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मेहबूब साहब, मैं घोड़े के साथ रियल शाॅट देने के लिए तैयार हूँ - दिलीप कुमार

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By Mayapuri Desk
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मेहबूब साहब, मैं घोड़े के साथ रियल शाॅट देने के लिए तैयार हूँ - दिलीप कुमार

आपने अगर स्व. मेहबूब खान की फिल्‍म ‘अन्दाज’ देखी होगी तो आपको फिल्म के शुरू का सीन अवश्य याद होगा जिसमें नर्गिस का घोड़ा बेकाबू होकर सरपट भागा चला जा रहा है। और नर्गिस मदद के लिए चिल्ला रही है। दिलीप कुमार उसकी आवाज सुनकर अपने घोड़े पर उसका पीछा करता है और उसे बचा लेता है। -जैड. ए. जौहर

दिलीप कुमार-नर्गिसः डुप्लीकेट न इस्तेमाल करने की जिद्द

मेहबूब साहब, मैं घोड़े के साथ रियल शाॅट देने के लिए तैयार हूँ - दिलीप कुमारघोड़ों के साथ फिल्माया जाने वाला यह दृश्य बड़ा ही खतरनाक था। इसके बावजूद यह दृश्य नर्गिस और दिलीप कुमार ने बिना डुप्लीकेट के स्वयं दिये थे। लेकिन फिल्म में वास्तविकता का रंग भरते हुए दोनों को जान जोखिम में पड़ गई थी। स्व. महबूब खान चाहते थे कि वह दृश्य डुप्लीकेट के साथ फिल्माया जाए। उनका ख्याल था कि लाॅग शाॅट में किसी को पता न चलेगा कि घोड़ों पर नर्गिस और दिलीप कुमार बैठे हैं या अन्य कोई बैठा है। लेकिन यह नर्गिस और दिलीप की लगन थी कि उन्होंने एक मत होकर कहाः-

“हम दोनों रियल शॉट देने के लिए तैयार हैं तो फिर आप डुप्लीकेट के बारे में क्‍यों सोचते हैं?”

“मैं तुम्हारी जान खतरे में नहीं डालना चाहता” मेहबूब साहब ने दोनों को समझाते हुए कहा था। किन्तु दोनों में से एक भी नहीं माना। राज कपूर ने भी दोनों को बहुत समझाया किन्तु व्यर्थ रहा। आखिर महबूब साहब ने कहा कि अगर तुम लोगों की यही मर्जी है तो घोड़े को सवारी सीख लो।

नर्गिस तथा दिलीप कुमार ने पन्द्रह दिन निरंतर घुड़सवारी सीखी और उसके बाद शूटिंग के लिए खन्‍डाला जा पहुंचे। शूटिंग का समय आया। नर्गिस और दिलीप कुमार के लिए घोड़े मंगवाये गए। दोनों ने अपने अपने घोडे़ संमाल लिए। महबूब साहब ने कहाः- “स्टार्ट” !

नर्गिस ने अपने घोड़े को ऐड़ लगाई किन्तु वह जगह से ही न सरका दिलीप ने ऐड़ लगाई तो उसके पीछे नर्गिस का घोड़ा भी दौड़ने लगा। हालांकि सीन यह था कि दिलीप का घोड़ा नर्गिस के घोड़े का पीछा करता है इसलिए सब लोग सेट पर हंसने लगे। दोनों को वापस बुलाया और पुनः दौड़ने के लिए कहा लेकिन फिर वही हुआ। आखिर कैमरा मैन फरिदून इरानी ने कहा दिलीप का घोड़ा नर्गिस को दे दो। और नर्गिस का घोड़ा दिलीप को दे दो। शायद इस तरह काम ठीक हो जाए।”

यह सुन कर घोड़े लाने वाला बोला साहब यह दोनों घोड़े नहीं हैं। इनमें एक घोड़ा है और दूसरी घोड़ी है। आप दोनों को घोड़ा क्‍यों कह रहे हैं।”

अब मेहबूब साहब को समझ में पूरी बात आ गई। वह घोड़े वाले से बोले “साला, इतनी देर से क्‍यों नहीं बोला?”

