क्या बोल्ड और ब्यूटीफुल होने का मतलब हॉट एंड सेमी न्यूड होता जा रहा है? By Siddharth Arora 'Sahar' 28 Jul 2021 in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर भारत एक युवा देश है। भारत की औसत आयु 28-30 वर्ष है। यानी मेरी मैथ अगर बिल्कुल गर्त में नहीं है तो 90s के दशक में पैदा होने वाले नागरिकों की आबादी इस वक़्त सबसे ज़्यादा है। वो 90 के किड्स, और अब उनके 60-70 में पैदा हुए माँ-बाप रोज़ बदलती इस दुनिया में ख़ुद को ढालने की भरपूर कोशिश में हैं। इस लेख के टाइटल की ही बात करूँ तो एक समय था जब किसी महिला के बोल्ड होने का मतलब होता था की वह निडर है, वह दुनियादारी समझती है, वह अपने फैसले ख़ुद लेती है और वो हाज़िर जवाब है। - सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ फिर पता नहीं कब, या टेलीविज़न में विदेशी चैनल्स के बढ़ते प्रकोप के बाद से बोल्ड का अर्थ बिकनी या शॉट्स पहनने वाली लड़की में बदल गया। इस निडरता का मेटाफोरिक अर्थ था कि अब यह स्त्री कुछ भी पहनने से नहीं डरती है। छोटे कपड़ें पहनने का डर अब उसके ऊपर से हट गया है। वो मोर्डेन हो गयी है। जबकि जिस युग की बात मैं करता हूँ (कोई 25 साल पहले) तब बोल्ड लड़की का तमगा कपड़ों के मामले में उसे भी मिल जाता था जो जींस शर्ट या टीशर्ट पहनती थी। इस पोशाक की सबसे बड़ी वजह comfortable होना थी। आख़िर कोई कामकाज़ी महिला, दुनिया से दो-दो हाथ करती नारी, भला कैसे समय निकालकर साड़ी संभालेगी? लेकिन बदलते ज़माने ने बोल्ड एंड ब्यूटीफुल का मतलब सिर्फ कपड़ों तक लाकर रोक दिया। वहीं हॉलीवुड से उड़ता-उड़ता एक और शब्द हमारे समाज पर आकर बैठ गया, हॉट! अब अगर कोई लड़की न के बराबर कपड़ों में है तो वो नग्न नहीं बल्कि हॉट लग रही है। हॉलीवुड की बात छिड़ी है तो आपको याद होगा कि 1992 में आई हॉलीवुड की मोस्ट इरोटिक फिल्म ‘बेसिक इंस्टिक्ट’ छुप-छुपकर देखी जाती थी। शायद ही उस दौर का कोई ऐसा बच्चा (या बड़े भी) होगा जिसने बेसिक इंस्टिक्ट की सीडी नहीं छुपाई होगी। उस लेवल की इरोटिक फिल्म बॉलीवुड मेन स्ट्रीम सिनेमा आज तो छोड़िए अगले दस साल भी शायद ही बना सके। लेकिन उस फिल्म को समझने वाले समझते हैं कि उस फिल्म में दिखाए चार या पाँच न्यूड सीन्स भी कहानी की मांग थे. वो कहानी ही एक ऐसी औरत की थी जो आदमियों को बिस्तर पर लाकर मारने का शौक रखती है. फिर मारने से पहले हिंट के तौर पर उसी की मौत से जुडी पूरी पूरी नॉवेल भी लिखती है. लेकिन बीते 10 सालों से भारतीय एक्ट्रेसेस एक तरफ छोटे कपड़े पहनाये जा रहे हैं, दर्शक सीटियाँ, तालियाँ मार रहे हैं, वहीं उन एक्ट्रेसेस पर सिर्फ ‘तन दिखाकर’ इंडस्ट्री में बने रहने की लानतें भी मिल रही हैं। कोई बताए मुझे कि ये तन दिखाना क्या आज का ही ट्रेंड है? क्या पुरानी फिल्मों में ऐसा सीक्वेंस नहीं होता था? जवाब है बिलकुल होता था। तब मन्दाकिनी हों या जीनतअमान, बहुतों ने सेमी-न्यूड सीन दिए ही हैं। सन 1972 की फिल्म सिद्धार्थ में सिमी गिरेवाल ने तो फुल न्यूड सीन दिया था जिसके चलते फिल्म इंडिया में ही रिलीज़ नहीं हुई थी। फिर भी, तब के इरोटिक या सेमी न्यूड सीन्स आर्ट कहलाते हैं और अब कमोबेश ऐसे ही सीन को अश्लील कहा जाता है? सवाल है क्यों? जवाब है कि तब पूरी