दर्शकों के टेस्ट पर खरी है ‘लखनऊ सेंट्रल’ By Mayapuri Desk 15 Sep 2017 | एडिट 15 Sep 2017 22:00 IST in बॉक्स ऑफ़िस New Update Follow Us शेयर रेटिंग*** सच्ची घटना पर आधारित निर्देशक रंजीत तिवारी की फिल्म‘ लखनऊ सेंट्रल’ में जेल की राजनीति, वर्चस्व के लिये मारपीट तथा बंदियों के इमोशंसॉ प्रभावशाली तरीके से दिखाने की कोशिश की गई है। फरहान अख़्तर एक लाइब्रेरियन का लड़का है जो अपना बैंड बनाना चाहता है । एक दिन अचानक उसे एक आईएएस अधिकारी के मर्डर के इल्जाम में उम्र कैद की सजा हो जाती है। प्रदेश के चीफ मिनस्टिर रवि किशन कमिश्नर को आदेश देते हैं कि हर साल होने वाले कैदी बैंड कंपटिशन में इस साल लखनऊ सैंट्रल जेल का बैंड भी होना चाहिये। जेलर रोनित राय जेल में खतरनाक कैदियों का हवाला देते हुये सुरक्षा के लिये इसे रिस्की मानता है। लेकिन कमिशनर का आदेश तो मानना ही पड़ेगा। यहां सोशल वर्कर डायना पेंटी को फरहान विश्वास दिलाता है कि वो बैंड बना सकता है। डायना फरहान को कमिश्नर वीरेन्द्र सक्सेना के तहत हां कहलवा देती है। इसके बाद फरहान पांच कैदियों को चुनता है जिनमें राजेश शर्मा, गिप्पी ग्रेवाल,इनामुलहक तथा दीपक डोबरियाल हैं। फरहान इन्हें बैंड के बहाने जेल से आजाद होने की युक्ति सुझाता है। इसके बाद कहानी आगे बढ़ती है। क्या फरहान उन कैदियों के साथ बैंड बना पाता है ? क्या वो अपना बैंड बनाने का सपना पूरा कर पाता है? इन सब सवालों के लिये फिल्म देखना जरूरी है। दो सप्ताह पहले इसी कहानी पर यशराज बैनर की फिल्म ‘ कैदी बैंड’आ चुकी है लेकिन कथानक के अलावा दोनां में कोई समानता नहीं है। दोनों का ट्रीटमेन्ट तथा प्रस्तुतिकरण कतई जुदा है। बेशक ये एक रीयल कहानी पर आधारित फिल्म है लेकिन कहीं कहीं जो सिनामाई लिबर्टी ली गई हैं वे एक हद तक बचकानी लगती हैं। लेकिन किरदारों से बुलवाये गये कुछ संवाद दर्शकों में इमोशन पैदा करने में सक्षम हैं। दूसरे जेल का सेट, म्युजिक और कैमरा वर्क कमाल के हैं। अगर क्लाईमेंक्स पर थोड़ा और ध्यान दे दिया होता तो फिल्म और प्रभावी बन सकती थी। फरहान अख़्तर ने अपने रोल को भली भांती निभाया है, वे थोड़ा ओर यंग लगते तो भूमिका और जानदार बन सकती थी। दीपक डोबरियाल और राजेश शर्मा अपनी भूमिकाओं में हमेशा की तरह बेहतरीन काम कर गये, इसी प्रकार गिप्पी ग्रेवाल और इनामुलहक भी अपने रोल्स में प्रभावित करते हैं। डायना पेंटी की भूमिका को आखिर तक उभरने का मौका नहीं मिल पाता, लेकिन रोनित रॉय जेलर की भूमिका में जहां सभी पर भारी पड़े हैं वहीं रवि किषन मुख्य मंत्री की सीमित भूमिका में दर्शकों का दिल जीत लेते हैं। वीरेन्द्र सक्सेना भी ठीक रहे। यानि लखनऊ सेंट्रल एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों को निराश न करते हुये उनके टेस्ट पर खरी साबित होती है। #Farhan Akhtar #movie review #Lucknow Central हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article