घोड़ों को अदला-बदली करने के बाद भी उस दिन की शूटिंग अच्छी तरह न हो सकी। इसलिए महबूब साहब ने अगले दिन घोड़े वाले से दोनों घोड़े ही लाने के लिए कहा। दूसरे दिन जब शूटिंग शुरू हुई लेकिन- जल्दी ही सहायक को ख्याल आ गया कि घोड़े का रंग बदल गया है। पहले दिन दिलीप के घोड़े को रंग काला था ओर उस दिन घोड़े वाला सफेद घोड़ा उठा लाया था. इसलिए घोड़ा वाले से पुनः वही घोड़े लाने के लिए कहा गया। अगले दिन घोड़े वाला पैसों के लालच में तूफानी घोड़ा उठा लाया। लेकिन यह बात बताई नहीं। वह तो बीमा कम्पनी नसीब वाली थी वरना उस दिन दो लाख की चपत पड़ जाती।

'जो दिलीप को कुछ भी हुआ तो तेरी खैर नहीं' मेहबूब साहब

मेहबूब साहब, मैं घोड़े के साथ रियल शाॅट देने के लिए तैयार हूँ - दिलीप कुमार     शूटिंग शुरू हुई तो नर्गिस का घोड़ा आगे और दिलीप का घोड़ा पीछे दौड़ने लगा। शाट फिल्‍म बंद हुआ तो नर्गिस ने अपना घोड़ा रोक लिया लेकिन दिलीप कुमार का घोड़ा रोकने पर न रूका और अपनी दोनों टागों पर खड़ा हो गया। दिलीप उससे गिरते-गिरते बचा। उसके हाथ से लगाम छूट गई। लेकिन उसने घोड़े की जीन मजबूती से पकड़ ली। जीन पकड़ने से घोड़ा तूफानी रफ्तार से भागने लगता है। यह बात घोड़े वाले ने नहीं बताई थी। इसलिए दिलीप कुमार ने जैसे ही घोडे की गर्दन में हाथ डाले घोड़ा बिजली की रफ्तार से दौड़ने लगा।

घोड़े को इस तरह बेकाबू होकर दौड़ते देख कर महबूब खान चिल्लाए “जो दिलीप को कुछ भी हुआ तो तेरी खैर नहीं ! साले ऐसा तूफानी घोड़ा रखता है!”

घोड़े वाला कुछ बोला और फौरन नर्गिस का घोड़ा लेकर घाट की तरफ दौड़ा किन्तु दिलीप का कहीं पता न चला। काफी भाग दौड़ के बाद एक छोटे से ढलान पर दिलीप कुमार पड़ा हुआ मिल गया। सब आदमी वहां पहुंचे और दिलीप कुमार को होटल लेकर आए।

घुड़ सवारी के उस में कई दृश्य फिल्माये थे किन्तु इस खतरनाक दुर्घटना के पश्चात न तो दिलीप कुमार ने सवारी के लिए जिद की और न ही नर्गिस ने! और अगर जिद करते तो मेहबूब खान मानने वाले न थे।

आखिरकार बाकी के शाॅट डुप्लीकेट की मदद से ही फिल्मबंद किए गए। उस के बाद काफिला खुदा का शुक्र अदा करता हुआ वापस बम्बई चला आया।

दिलीप-सायरा शादी सोच समझ कर ही...

