दिलीप कुमार सिर्फ एक करिश्माई अभिनेता ही नहीं बल्कि, शानदार सिनेमाई युग को बुनने वाले एक माहिर जुलाहे भी थे।- अली पीटर जॉन By Mayapuri Desk 09 Aug 2021 | एडिट 09 Aug 2021 22:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर इस महान कलाकार को इस कविता के रूप में एक भावपूर्ण काव्यात्मक श्रद्धांजलि सिनेमा के जुलाहे सिनेमाई सरगर्मियों का सरनामा, अदाओं के दिलकश कूचे थे वो, उनका कायिक कद जो भी था, पर करनी से कितने ऊंचे थे वो! उनके भाल पे कीर्ति का सूरज पलता था, उनकी ऊंचाई से अनन्त आकाश भी जलता थाए उन्होंने चित्र की चलायमानता के आदिगीत गाये थे वो सिनेमा के पुरातन युग के माहिर जुलाहे थे, उनका अभिनय सत्य का अनदेखा आयाम था, उनका अभिनय भावों की नक्काशी का दूसरा नाम था पतझड़ की उबासीएमधुमास की जम्हाई, उनकी अदाकारी में थी हर ऋतु समाई, उनके निभाये किरदार मैनुअल थे उस अद्भुत वैज्ञानिक तदबीर का, कि कैसे एक आदमी कर सकता है सफर कई कई शरीर का, वो अतीत की किताब के सुनहरे औराक थे, वो दर्शकों के अहोभाव की लजीज खुराक थे, वो आनंद की रेसिपी में पड़ी नमक की सही मात्रा थे, वो हमारे अंदर के संसार की असीम आह्लादक यात्रा थे, वो हमारे दुख के अखरोट को कुतरने वाली गिलहरी थे, वो अगहन के महीने में चटकी गुनगुनी सी दुपहरी थे, वो हमारे मन के धरातल पे जमा अंगद का पांव थे, वो मृत संजीवनी सा हमारी आत्मा के भरते घाव थे, वो स्वर्ग से गिरे उस अपौरुषेय का पन्ना थे, जिसमें देवताओं के सुख के रहस्य छिपे थे, वो भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का धड़कता मर्म थे, जिसमें अभिनय के नौ रस खपे थे, वो उम्मीद की मुनादी थे, प्रगति का विज्ञापन थे, वो ईश्वर के किये सुंदर चमत्कार का सत्यापन थे, वो कला की अधिष्ठात्री को चढ़ाए समर्पण के अड़हुल थे, वो हमें ईश्वर से जोड़ने वाला एक जादुई पुल थे! #abhishek kapoor interview about sushant #dilip kumaar #dilip kumaar poem हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article