फिल्म में कोई एक सीन, एक गाना या बड़ी हद एक करैक्टर ऐसी होती थी जो ओवर एक्सपोज़र देती थी। अब तकरीबन हर फिल्म में ऑलमोस्ट सारी ही एक्ट्रेसेस शार्ट ड्रेसेस में शॉट देती हैं। बल्कि बिकनी शूट तो अब खासा पॉपुलर हो गया है। बस यही समस्या है वर्ना राज कपूर ने तकरीबन अपनी हर फिल्म में एक डेढ़ सीन ऐसा ज़रूर दिया है जो दर्शकों की साँसे रोक दे। पर वो क्लास कहलाता है, आर्टिस्टिक कहलाता है। वहीं मैं बॉलीवुड में इरोटिक सीन्स की क्रान्ति का श्रेय एमएम किरमानी को दूंगा जिनकी 2003 में आई फिल्म जिस्म ने इरोटिक फिल्मों का एक नया चैप्टर दे दिया। फिर अगला क्रेडिट भट्ट कैंप का बनता है जिन्होंने इमरान हाश्मी को कास्ट कर जाने कैसे सेंसर को समझा बुझा के एक से एक इरोटिक फ़िल्में दीं जिनमें हीरोइन कितनी बोल्ड दिखी तो मैं जज नहीं कर सकता पर सिनेमा हॉल में दिल पर हाथ रखे मुँह खोले फिल्म देखते दर्शक ज़रूर बोल्ड (आउट) हो गये। आशिक़ बनाया आपने फिल्म का टाइटल सॉंग कुछ ऐसा शूट हुआ था कि 2005 में सेक्स सीन्स फिल्माने में वह गाना क्रांति साबित हुआ था। फिर ऐसे ही अक्सर, मर्डर, गैंगस्टर आदि फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर बम्पर हिट हुईं और बिपाशा बासु, तनुश्री दत्ता, मलिका सहरावत, नई नई आई कंगना रनौत और उदिता गोस्वामी बोल्डनेस (?) की नई परिभाषा लेकर ए सर्टिफिकेट वाली फिल्मों की क्वीन बन गयीं। वो क्रान्ति आज तक कायम है और अब फिल्ममेकर और सेंसरबोर्ड दोनों इतने मच्योर हो चुके हैं कि दर्शकों तक कैसा भी सीन पहुँचाने में हिचकते नहीं है। अब सवाल सौ करोड़ का उठता है कि क्या ये बोल्डनेस के नाम पर आती सेमी न्यूडिटी और इरोटिका ज़रूरी हैं? इसके दो जवाब निकलते हैं। पहला ये कि कहानी की मांग क्या है? अगर कहानी की मांग कहती है कि बॉडी एक्सपोज़र होना चाहिए तो फुल न्यूड सीन भी वल्गर नहीं है। न न, चौंकिए नहीं, उदाहरण पेश है – राजस्थान में बाल विवाह और महिलाओं की दयनीय स्थिति पर बनी 2015 की फिल्म parched में राधिका आप्टे के करैक्टर लज्जो को उसका पति बहुत मारता है और विधवा औरत बनी रानी बनी शमिष्ठा चैटरजी उसके घाव पर मरहम लगाने आती है। अब यहाँ, मरहम लगाते-लगाते रानी का लज्जो के ऊपरी कपड़े उतार देती है और लेप लगाते हुए उसे आहिस्ता आहिस्ता छूती है। और दोनों रो देती हैं। ये सीन इतना मार्मिक है कि कम्पलीट न्यूड होते हुए भी, बिना किसी डायलॉग के भी आपको एक प्रतिशत भी वल्गर नहीं लगता। वहीं बूम नामक फिल्म में पहली बार हिन्दी फिल्म में काम करती कटरीना कैफ के कुछ फूहड़ सीन ख़ुद कटरीना से बर्दाश्त नहीं हो पाते। तो आप समझ सकते हैं कि इसका फार्मूला बड़ा सीधा है, अगर सीन का कोई मतलब नहीं है, सिर्फ दर्शकों को रिझाने के लिए सीन डाला गया है तो वो वल्गर है वहीं अगर कहानी की डिमांड है कि ऐसा सीन, ऐसा एक्सपोज़र दिया जाए, तो कम से कम मेरी नज़र में उसमें ऐसा कुछ वल्गर नहीं है। हालांकि यहाँ बहुत बड़ा खेल फिल्म के DOP यानी डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी का भी है कि वो एक सीन को किस तरह शूट कर रहा है और सेंसर बोर्ड पर भी मुनहसर है कि वह कितनी समझ से किसे क्या सर्टिफिकेट दे रहे हैं। इसमें एक बात और जोड़ने लायक है कि बहुत सी