मेहबूब साहब, मैं घोड़े के साथ रियल शाॅट देने के लिए तैयार हूँ - दिलीप कुमारअनेक लोगों की धारणा है कि दिलीप-सायरा की शादी अचानक प्रेम के परिणाम के रूप में हो गयी होगी पर ऐसी बात नहीं है। इस शादी के पीछे गहरी पृष्ठ भूमि थी 22 अगस्त 1966 को सायरा बानों को जन्म-तिथि थी जो उन्हीं के निवास-स्थान पर बड़ी धूमधाम से मनायी गयी। इस जन्म तिथि समारोह में राजेन्द्र कुमार, देव आनन्द, राज कुंमार और दिलीप कुमार जैसे चोटी के हीरो उपस्थित थे। जब पार्टी खत्म हो गई तो दिलीप कुमार को छोड़कर प्रायः सभी लोग चले गये। दिलीप कुमार ने उस दिन पहली बार सायरा बानो को, उनकी खूबसूरती को प्रेम भरी निगाहों से देखा और कहा तुम तो अब पूरी औरत बन गयी हो। यह सुन कर सायरा शरमा गयी और कंगनों को खनखनाती हुई अपने कमरे के भीतर दौड़ गई।

मेहबूब साहब, मैं घोड़े के साथ रियल शाॅट देने के लिए तैयार हूँ - दिलीप कुमारसायरा वयस्क हो चुकी थीं। घर वाले चाहते थे, किसी तरह दिलोप कुमार उनसे निकाह कर ले। पर उनका झुकाव राजेन्द्र कुमार की ओर था। राजेन्द्र कुमार और सायरा की मोहब्बत लोगों से छपी न रह सकी, और घर वाले भी उस राज को जान गये। आखिर घर वालों को कहना पड़ा कि वह राजेन्द्र कुमार से पूछो कि वे उससे शादी करने के लिए राजी है या नहीं। अगले ही दिन वे खुशी-खुशी राजेन्द्र कुमार के पास गयीं और उल्लास भरी मुस्कराहट के साथ पूछ भी लिया कि वे उसके साथ शादी करने को राजी है या नहीं. सायरा के मुंह से यह सुनते ही राजेन्द्र कुमार चैंक उठे। उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था कि सायरा के साथ उनका प्रेम उस परिणाम की सीमा तक पहुंच जायेगा। अपनी निजी परिस्थितियों के कारण वे हां न कर सके। राजेन्द्र कुमार की ‘ना’पर सायरा को गहरा सदमा पहुंचा।

मेहबूब साहब, मैं घोड़े के साथ रियल शाॅट देने के लिए तैयार हूँ - दिलीप कुमारतब, सायरा ने अपना सारा भविष्य घर वालों पर छोड़ दिया। उन दिनों उनके परिवार में एस. मुकर्जी का प्रभाव था। वे एक तरह से सायरा के अभिभावक थे। उन्होंने एक दिन दिलीप कुमार को बुला कर पूछा, क्या वे सायरा से शादी करना चाहेंगे?” दिलीप कुमार भी इस बारे में जल्दी नहीं करना चाहते थे। कुछ ही दिनों पहले मधुबाला से भी उनकी शादी तय हो चुकी थी पर ऐन वक्‍त पर मधुबाला ने इन्कार कर दिया। कहीं वही बात हो गयी तो क्या होगा। आखिर, दिलीप कुमार ने! सायरा से ही इस बारे में बातचीत करनी चाही।

कुछ ही दिनों बाद जब वे किसी फिल्‍म की शूटिंग के दौरान मद्रास गये तो वहीं से बंबई में अपने एक दोस्त को ट्रंक काल पर कहा कि वे सायरा और उनकी आया के लिए हवाई जहाज के टिकट बंगलौर के लिए रिजवं करा लें। पहली बार सायरा अकेली अपनी आया के साथ बंगलौर गयी और चार दिन वहां दिलीप कुमार के साथ बिताने के बाद बंबई लौटी। इन चार दिनों में दिलीप-सायरा ने एक दूसरे को अच्छी तरह पहचान लिया और आंखों ही आंखों में एक दूसरे का जीवन साथी बनने का निर्णय भी ले लिया। दिलीप कुमार ने वहीं से अपने इस निर्णय को सूचना अपने घर वालों को दो. और फिर 23 सितम्बर, 1966 को दिलीप की तीनों बहनें बकायदा शादी का पैगाम लेकर नसीम बानों के पास पहुंचीं।

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