मूवी रिव्यू: रियलिस्टक अप्रोच दर्शाती है ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ By Mayapuri Desk 19 Jul 2017 | एडिट 19 Jul 2017 22:00 IST in बॉक्स ऑफ़िस New Update Follow Us शेयर रेटिंग**** औरत की आजादी को लेकर बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन क्या वास्तव में औरत आजाद हो चुकी है? ये कड़वा सच प्रोड्यूसर प्रकाश झा और एकता कपूर द्धारा प्रस्तुत और अलंकृता श्रीवास्तव द्धारा निर्देशित फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ में काफी असरदार तरीके से दिखाया गया है। फिल्म अभी तक विभिन्न फिल्म फेस्टिवल्स में सतरह अवार्डस हासिल कर चुकी है। कहानी चार ऐसी औरतों की है जो अपनी सेक्सुअल भावनाओं को दबाने के लिये मजबूर हैं। कोकंणा सेन एक मुस्लिम ऐसी ग्रहणी है, जिसके पहले से तीन बच्चे हैं, उसका पति रहीम सुशांत सिंह कहीं बाहर काम करता है और महीने में एक बार घर आता है और जबरदस्ती बीवी के साथ हर बार हम बिस्तर हो उसे प्रेग्नेंट करता रहता है। बाद में बेचारी कोंकणा अबॉर्शन करवाती फिरती है। जब उसे लगता है कि पति घर का पूरा खर्च नहीं उठा पा रहा है तो वह चोरी से एक जगह सेल्स गर्ल का जॉब पकड़ लेती है और बहुत अच्छी सेल्स गर्ल साबित होती है। रत्ना पाठक एक पचास पचपन की ऐसी औरत है जो शादियां करवाती है। चूंकि उसके भीतर भी ढेर सारी भावनायें दबी हुई हैं उसके मन बहुत पहले से था कि वो तेरना सीखे, लिहाजा वो चुपचाप मस्तराम की अश्लील किताबे पढ़ती है तथा छुपकर तैरना सीखती है लेकिन बाहर वो संत टाइप औरत है। तीसरी लड़की मुस्लिम कालेज गर्ल है, वो काफी मंहगें कॉलेज में पढ़ती है। कॉलेज में बुर्का पहन कर जाती है लेकिन बाहर वो फैशनेबल कपड़े जींस, र्स्कट वगैरह पहनने के अलावा सिगरेट तक पीती है यानि वो घरवालों से छिपकर पूरी तरह से आधुनिक बन चुकी है। चौथी भी एक ऐसी मुस्लिम लड़की है जो एक गरीब फोटोग्राफर से प्यार करती है लेकिन उसकी शादी कहीं और तय कर दी जाती है। कहानी बताती है कि समाज में खास कर मुस्लिम औरतें कैसे जी रही हैं उन समस्याओं को इन चार औरतों के जरिये दिखाया गया है। औरतों को लेकर इतनी शाश्वत और बोल्ड फिल्म अलंकृता श्रीवास्तव जैसी महिला निर्देशक ही बना सकती थी क्योंकि महिला होने के नाते उसने बहुत ज्यादा बारीकी से फिल्म में महिला किरदारों की भावनाओं को दर्शाया है। फिल्म का बेकड्राप भोपाल है। वहां की लोकल लोकेशंस, फिल्म को और ज्यादा रीयल बनाती है। फिल्म में कितने ही दृश्य बेहद बोल्ड हैं लेकिन उन्हें अश्लील नहीं कहा जा सकता। बल्कि उन्हें देख दर्शक विरक्त हो उठता है। देश विदेश में करीब दो दर्जन पुरस्कार प्राप्त कर चुकी इस फिल्म के विषय को लेकर सेंसर बोर्ड़ ने इसे पास करने से साफ इंकार कर दिया था लिहाजा बाद में इसके लिये एक लंबी लड़ाई लड़ी गई। जिसमें जीत प्रोड्यूसर की हुई। बेशक फिल्म एक खास वर्ग के लिये है लेकिन इसमें उठाया गया मुद्दा बहुत ही रीयल और असरदार है। फिल्म में प्रमुख भूमिका में कोकंणा सेन शर्मा ने बहुत ही बेहतरीन ढंग से अपनी भूमिका को अंजाम दिया है। रत्ना पाठक शाह एक मंजी हुई अदाकारा है। उन्होंने जिस प्रकार अपनी भूमिका निभाई है वहां उनकी बेबसी से दर्शक को साहनुभूति हो जाती है। बाकी अहाना कुमराह तथा प्रबिता बोरठाकुर ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। सुशांत सिंह टिपिक्ल मुस्लिम किरदार में जमते हैं वहीं विक्रांत मेसी ने भी अपने रोल के साथ पूरा न्याय किया है। महिलाओं को लेकर रीयलिस्ट अप्रोच दर्षाती है लिपस्टिक अंडर माई बुर्का । जो #LIPSTICK UNDER MY BURKHA #movie review हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article