“दिलीप कुमार अपनी पहली फिल्म पाने के लिए बॉम्बे टॉकीज से कैसे जुड़े थे? यह एक रोचक किस्सा है...!” महर्षि आजाद By Mayapuri Desk 10 Jul 2021 in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर बॉम्बे टाकीज स्टूडियोज बैनर को पुनर्स्थापित करने वाले तथा संस्कृति भाषा को विश्व स्तर पर प्रचारित करने के जोश से लवरेज दार्शनिक, फिल्मकार और अभिनेता महर्षि आजाद ने हिंदी फिल्मों के सुप्रीमो दिलीप कुमार की मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त किया है और कहा है कि दिलीप साहब के रूप में बॉम्बे टॉकीज स्टूडियोज ने अपना एक यादगार जीवित स्तंभ खो दिया है। वह बॉम्बे टाकीज का एक अहम हिस्सा थे। संस्कृति फिल्म “अहम ब्रह्मर्षि“ के प्रचार प्रसार और सम्मान के लिए देश और दुनिया भर के शहरों में घूम चुके अभिनेता महर्षि आजाद हिंदी फिल्मों के पुरोधा बैनर ’बॉम्बे टॉकीज’ के संस्थापकों में से एक स्वर्गीय राज नारायण दुबे के पौत्र हैं। आजाद बताते हैं- “बहुत कम लोग ही सही बात जानते हैं कि दिलीप साहब का ’बॉम्बे टाकीज’ बैनर से जुड़ना कैसे हो पाया था। दरअसल पाकिस्तान से दिलीप साहब के वालिद भारत आकर नासिक में बस गए थे, जो तब बॉम्बे ही कहा जाता था। यहां वे फल बेचने का काम करते थे। बॉम्बे टॉकीज की स्थापना हो चुकी थी। इस बैनर के संस्थापक थे- राज नारायण दुबे, देविका रानी और हिमांशु राय। हुआ यह कि नासिक में एक सड़क से राज नारायण दुबे, देविका रानी और और एक लेखक (जो शायद भगवती चरण वर्मा थे) अपनी गाड़ी में बैठे जा रहे थे। किसी फल बेचनेवाले की आवाज कानों में गूंजी। आवाज एक नवजवान लड़के की थी। ये लोग रुक गए। लड़के की आवाज में एक खिंचाव था। उसने पूछने पर अपना नाम यूसुफ खान बताया। उस लड़के को फिल्म में काम करने का प्रस्ताव देकर और उसको बम्बई (अब मुम्बई) बुलाकर भी इनलोगों के मन मे कोई दुविधा रह गई थी। ये लोग हिन्दू और सनातनी सोच के लोग थे।” “बॉम्बे टाकीज में यूसुफ खान को 1250 रुपये की नौकरी पर रखे जाने के समय उनको कहा गया कि नाम बदलना पड़ेगा। तब 3 नाम उनके सामने लेखक ने सुझाए थे- यूसुफ खान , दिलीप कुमार और वासुदेव। और, दूरदर्शी सोच वाले यूसुफ ने बिना लाग लपेट के ’दिलीप कुमार’ बनना पसंद किया था। सन 1944 में बनी फिल्म ’ज्वार भाटा’ के साथ दिलीप कुमार नाम का वह लड़का जब सिनेमा के पर्दे पर उतरा तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा... कि वह किसी फ्रूट स्टाल से उठकर आया था या वह कभी यूसुफ खान था। यह कहानी हमने बाप-दादा और उस समय के स्टूडियोज के कर्मियों से सुना है। बाद मे लोग किताब में या लेख में क्या क्या लिखे हैं, वो तो स्टारों के लिए शिलालेख लिखने जैसी बातें होती हैं।” “मैं खुश किस्मत हूं कि इस लिजेंड स्टार से उनके आखिरी दिनों में मिलने का सौभाग्य पा सका हूं।” बताते हैं आजाद। “पहले भी कई बार मिला था उनसे।वह मुझसे बॉम्बे टाकीज बैनर का झंडा आगे बढ़ाने के लिए कहते थे और मेरी संस्कृत भाषा की फिल्म को लेकर जानने की उत्सुकता दिखाते थे। ऐसे लिजेंड एक्टर और डेडिकेटेड लोग दुनिया मे कम ही पैदा होते हैं। मैं बॉम्बे टाकीज स्टूडियोज की तरफ से उनको श्रद्धांजलि देता हूं।” #Dilip Kumar #Maharishi Azad #Bombay Talkies #first film हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article