लगी:- "कमाल है आज पच्चीस साल हो गये मुझे इस लाईन में, लेकिन ऐसा लगता है लोग मुझे अभी पहचानने लगे हैं लेकिन जैसे कि ‘आॅफर’ आ रहे हैं उससे मुझे डर है कि मैं ‘आन्टी’ और ‘मम्मी’ के रोल के लिए ‘टाईप’ बन कर न रह जाऊं।’’ हमें भी सुनकर बड़ा दुख हुआ। आदमी वही अदाकारी वही। सच है इस फिल्मी दुनिया का कोई भरोसा नहीं। #about nadira #actress nadira #birthday special nadira #happy birthday nadira #nadira birthday special #nadira known facts #nadira story #nadira unheard story #birthday nadira #nadira article #nadira birthday हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article