एक्ट्रेसेज़ के साथ, ज़्यादातर के कैरियर की शुरुआत में ही, बिना उनकी पूरी रज़ामंदी से भी ऐसे सीन्स फिल्माए जाते हैं जिन्हें बोल्ड कहना ज़रा मुश्किल लगता है। उदाहरण में लेटेस्ट तनुश्री दत्ता तो हैं ही, एक इंटरव्यू में तनुश्री का कहना था कि उन्हें नहीं पता था कि आशिक़ बनाया आपने गाने को इस तरह, इरोटिक शूट करना है। वो तैयार नहीं थीं पर आधी फिल्म के बाद उस सीन को शूट न करने की सूरत में उन्हें फिल्म ही छोड़नी पड़ सकती थी। वहीं कटरीना कैफ अपनी पहली फिल्म बूम में फिल्माए वल्गर दृश्यों से इतनी परेशान थीं कि उन्होंने एक समय फिल्म सारी डीवीडी मार्केट से रातों-रात गायब करवा दी थीं। वहीं 90s की टॉप डांसर एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित को भी ऐसे तजुर्बे से गुज़रना पड़ा था जब फिल्म दयावान में 21 साल की नाज़ुक सी माधुरी को अपने से दुगनी उम्र के 42 वर्षीय विनोद खन्ना के साथ एक ऐसा kiss सीन करना पड़ा था जो बाद में टेलीकास्ट के वक़्त फिल्म से हटा दिया गया था। ऐसे एक नहीं दर्जनों उदाहरण हैं पर उन एक्ट्रेसेज़ की भी कमी नहीं है जो स्वेक्षा से बोल्ड और इरोटिक सीन्स देती हैं और वह इसे अपनी यूएसपी मानती हैं। बकौल मलिका शेरावत, उन्हें फिल्म की डिमांड के हिसाब से एक्सपोज़ करने में कोई दिक्कत नहीं है। बल्कि उन्हें अच्छा लगता है जब उनके फैन्स उनके शरीर की तारीफ करते हैं। कुछ ऐसा ही मनना बिपाशा बासु का भी है। वह भी बोल्ड सीन्स देने में बहुत बिंदास हैं। इनके साथ ही, ईशा गुप्ता, कोइना मित्रा, आज के दौर में उर्वशी रौतेला, दिशा पाटनी, इलियाना डीक्रूज़ आदि बहुत कम्फ़र्टेबल हैं। बाकी छोटे कपड़ों, कामुक दृश्यों और बेतुकी बातों को कई बार इतना तूल दिया जाता है कि वो हौव्वा बन जाती हैं जिसका दोनों पक्ष और विपक्ष बराबर रूप से फायदा उठाते हैं। मसलन, छोटे कपड़ों पर एक दल टिप्पणी करता है कि ये हमारी संस्कृति ख़राब कर रहे हैं वहीं दूसरा पक्ष आपत्ति को फ्री प्रमोशन मानकर और ज़्यादा शॉर्ट ड्रेसेज़ वाले शॉट्स, और ज़्यादा कामुक दृश्य शूट कर बिना सुर, लय, ताल या कहानी के भी अपनी फिल्म हिट करा लेता है। क्योंकि सच ये भी है कि बोल्ड (!) सीन्स क्रिटिसाइज़ भले ही कितने हो जाएँ, पर आम पब्लिक द्वारा पसंद भी बहुत किए जाते हैं। वर्ना सन 60-70 के दशक में भी हीरोइन की सिर्फ टाँगे देखने के लिए लोग दस-दस बार एक ही फिल्म देखने नहीं जाते, और रही बात संस्कृति की, तो मुझे नहीं लगता कि हमारी संस्कृति इतनी कमज़ोर है कि किन्हीं चार के कपड़े उतार नाच लेने से भृष्ट हो जाएगी। हाँ, उन फिल्ममेकर्स की अपनी क्रिएटिविटी ज़रूर भृष्ट हो जाएगी, हो रही है; जो बोल्ड सीन्स और वल्गर जोक्स का फ़ॉर्मूला बना फ़िल्में धड़ल्ले से बेच रहे हैं और एक ही चीज़ बनाकर इसी में खुश हैं कि उनके पास पैसा तो आ रहा है। उन फिल्ममेकर्स, उन एक्ट्रेसेस (?) के लिए यही सलाह है कि जागने के लिए कभी देर नहीं होती, अब भी समय है एक्सपोज़र से पहले स्क्रिप्ट पर, क्राफ्ट पर ध्यान दिया जाए। #Anchor Simran Ahuja #murder #Bold scene #aksar #ashiq banaya apne #bold films #bollywood bold actors #bollywood bold actress #jism हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article