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मूवी रिव्यु: रीयलस्टिक फिल्म 'कामयाब'

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By Shyam Sharma
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मूवी रिव्यु: रीयलस्टिक फिल्म 'कामयाब'

रेटिंग***

हम अक्सर ढेर सारी फिल्मों में किसी चरित्र अभिनेता को अलग अलग किरदारों में देखते रहते हैं लेकिन उसे लगातार देखते रहने के बाद भी उसे जानते नहीं। निर्देशक हार्दिक मेहता की फिल्म ‘कामयाब’ एक ऐसे ही चरित्र अभिनेता पर आधारित है जो ताजिन्दगी फिल्मों में न जाने कितने किरदार निभाता रहा लेकिन आखिर तक वो अपनी पहचान नहीं तलाश पाया।

कहानी

सुधीर यानि संजय मिश्रा बरसां से फिल्मों में हीरो के चमचे, सूदखोर बनिया,परिवार को प्रताड़ित करने वाला लाला या किसी भूतिया बंगले का लालटेन उठाये रामू काका की भूमिकायें निभाता रहा लेकिन इतना काम करने के बाद भी वो दर्शकों लिये अंजान ही बना रहा। आज भी वो अपनी बेटी से अलग अपने घर में अकेला रहता है और रोजाना अपने हमउम्र दोस्त के साथ दो पैग शेयर करता है। एक चैनल की रिर्पोटर उसका इन्टरव्यू लेने आती है तो उसे पता चलता है कि वो अभी तक 499 फिल्मों में काम कर चुका है। उसे लगता है कि अगर वो एक और फिल्म कर ले तो पांच सो फिल्मों में काम करने का रिकॉर्ड बन जायेगा। उसकी बेटी उसे लाख समझाती है कि अब उसकी उम्र नहीं रही, लिहाजा वो फिल्मों का चक्कर छोड़ उसके पास रहे। लेकिन सुधीर एक बार फिर अपना साजों समान जैसे विग, पाइप और चटकदार कपड़े पहन निकल पड़ता है एक और फिल्म की तलाश में। उसकी मुलाकात उसके पुराने चेले दीपक डोबरीयाल से होती है जो अब फेमस कास्टिंग डायरेकटर बन चुका है। सुधीर उसे कोई यादगार रोल तलाशने के लिये कहता है। दीपक उसके लिये रोल तलाश भी कर लेता है लेकिन क्या वो अपनी पांच सो वी फिल्म कर पाता है ?

अवलोकन

हार्दिक मेहता ने अपनी फिल्म में उन साइडकिक कहलाने वाले कलाकारो के दर्द को बयान करने की कोशिश की है, जो अपने आपको आलू प्याज भी कहते हैं क्योंकि उनका कहना हैं कि वे किसी भी फिल्म में आलू की तरह फिट हो जाते हैं वरना उनके बिना फिल्में अधूरी हैं बावजूद इसके उनकी कोई पहचान नहीं कोई अस्तित्व नहीं। सुधीर के जरिये बताने की कोशिश की हैं कि चुक चुके होने के बाद इन्डस्ट्री में उसे कैसे लिया जाता है। एक अदना सा प्रोडक्शन मैनजर भी सारी यूनिट के सामने उसकी बेइज्जती कर देता है। एक वक्त उसे हैसियत और औकात का एहसास हो जाता है लिहाजा वो वापस लौट जाता है अपनो के बीच, जहां आज भी उसकी कोई हैसियत है, रिस्पेक्ट है। फिल्म की कहानी काफी मार्मिक है जिसे अच्छे ढंग से दर्शाया गया है। इन्डस्ट्री के छोटे से छोटे मूमेन्ट पर्दे के पीछे की कहानी बयान करते दिखाई देते हैं। फिल्म में वास्तविकता भरने के लिये पुराने जमाने के वीजू खोटे, बीरबल, मनमौजी,  अवतार गिल तथा लिलिपुट आदि  कलाकारों को दिखाया है। फिल्म की गति काफी धीमी है और संगीतपक्ष बेहद कमजोर। लेकिन क्लाईमेक्स प्रभावशाली बन गया।

अभिनय

संजय मिश्रा एक सक्षम कलाकार हैं, उन्होंने न सिर्फ विभिन्न किरदारों के गेटअप में अपने आपको पिरोया बल्कि अपने किरदार में भी वो लाजवाब रहे। सजंय ने बॉडीलैंग्वेज पर भी खासी मेहनत की। दीपक डोबरीवाल ने कास्टिंग डायरेक्टर की भूमिका में बेहतरीन अभिनय किया है। इसके अलावा सुधीर की बेटी की भूमिका में सारिका सिंह और संघर्षशील अभिनेत्री के रोल में इशा तलवार भी खूब जमी है। एक अलग से रोल में अवतार गिल अच्छे लगे।

क्यों देखें

रीयलस्टिक फिल्मों के शौकीन दर्शकों के लिये है, कामयाब।

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