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बर्थडे स्पेशल: 4 हज़ार गानों को अपनी आवाज़ देने वाले महान गायक मन्ना डे ने कई भाषाओं में गाए गाने

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By Mayapuri
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बर्थडे स्पेशल: 4 हज़ार गानों को अपनी आवाज़ देने वाले महान गायक मन्ना डे ने कई भाषाओं में गाए गाने

बॉलीवुड के दिग्गज गायकों में शुमार किए जाने वाले महान गायक मन्ना डे ने 94 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. मन्ना डे सिर्फ एक अच्छे गायक ही नहीं बल्कि एक ऐसे फनकार थे जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को एक नई पहचान दिलाई. उनकी जादुई आवाज़ को पहचान दिलाने वाली जो सबसे खास शख्सियत थी वो थे उनके चाचा केसी डे.

चाचा से ली संगीत की शिक्षा

दरअसल, संगीत में मन्ना डे की रुचि उनके चाचा केसी डे की वजह से पैदा हुई थी. जबकि उनके पिता का सपना था कि वो बड़े होकर वकील बने. लेकिन मन्ना डे की रुचि संगीत की ओर बढ़ती गई. कलकत्ता के स्कॉटिश कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ मन्ना डे ने चाचा केसी डे से शास्त्री संगीत की शिक्षा ली.


 

4000 से भी ज्यादा गाने गाए

मन्ना डे का जन्म 1 मई 1919 को हुआ था और उन्होंने अपने पूरे करियर में 4000 से भी ज्यादा गाने गाए. 1942 में मन्ना डे ने फिल्म तमन्ना से अपने करियर की शुरुआत की. उन्होंने हिंदी के अलावा बंगाली समेत कई भाषाओं में गाने गाए. इतना ही नहीं, मन्ना डे ने लोकगीत से लेकर पॉप तक हर के गाने गाए और देश विदेश में लोगों को अपना मुरीद बनाया.


 

मधुशाला को भी दी आवाज़

मन्ना डे ने हरिवंश राय बच्चन की मशहूर कृति मधुशाला को भी आवाज़ दी. फिल्म काबुलीवाली का ‘गीत ए मेरे प्यारे वतन’ और फिल्म आनंद का ‘जिंदगी कैसी है पहेली हाय’ गीत आज भी लोगों के दिलों को छू जाता है. इसके अलावा उनके ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई’, ‘लागा चुनरी में दाग’, ‘आयो कहां से घनश्याम’, ‘सुर न सजे’ जैसे गीत भी काफी पसंद किए गए.


 

मन्ना डे की दो बेटियां हैं

कौन आया मेरे मन के द्वारे, ऐ मेरी जोहर-ए-जबीं, ये रात भीगी-भीगी, ठहर जरा ओ जाने वाले, बाबू समझो इशारे, कस्मे वादे प्यार वफा, जैसे गाने आज भी लोगों के दिलों में राज करते हैं. बता दें, कि मन्ना डे का असली नाम प्रबोध चंद्र डे है. मन्ना डे की दो बेटियां हैं. एक अमेरिका में रहती है. परिवार वालों ने बताया कि अंतिम समय में मन्ना डे के पास उनकी बेटी शुमिता देव और उनके दामाद ज्ञानरंजन देव मौजूद थे.

2007 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मान

मन्ना को डे को संगीत के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया. 2007 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें 1971 में पद्मश्री और 2005 में पद्म विभूषण से नवाज़ा गया.

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